Chandigarh Today

Dear Friends, Chandigarh Today launches new logo animation for its web identity. Please view, LIKE and share. Best Regards http://chandigarhtoday.org

Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

उत्तरप्रदेश में महागठबंधन बेअसर, शुरुआती रुझानों में भाजपा आगे

0
85

  • मोदी वाराणसी से आगे, अमेठी में राहुल गांधी स्मृति से पीछे चल रहे हैं
  • सोनिया रायबरेली, राजनाथ सिंह लखनऊ, रविकिशन गोरखपुर से आगे
  • उप्र में 80 लोकसभा सीटें, 2014 में एनडीए ने 73 जीतीं, सपा को 5 और कांग्रेस को 2 सीटें मिली थीं

लखनऊ. लोकसभा चुनाव की मतगणना शुरू हो चुकी है। उत्तरप्रदेश में शुरुआती रुझान में भाजपा आगे दिख रही है। यहां गठबंधन का कोई खास असर नहीं दिख रहा है। उप्र में सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं। 2014 में इनमें से एनडीए को 73 पर जीत मिली थी। देखना है कि वह इस बार पिछला प्रदर्शन दोहरा पाता है या गठबंधन फॉर्मूला हिट होता है?

26 साल बाद सपा-बसपा का गठबंधन हुआ

मुलायम सिंह यादव ने 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था। 1993 के विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ। तब बसपा की कमान कांशीराम के पास थी। सपा 256 और बसपा 164 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। सपा को 109 और बसपा को 67 सीटें मिली थीं। हालांकि, 2 जून 1995 को गेस्ट हाउस कांड के बाद यह गठबंधन टूट गया। तब लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में मायावती के साथ सपा समर्थकों ने बदसलूकी की थी।
 

2014 में सपा-बसपा साथ लड़ते तो क्या नतीजे होते?

2014 में उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा और रालोद ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। जबकि भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। एनडीए ने 73 पर जीत हासिल की थी। इनमें से 31 सीटों पर सपा, 34 पर बसपा और एक पर रालोद दूसरे स्थान पर रही थीं। तब ये दल मिलकर लड़े होते तो वोट प्रतिशत (22.3+19.8+0.9) 43% हो जाता। तब यह भाजपा और उसके सहयोगी के वोट प्रतिशत (42.6+1) से 0.6% कम रहता। सपा, बसपा और रालोद मिलकर चुनाव लड़ते और पूरे वोट ट्रांसफर करने में कामयाब हो जाते तो 53 सीटें ऐसी थीं जिन पर ये एनडीए उम्मीदवारों से ज्यादा वोट हासिल कर सकते थे।

 

2014 के नतीजे

पार्टी    सीटें वोट प्रतिशत
भाजपा 71 42.6%
सपा 22.3%
कांग्रेस 7.5%
अपना दल 2 1%
बसपा 0 19.8%
आरएलडी 0 0.9%

कांग्रेस ने 73 सीटों पर लड़ा चुनाव, प्रियंका-सिंधिया को महासचिव बनाया
कांग्रेस और सपा 2017 का विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ी थीं। हालांकि, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को गठबंधन में शामिल नहीं किया गया है। गठबंधन ने अमेठी और रायबरेली से उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया था। वहीं, कांग्रेस ने भी सात सीटें गठबंधन के लिए छोड़ दी थीं। कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव से पहले प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया को उत्तरप्रदेश की जिम्मेदारी देते हुए पार्टी का महासचिव बनाया था। प्रियंका ने पहली बार सक्रिय राजनीति में कदम रखा और पूर्वी उत्तरप्रदेश की लगभग हर सीट पर प्रचार किया। 

उत्तरप्रदेश: मोदी ने 31, राहुल ने 17 जनसभाएं कीं
इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य फोकस उत्तरप्रदेश-बंगाल और ओडिशा में रहा, वहीं राहुल ने केरल, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ को तवज्जो दी। मोदी ने उत्तरप्रदेश में 29 और राहुल गांधी ने 17 रैलियां कीं। 

