रेटिनल डिटैचमेंट बीमारी की वजह से बमुश्किल दुनिया को देख सकने वाले मदन की कलाकारी का अद्भुत नमूना किसी द्रव्य दृष्टि का ही कमाल लगता है
चंडीगढ़
कुरुक्षेत्र के श्री कृष्ण अर्जुन मन्दिर के लिए इटली के मीलान शहर में 2 करोड़ रुपये की लागत से बन रही विश्व की सबसे बडी गीता के बनने से पहले, करोड़ों साल का कैलेण्डर बनाने वाले 72 वर्षिय, एडवोकेट मदन मोहन वत्स ने विश्व की सबसे लम्बी (1365 मीटर) श्रीमद्भगवद्भीता ई126/ टी-90 वी एच एस 15 मिलीमीटर चौडी, केवल 510 ग्राम रिबन पर 905 घण्टे लगा कर एक नया इतिहास रच डाला। मदन वत्स जानते थे कि लिखे जाने के बाद रिबन की लम्बाई और समय मापना समभ्व नहीं होगा, इसलिए उन्होंने एक एक श्लोक लिखने के बाद उसकी लम्बाई और लिखने में लगा समय नोट कर लिया था। इस काम के लिए उन्होंने 10 वी. एच. कैसेट का इस्तेमाल किया।
18 अध्यायों के 700 श्लोकों व अन्य सामग्री को संस्कृत व हर श्लोक के बाद गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानन्द जी के पद्यनुवाद को अंकित किया है। इसमें उन्होंने 20 विख्यात विचारकों जैसे महात्मा गाँधी, मदन मोहन मालविय, बालगंगाधर व लोकमान्य तिलक आदि के संक्षिप्त विचार भी लिखे हैं। पहले 10 कैसेटों को लिखा गया। फिर उन्हें तरतीब देने के लिए हाथ से ही सीधा किया गया। फिर एक 10″ की बडी कैसेट पर उन्हें बारी बारी हाथ मे ही घुमा कर लपेटा गया। यह रिबन एक कैसेट से दूसरी कैसेट पर जाने के लिए एक विशेष इवल पट्टी (12″ × 2″) से गुजरता है, जहां इस पर लिखी सामग्री पढ़ी जा सकती है। 12 वोल्ट की दो मोटरों और एक बैट्री द्वारा संचालित यह दो कैसटें (दो स्टैण्ड पर खड़ी) अपनी सुविधा के अनुसार किसी भी गति से चलाई जा सकती है।
वत्स का गीता जी को अलग अलग रूप में प्रस्तुत करने का अनोखा शोक है। इससे पहले उन्होंने गीता जी को संस्कृत भाषा में एक 44″ x 29″ के पन्ने पर प्रस्तुत किया फिर इसके पद्यनुवाद को 29 ” x 14″ के पन्ने पर पेश किया। एक अन्य कृति में उन्होंने सभी श्लोक कृत्रिम पीपल के पत्तों पर लाकर एक कृत्रिम वृक्ष बनाया। यह कृतियां, गीता ज्ञान संस्थानम, कुरुक्षेत्र के मयूजियम में देखी जा सकती है।
शीघ्र ही मदन मोहन गीता जी के सभी श्लोकों को पीपल वृक्ष के असली पतों पर लिख कर एक 3% उंची पुस्तक के रूप में पेश करने वाले हैं। उसके उपरान्त वह इन पतों से एक 9- 10′ उंचा 18 टहनियों नाला वृक्ष बनाने जा रहे है। उनका कहना है कि भारत में प्रतिभा को कमी नहीं केवत कलाकार को प्रोत्साहन व सम्मान देने की आवश्यकता है। किन्तु यह भारत है। यहाँ यही कहावत लागू होती है “घर का जोगी जोगडा, बाहर का जोगी सिद्ध” ।