“हम हैं ना” से “हम भी हैं” तक का सफर
जय हिंद
आज हम अपने देशवासियों के आगे अपनी एक फरियाद लेकर आए हैं। आप स्वयं निर्णय करें कि हम कहां तक सही हैं और कितने गलत?
हमने देश की रक्षा करने में अपनी जिंदगी के कई सुनहरे वर्ष बिताए। किसी से कुछ मांगने की बजाय देने में विश्वास किया क्योंकि देश को गुलामी से मुक्त होने के लिए बहुत-सी कुर्बानियां देनी पड़ी थी। कितने ही देशभक्त हंस-हंसकर फांसी के फंदे पर झूल गए थे इस देश को आजाद करवाने हेतु। देश आजाद हुआ तो अपनी आजादी को बरकरार रखने के लिए फिर से देश पर कुर्बान होने का जज्बा रखने वाले तेज तरार दिमाग चाहिए थे। अतः देश के जवानों ने जान हथेली पर रखकर कई बार देश के दुश्मनों को यहां से मार भगाया।
गरीबी और भुखमरी से देश त्रस्त था, हमारे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने “जय जवान -जय किसान” का नारा दिया तो देशवासियों ने मिलकर देश को हर मुश्किल से निकाल लिया।
कितनी अजीब विडंबना है कि देश को हर मुश्किल घड़ी से बाहर निकालने वालों को हमारी राजनीतिक व्यवस्था ने पूरी तरह हाशिए पर धकेल दिया। अफसरशाही ने देश को खजाना कारपोरेट के हवाले करने का हर संभव प्रयास किया। परिणाम स्वरूप सदैव अनुशासन में रहने वाले हम लोगों को भी अपने अधिकारों की रक्षा हेतु आज यहां एकत्रित होना पड़ा है।
देश हम सबका है। हमने तो इसकी खुशहाली को अपने खून से सींचा है। हमें ही अब पूरी तरह से किनारे कर दिया गया। हमें सिर्फ जिम्मेदारियां सौंपी जाती हैं लेकिन हमारी तकदीर के फैसले लेने का अधिकार किसी और को दे दिया जाता है। आखिर क्यों?
हम राजनीति में आकर कुछ सुधार करना चाहते हैं। देश को पूरी तरह अपनी गिरफ्त में लेने वाले भ्रष्टाचार नामक दैत्य को खत्म करना चाहते हैं लेकिन यहां हर जाति, धर्म, वर्ग के लिए सीटें आरक्षित हैं किंतु हमारे लिए नहीं। आज हम यही सवाल पूछने के लिए एकत्र हुए हैं। सभी राजनीतिक पार्टियों के प्रतिनिधियों को हमने इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रण भेजा था।
हम जानना चाहते थे कि किस राजनीतिक पार्टी के पास हमारे लिए क्या एजेंडा है। देश के लिए कुछ भी कर गुजरने की तमन्ना आज भी है। देशवासियों की रक्षा हेतु “हम हैं ना” लेकिन राजनीतिक व्यवस्था में अपना महत्व जानने के लिए हम कहना चाहते हैं कि
“हम भी हैं”
(सरफिरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है जोर कितना बाजू ए कातिल में है?)