एक शाम लता के नाम आयोजित
चंडीगढ़
एसी शक्सियत जिससे पूरी दुनिया परिचित है, एसी आवाज़ जिसने करोड़ों लोगों के दिल में जगह बनाई है, ऐसी अतुलनीय कला जो देश, काल और परिस्थिति के परे है और इन सबको एक नाम मे समाहित करें तो लता मंगेशकर याद आती हैं।
क्या रंग-ए-महफ़िल है दिलदारम — लता जी को श्रद्धांजलि अर्पित करने अमूल्य शुक्ल के साथ दो विशिष्ट अतिथि भी शामिल हुए ।
सुल्तान अर्शद ख़ान कराची से जो कि फिल्म संगीत पर महारथ रखते हैं।उनके साथ
विश्वास नेरुरकर मुंबई से जिन्होने लता जी पर पहली प्रामाणिक पुस्तक लिखी – “लता: गांधारस्वर यात्रा”।
वरिष्ठ अतिथिगणों ने लता जी की स्वर यात्रा सन 1950 से 1998 तक पर प्रकाश डाला। कुछ ऐसे अनसुने गीतों पर चर्चा की जो की कम चर्चीत है।
प्रोग्राम की शुरुवात शीर्षक गीत से हुई क्या रंगे महफिल है दिलदारम – फ़िल्म दिल दिया दर्द लिया से (1966) जिसमे नौशाद जी के अनोखे अंदाज में म्यूज़िक दिया- अरेबिक, वेस्टर्न और इंडियन का मिशरण को सराहा।
दो बीघा ज़मीन (1953) की ममत्व से भरी और करुणा की मिसाल दर्शाती लोरी पर भी गौर फरमाया गया – आ जा री निंदिया। इस गीत मे गीतकार शैलेंद्र ने माँ का दिल खोल कर उडेल दिया एक कवि की दृष्टी और सहित्यिक शैली ने एक मिसाल स्थापित करदी थी।
जैसे जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ता गया लता जी के कई रूपों से मिलने का अवसर मिला फ़िर चाहे फ़िल्म नई दिल्ली (1956) से तुम संग प्रीत लगाई रसिया जैसा नज़ाकत और टीस से भरा हुआ गीत हो या फ़िर मेरे हमदम मेरे दोस्त (1968) की कव्वाली – अल्लाह, ये अदा कैसी है। हर तरह से लता जी ने गायकी के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी हैं। इसी के साथ साथ आज कल की बॉलीवुड दुनिया में भी उनका बहुत गहरा असर है हम ना भुलें फ़िल्म दिल से (1998) का गीत – जिया जले जान जले जिसका कोई सानी नहीं है।
स्वर साम्राज्ञी लता जी को इस दुनिया को छोड़े हुए छ: माह हो गये। किन्तु हमारे लिए स्वर कोकिला सदैव जीवित रहेंगी। उन्होनें अपनी साधना और अनमोल योगदान से पार्श्व गायन को एक ऐसा शिखर दिया है जो अप्रतिम है।
अमूल्य विरासत की तरफ से लता जी को समर्पित विशेष काव्याञ्जलि बहुत ही मनोरंजक रही।
अमूल्य विरासत द्वारा इस शनिवार को विशेष ऑनलाइन कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसका शीर्षक है –क्या रंग-ए-महफ़िल है दिलदारम। लता जी के अलग-अलग मूड के गीत। दर्शकों को लता जी की गायकी और उनके अनोखे अन्दाज़ से रुबरु करवाया गया।
साहित्य, संगीत एवं फिल्म प्रेमी इस कार्यक्रम से ऑनलाईन जुड़ सकते हैं, अमूल्य शुक्ल के फेसबुक चैनल के जरिए। यह शो शनिवार/रविवार शाम 5 बजे होता है – किसी प्रेरणादायक हस्ती के जीवन और रचना संसार पर केन्द्रित। संपर्क ईमेल – amulyavirasat@gmail.com
अमूल्य टॉक्स/काव्यांजलि को ज़ूम के माध्यम से और फेसबुक पर लाइव स्ट्रीमिंग के जरिये लाइव प्रस्तुत किया जाता है।