चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री।15 विंटर नेशनल थियेटर फेस्टिवल के चौथे दिन बाल भवन के प्रांगण में दो दिवसीय गतका वर्कशॉप का समापन हो गया वर्कशॉप का संचालन चर्चित गतका प्रोफेशनल नरेंद्र नीना जी के नेतृत्व में किया गया, जोकि अपनी अकादमी शहीद बाबा दीपसिंह जी के माध्यम से गतका शैली को नए आयाम दे चुके हैं और देश विदेश में गतका का परचम लहरा चुके हैं ।देश विदेश में लगभग हजारों गतका प्रस्तुतियां दे चुके नरेंद्र नीना जी ने गतका के गुर बचपन में हीसीखने शुरू किए और उसके बाद भांगड़ा से लेकर रंगमंच और बीते वर्षों में सिल्वर स्क्रीन पर भी अपनेअभिनय का लोहा मनवाया है । 30 दिन के इस महाकुंभ में युवा कलाकारों को मार्शल आर्ट की बारीकियोंसे अवगत कराने आए नरेंद्र जी ने इस विधा के इतिहास से भी रंगकर्मियों को अवगत करवाया. उन्होंनेबाते कि यह विधा भले ही पुरानी है लेकिन एक समय ऐसा आया था कि यह कला विलुप्ति की कगारपर पहुँच गयी थी. यह वो दौर था जब औरंगजेब ने अपने राज में घुड़सवारी और वर्जिश पर बिल्कुल रोक लगा दी थी, तो आलस का दौर भगाने के मकसद से गुरुजी ने इस शैली को पुनार्जीनित कर इसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाया और इसके प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाई।पहले दिन प्रारंभिक स्टेप्स सिखाने के बाद नरेंद्र नीना जी ने सिखाने के क्रम को आगे बताते हुए लाठी को डिफेन्स के साथ साथ अटैक के लिए भी इस्तेमाल करना सिखाया. लाठी को घुमाने के सही तकनीक के बारे में भी जानकारी दी. उन्होंने बताया कि यह कला भले ही पुरानी है लेकिन युवाओं में इसे लेकर उत्साह में कोई कमी नहीं आई है.गतका का थिएटर से जुड़ाव पर उन्होंने बताया की गतका जैसी प्रख्यात शैली फिजिकल थिएटर का एक बहुत जरूरी हिस्सा है. यह कला आपके शरीर को सुदृढ़ तो बनाती ही है साथ ही माईथोलाजीकल नाटकों में भूमिका निभाने में भी आपके बहुत काम आती है. कलाई की मजबूती को इस शैली का अहम किरदार मानते हुए नरेन्द्र जी ने ने प्रतिभागियों को कलाई से जुड़े अभ्यास भी करवाए हॉर्टिकल्चर विभाग में जेइ के पद पर तैनात नीना जी वह स्वयं कई वर्षों से थिएटर से जुड़े हैं और समय-समय पर वह नाटकों में भी इसका प्रयोग करते रहते हैं। उनके मुताबिक इस विधा को अपनाने के लिए जिंदगी में ठहराव बहुत ज़रूरी है, जिसके लिए वो स्वयं और अपने स्टूडेंट्स को मेडिटेशन करने की सलाह देते हैं । सबसे गौर फरमाने लायक बात यह है कि उनके अकादमी में 8 साल से लेकर 80 साल तक के हर आयु वर्ग के युवा और बुजुर्ग गतका का प्रशिक्षण लेने पहुंचते हैं। वह ट्राईसिटी की लड़कियों को भी समय समय पर आत्मरक्षा का प्रशिक्षण देते रहते है । गतका उनके उनके जीवन पर पर इतना प्रभाव है कि पूरा परिवार ही उसके साथ जुड़ा है, साथ ही उन्होंने अपने पुत्र हरकीरत पाल सिंह और सुपुत्री अमृतपाल कौर को भी उन्होंने बहुत ही कम उम्र में गतका शैली से अवगत कराया । जो उस विधा की शिक्षा को आगे बढ़ाने में उनका सहयोग करते नजर आते है. टीएफटी से जुड़े अपने अनुभवों के बारे में याद करते हुए नरेंद्र जी ने बताया कि उन्हें सुदेश शर्मा जी के निर्देशन में रंगमंच से जुडऩे के देशभर में अनेकों शोज़ करने के मौके भी मिले।
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020