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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

प्री-मैच्योर बच्ची को मैक्स हॉस्पिटल में मिली नई जिंदगी

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चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री। जन्म के समय सिर्फ 550 ग्राम वजन व 27 सप्ताह की प्रीमैच्योर बच्ची सभी मुश्किलों से लड़ती हुई आखिर एक सामान्य व स्वस्थ जिंदगी प्राप्त करने में सफल रही। मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, मोहाली के डॉक्टरों ने बच्ची को स्वस्थ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वहीं बच्चे के माता-पिता बलजीत कौर और बलजीत सिंह खुशी से अभिभूत हैं, जिनके लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं है कि पूरी तरह से रिकवरी प्राप्त करने के बाद उनकी बच्ची उनके साथ पूरी तरह से फिट और स्वस्थ है चंडीगढ़ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए बलजीत कौर ने कहा कि ‘‘इस खूबसूरत पल का अनुभव न कर पाने का ख्याल मुझे दिनों तक सताता रहा। मैं अब असीम आनंद और अपने आप को संपूर्ण महसूस करती हूं । इस जटिल मामले के बारे में बात करते हुए, डॉ. मनु शर्मा, कंसल्टेंट पीडियाट्रिक्स और नियोनेटोलॉजी, मैक्स हॉस्पिटल, मोहाली का कहना है कि ‘‘संघर्ष लंबा था और अंतहीन था और बच्चे के जीवित रहने की संभावना काफी कम थी। बच्ची को काफी देर तक वेंटीलेटर पर भी रखा गया और करीब 3 महीनों तक एनआईसीयू में इनक्यूबेटर में रखा गया था। बच्ची को कई अन्य तरह की मुश्किलें भी थी, जिनमें फेफड़ों (एचएमडी) का पूरी तरह से विकसित ना होना, दिल में छेद (पीडीए), इंफेक्शन (नियोनटाल सेप्सिस), शॉक और पोषण सहित विभिन्न जटिलताओं से पीडि़त था। बच्ची को फेफड़ों अविकसित होने और गंभीर इंफैक्शन के लिए उपचार, असामान्य रूप से लो ब्लड प्रेशर और हृदय में छेद के लिए सर्फेक्टेंट उपचार की आवश्यकता होती है। उसे वैकल्पिक रूप से वैकल्पिक न्यूट्रीशन दिया गया।’’डॉ. मनु ने कहा कि ‘‘हमने तब आशा की एक किरण देखी जब बच्चे ने धीरे-धीरे स्तनपान व कंगारु मदर केयर से सुधार करना शुरू कर दिया। संदीप डोगरा, सीनियर वाइस प्रेसिडेंट और जोनल हैड, मैक्स हॉस्पिटल्स, पंजाब ने कहा कि मैक्स से छुट्टी के समय, बच्चे का वजन लगभग 1,350 ग्राम और पूरी तरह से स्तनपान कर रही थी। बच्ची न्यूरोलॉजिकल रूप से सामान्य थी और उसने चम्मच से भी अच्छी तरह से खाना खाना शुरू कर दिया था और उसके सुनने की क्षमता और दृष्टि सामान्य थी। डॉ.शर्मा ने कहा कि 600 ग्राम से कम वजन के साथ पैदा होने वाले बच्चों में से सिर्फ 10 प्रतिशत ही बेस्ट केयर मिलने के चलते ही जीवित बच पाते हैं। कुछ समय पहले तक सामान्य तौर पर 500 ग्राम के बच्चे के मामले में डॉक्टर्स द्वारा गर्भपात करवाना ही उचित समझते थे। भारत में हाल तक 28 सप्ताह से कम के बच्चे को संभालना काफी दुर्लभ है।