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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

खैहरा ने पराली जलाने को फिर ठहराया जायज, सरकार को बताया जिम्‍मेदार

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जालंधर। दिल्ली व पंजाब समेत कई राज्यों में परली पिछले कई दिनों से स्माॅग के कारण सांस लेना तक दूभर हो रहा है। इसके लिए किसानों द्वारा पराली जलाने को जिम्‍मेदार माना जा रहा है, लेकिन पंजाब में अाम आदमी पार्टी के नेता व विधानसभा में नेता विपक्ष सुखपाल सिंह खैहरा की राय इससे जुदा है। उन्‍होंने पराली जलाए जाने का खुलेआम समर्थन किया है। खैहरा ने पिछले दिनों पराली जलाई थी और आज उन्‍होंने फिर अपने इस कदम को सही करार दिया। उन्‍होंने पराली जलाए जाने के लिए केंद्र और राज्‍य सरकारों को जिम्‍मेदार ठहराया।
खैहरा ने समराला में पराली जलाने के अपने प्रदर्शन को पूरी तरह ठीक ठहराया। उन्‍होंने रविवार को यहां कहा कि वह पंजाब के समराला में कुछ समय पहले पराली जलाने के अपने टोकन प्रोटेस्ट (सांकेतिक प्रदर्शन) पर अब भी कायम हैं। ऐसा कर उन्‍होंने कोई गलत कार्य नहीं किया।
यहां सर्किट हाउस में पत्रकारों से बातचीत में खैहरा ने कहा कि पराली जलाने पर रोक के नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के दो साल पहले दिए फैसले का पालन नहीं किया गया। फैसले के क्लाज 14  में केंद्र व राज्य सरकारों को निर्देश दिया गया था कि पराली के सही निपटारे के लिए मशीनरी, दूसरे साधन किसानों को उपलब्ध करवाए जाएं। इसके लिए किसानों को बाकायदा ट्रेनिंग भी दी जाए।
उन्‍होंने कहा, केंद्र और पंजाब में राज्य सरकार ने ऐसा कुछ नहीं किया। इसके लिए आखिर कौन जिम्मेवार है? पराली जलाने का मेरा प्रोटेस्ट इसी को लेकर था। उन्होंने आरोप लगाया कि पंजाब को पराली जलाने पर रोक के लिए मिली 94 करोड़ रुपये की राशि का भी इस काम के लिए उपयोग नहीं किया गया।
खैहरा ने कहा कि इसी कारण राज्‍य में 99 प्रतिशत किसानों ने इस बार भी पराली जलाई क्योंकि ऐसा न करने के लिए उन्हें कोई सब्सिडी भी नहीं दी गई। यह पूछे जाने पर कि पंजाब में बिहार व पूर्वी यूपी की तरह जमीन पर पानी छिड़का कर उस पर ट्रैक्टर चला पराली को जमीन में क्यों नहीं मिला दिया जाता, तो उनका कहना था कि वहां बहुत कम रकबे में धान की फसल बोई जाती है। पंजाब में इसकी खेती का रकबा बहुत ज्यादा है।
यह पूछे जाने पर कि पराली की समस्या से निपटने के लिए पंजाब में भी किसानों को खेती विभिन्नता के तहत धान की बजाए क्या दूसरी फसलें नहीं बीजनी चाहिए तो उनका कहना था कि ऐसा होना चाहिए। धान की खेती के कारण पंजाब में भूजल स्तर भी काफी गिर चुका है। लेकिन, यदि कुछ किसान ऐसा करना चाहते हैं तो उन्हें दूसरी फसलों का वो दाम नहीं मिलता जो मिलना चाहिए। ऐसा ही इस समय गन्ने के मामले में हो रहा है।
उन्होंने कहा कि किसान भी पराली जलाने के हक में नहीं क्योंकि इस कारण होने वाले प्रदूषण का सबसे पहले वे ही शिकार होते हैं। इसके साथ ही उन्होंने सवाल उठाया कि पराली तो एक महीने ही जलती है। ऐसे में साल भर होने वाले प्रदूषण के लिए क्या पराली जलाना ही मुख्य कारण है? क्या इंडस्ट्रियल या वाहनों से होनेवाला प्रदूषण या गारबेज बर्निग इसके लिए जिम्मेदार नहीं। इन पर भी तो रोक लगे।