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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

चीन-अमेरिका की परवाह नहीं, WEF के मंच पर मोदी ने बताई दुनिया के सामने क्या है 3 बड़ी चुनौतियां

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दावोस में आज एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी में लोगों को संबोधित किया. उन्होंने इस वैश्विक मंच पर ‘नमस्कार’ से अपना संबोधन शुरू किया. इस मंच पर मोदी ने जोरदार तरीके से दुनिया के सामने अपनी बातें रखीं. उन्होंने वैश्विक ताकतों की परवाह किए बगैर वो तीन मुद्दे उठाए जिससे कई बड़े देश कठघरे में खड़े हो गए. उन्होंने कहा कि इस वक्त दुनिया के सामने तीन बड़ी चुनौतियां और तीनों चुनौतियां के बारे में पीएम मोदी विस्तार से दुनिया को आगाह किया.
1. पहली चुनौती (जलवायु परिवर्तन)- दुनिया के लिए जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा खतरा है. ग्लेसियर्स पीछे हटते जा रहा है. आर्कटिक की बर्फ पिघलती जा रही है. बहुत से द्वीप डूब रहे हैं, या डूबने वाले हैं. बहुत गर्मी और बहुत ठंड, बेहद बारिश और बाढ़ का सूखा. बिगड़ता मौसम का प्रभाव दिन-ब-दिन बढ़ रहा है. हर कोई कहता है कि कार्बन उर्त्सजन को कम करना चाहिए. लेकिन ऐसे कितने देश या लोग हैं जो विकासशील देशों और समाजों को उपयुक्त टेक्नोलॉजी उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक संसाधन मुहैया कराने में मदद करना चाहते हैं.
हजारों साल पहले हमारे शास्त्रों में मानव को भूमि मां का पुत्र बताया गया था. अगर ऐसा है तो मानव और प्रकृतिक के बीच जंग क्यों चल रही है. सबसे प्रमुख उपनिषद में कहा गया था- संसार में रहते हुए उसका त्याग पूर्वक भोग करो, और किसी दूसरी की संपत्ति का लालच मत करो. ढाई हजार साल पहले अपरिग्रह को अपने सिद्धांतों में अहम स्थान दिया.

2. दूसरी चुनौती (आतंकवाद)- इस संबंध में भारत की चिंताओं और विश्व भर में पूरी मानवता के खतरे से आप सब परिचित हैं. सब सरकारें परिचित हैं. आतंकवाद जितना खतरनाक है, उससे भी खतरनाक गुड टेरिरिस्ट और बैड टेरिरिस्ट के बनाया गया भेद है. भारत सालों से आतंकवाद से पीड़ित है. हर मंच पर भारत आतंकवाद के खिलाफ दुनिया को आगाह करता है. लेकिन जब गुड टेरिरिस्ट और बैड टेरिरिस्ट की बात होती है तो आतंक के खिलाफ एकजुटता को चोट पहुंचती है. आज आतंकवाद केवल एक देश की समस्या नहीं है. आज सभी को इसे एक नजरिये से देखने की जरूरत है.

3. तीसरी चुनौती (आत्मकेंद्रित होना)- ग्लोबलाइजेशन अपने नाम के विपरीत सिकुड़ता चला जा रहा है. मैं यह देखता हूं कि बहुत से समाज और देश ज्यादा से ज्यादा आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं. ऐसा लगता है कि ग्लोबलाइजेशन अपने नाम के विपरीत सिकुड़ रहा है. इस प्रकार की मनोवृत्तियां और गलत प्राथमिकताओं के दुष्परिणाम को जलयावु परिवर्तन या आतंकवाद के खतरे से कम नहीं आंका जा सकता. हालांकि हर कोई इंटरकनेक्टेड विश्व की बात करता है. लेकिन ग्लोबलाइजेशन की चमक हो रही है. यून मान्य है, डब्ल्यूटीओ मान्य है पर क्या आज की व्यवस्था को परिलक्षित करते हैं क्या?