बठिंडा/ चंडीगढ़.निजी चीनी मिलों की तरफ से गन्ने की खरीद न करने से पैदा हुआ विवाद बुधवार को सीएम हाउस पर गहन मंथन के बाद 25 रु. क्विंटल सब्सिडी की घोषणा के साथ खत्म हो गया। पर साथ ही सवाल खड़ा हो गया है कि आर्थिक तंगी से गुजर रही सरकार 25 रु. प्रति क्विंटल सब्सिडी के हिसाब से करीब 157 करोड़ रु. कैसे अदा करेगी। क्योंकि गन्ना किसानों का 470 करोड़ रु. पिछले साल का ही बकाया पड़ा है, जिसमें 192 करोड़ तो सहकारी सेक्टर के ही हैं।
हालांकि, सरकार ने सब्सिडी भी जनवरी तक देने की बात की है, लेकिन ये कैसे संभव होगा, अभी सवाल है। साथ ही बकाए के भुगतान के लिए प्राइवेट मिलों की तरफ से लिए कर्ज पर ब्याज के रूप में 65 करोड़ रु. तुरंत जारी करने का भी एलान किया है।
सहकारी खरीद का टारगेट सिर्फ 30 फीसदी :
पंजाब में गन्ने का रकबा पिछले साल के मुकाबले 9 हजार हेक्टेयर बढ़कर इस बार 1.05 लाख था, जिससे 900 लाख क्विंटल गन्ने की पैदावार की उम्मीद है। मगर सहकारी खरीद का टारगेट मात्र 30 फीसदी ही होने से 70 फीसदी गन्ना उत्पादक फिर से प्राइवेट मिलों पर ही आश्रित रहेंगे।
पड़ोसी राज्यों से अब भी कम है गन्ने का दाम :
केंद्र सरकार ने गन्ने का समर्थन मूल्य 275 रुपए फिक्स कर रखा है। इस पर अब राज्य सरकार ने 25 रुपए का बोनस का एलान किया है। इस तरह अब किसान गन्ना 300 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेच सकेंगे। हालांकि, ये पड़ोसी राज्याें के मुकाबले कम है।
बकाये में से 192 करोड़ सहकारी मिलों का :
पिछले साल 842 लाख क्विंटल गन्ने की खरीद में से 470 करोड़ रुपए अभी बकाया पड़ा है। इसमें से 192 करोड़ सहकारी मिलों के हैं। फाजिल्का की सहकारी मिल के इसमें से 22 करोड़ रुपए हैं। मालवा में सबसे ज्यादा गन्ना यहीं पर 25 हजार हेक्टेयर में होता है, जबकि मोगा में 4 हजार और संगरूर में 4 हजार हेक्टेयर गन्ने की पैदावार होती है। संगरूर में गन्ने का 26 करोड़ रुपए बकाया है यहां धूरी में प्राइवेट शूगर मिल है।
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