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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

रामद्वारा मंदिर: पत्थरों को सीमेंट की बजाय सीसा और तांबे से जोड़ा गया; पीतल की कीलें लगाई गईं

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नागौर. राजस्थान के नागौर में बने संत किशनदार महाराज रामद्वारा मंदिर में उसी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है, जिससे गुजरात और दिल्ली के अक्षरधाम मंदिर बने हैं। 2011 में इसका निर्माण शुरू हुआ था। 200 कारीगरों ने इसे 8 साल में बनाकर तैयार किया है। 20 करोड़ की लागत आई। खास बात यह है कि रामद्वारा में लगे पत्थरों को जोड़ने में सीमेंट की बजाय सीसा और तांबे का इस्तेमाल किया गया है। ट्रस्ट ने बताया- यह 100 फीट लंबा, 50 फीट चौड़ा और 50 फीट ऊंचा है। इसके निर्माण में 10 क्विंटल तांबा और सीसा लगाया गया है। दरवाजों में पीतल की कीलें लगाई गई हैं।

8 साल चला निर्माण, अबबारीक घड़ाई और बेजोड़ नक्काशी देखने आ रहे श्रद्धालु

नागौर से करीब 30 किमी दूर स्थित टांकला गांव में यह रामद्वारा बारीक घड़ाई और नक्काशी के लिए भी जाना जाता है। मंदिर ट्रस्ट का दावा है कि इस तरह की बारीक घड़ाई व बेजोड़ नक्काशी प्रदेश में किसी भी दूसरे मंदिर में नहीं है। जिसे देखने के लिए भी अब यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आ रहे है। यह रामद्वारा श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है। रामद्वारा अब बनकर तैयार हो गया है जिसमें देवल प्रतिष्ठा महोत्सव 10 फरवरी को समारोहपूर्वक होगा।

निर्माण में लागत 20करोड़ आई
इस मंदिर की एक और खास बात ये है कि टांकला गांव में 300 साल पूर्व हुए संत किशनदासजी महाराज की तपोभूमि पर इंटरलॉकिंग से तैयार हुए इस रामद्वारे के निर्माण में सीमेंट, चूना व बजरी का उपयोग नहीं किया गया है। सिरोही और पिण्डवाड़ा के कारीगरों द्वारा इंटरलॉकिंग व बारीक घड़ाई का काम कर रामद्वारा का निर्माण करवाया गया है। रामद्वारा की चिनाई में सीमेंट से पत्थरों को जोड़ने की बजाए सीसे औरतांबे से पत्थरों को जोड़ा गया है। रामद्वारा निर्माण में 10 क्विंटल तांबे औरसीसे का उपयोग हुआ है। इसी के चलते इसके निर्माण में कुछ समय अधिक लगा।

दरवाजों व खिड़कियों में लोहे का भी उपयोग नहीं
रामद्वारे के दरवाजों व खिड़कियों में लोहे का उपयोग नहीं होगा। धाम के महंत नरसिंहदास महाराज ने बताया कि रामद्वारा में दरवाजों व खिड़कियों में लोहे की एक कील का भी उपयोग नहीं किया जा रहा है। दरवाजों में तांबे व पीतल की कीलों का उपयोग किया जा रहा है। महंत ने बताया कि रामद्वारे में लोहे का उपयोग करना अशुभ होता है इसलिए ऐसा किया है। संत मोतीराम महाराज ने बताया कि वर्ष 2011 में रामद्वारे का निर्माण शुरू करवाया गया था जो अब बनकर तैयार हुआ है। रामद्वारा में बने 88 खम्भों पर 52 फीट ऊंची इमारत टिकी हुई।

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बलुआ पत्थर से तैयार टांकला का संत किशनदास महाराज का रामद्वारा।
संत किशनदास महाराज