उत्तरप्रदेश की बड़ी सीटें

नरेंद्र मोदी (वाराणसी): मोदी इस सीट से लगातार दूसरी बार चुनाव मैदान में रहे। शालिनी यादव सपा-बसपा की संयुक्त उम्मीदवार थीं। वहीं, कांग्रेस ने अजय राय को दोबारा टिकट दिया।

सोनिया गांधी (रायबेरली): यह कांग्रेस की परंपरागत सीट है। सोनिया यहां से लगातार तीन बार सांसद रही हैं। इस सीट से दो बार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और एक बार फिरोज गांधी भी संसद चुने गए थे। इस बार सोनिया के खिलाफ भाजपा ने दिनेश प्रताप सिंह को टिकट दिया। सपा-बसपा गठबंधन ने उम्मीदवार नहीं उतारा।

राहुल गांधी (अमेठी): वे अमेठी और केरल की वायनाड सीट से चुनाव लड़े। अमेठी से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को दोबारा टिकट दिया। पिछली बार वे यहां से हार गई थीं। सपा-बसपा गठबंधन ने इस सीट से भी कोई उम्मीदवार नहीं उतारा। 

राजनाथ सिंह (लखनऊ): भाजपा का गढ़ कही जाने वाली इस सीट से वे लगातार दूसरी बार चुनाव लड़े। पिछली बार वे जीते थे। सपा ने यहां से शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम और कांग्रेस ने प्रमोद कृष्णम को टिकट दिया। इस सीट से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पांच बार सांसद रहे। 

मुलायम सिंह यादव (मैनपुरी): 2014 में वे मैनपुरी के साथ ही आजमगढ़ से भी चुनाव लड़े थे और दोनों सीटों पर जीते थे। हालांकि, बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट अपने पौत्र तेज प्रताप सिंह यादव के लिए छोड़ दी थी। मुलायम इस सीट से चार बार चुनाव जीते।

अखिलेश यादव (आजमगढ़): इस सीट पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का मुकाबला भाजपा उम्मीदवार और भोजपुरी फिल्म स्टार दिनेश लाल यादव निरहुआ से था। कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। 

मेनका गांधी (सुल्तानपुर): केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के लिए यह सीट नई थी। पिछली बार वे पीलीभीत से जीतकर संसद पहुंचीं थीं। इस बार उन्होंने वह सीट बेटे वरुण गांधी के लिए छोड़ दी। कांग्रेस ने पूर्व सांसद संजय सिंह को टिकट दिया है। मेनका पीलीभीत से 6 बार सांसद रह चुकी हैं।

वरुण गांधी (पीलीभीत): भाजपा के युवा नेता वरुण पीलीभीत सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वे 2014 में सुल्तानपुर से चुनाव जीते थे। वरुण यहां से 2009 में लोकसभा चुनाव जीते थे।

अजीत सिंह (मुजफ्फरनगर): इस सीट पर 2013 दंगों के बाद जाट और मुस्लिम समुदाय अलग हो गया था। 2014 में यह सीट भाजपा के खाते में आ गई थी। इस बार यहां से रालोद प्रमुख अजीत सिंह मैदान में हैं। 2014 में वे अपने गढ़ बागपत में हार गए थे। उनका मुकाबला केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान से है।

डिंपल यादव (कन्नौज): उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और सपा मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव इस बार भी कन्नौज सीट से चुनाव लड़ रही हैं। 2014 में उन्होंने भाजपा के सुब्रत पाठक को हराया था। इस बार भी भाजपा ने पाठक पर ही भरोसा जताया है। अखिलेश भी इस सीट से तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। 

इस बार के एग्जिट पोल में अनुमान: 

उप्र : कुल 80 सीटें भाजपा+ महागठबंधन कांग्रेस
एबीपी न्यूज 33 45 2
इंडिया टुडे-एक्सिस 62-68 10-16 1-2
इंडिया न्यूज-पोलस्ट्रेट 37 40 2
टाइम्स नाऊ-वीएमआर 58 20 2
रिपब्लिक-सी-वोटर 38 40 2
न्यूज 18 60-62 17-19 1-2
न्यूज 24-चाणक्य 65 13 2