साइंस डेस्क. धरती पर गिरने वाले उल्कापिंड की उत्पत्ति के अंतरिक्ष स्थित स्रोत का पता चला है। जर्नल ‘मीटियोरिटिक्स एंड प्लैनेटरी साइंस’ में प्रकाशित रिसर्च में बताया गया है कि ‘टूटते हुए तारे’ कहलाने वाले उल्कापिंड अमूमन अंतरिक्ष के सिर्फ दो ऐसे क्षेत्रों से धरती पर गिरते हैं, जहां अपार मलबा जमा है।
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रिसर्च के मुताबिक, एस्टेरॉइड बेल्ट में कई सारे ऐसे क्षेत्र होते हैं, जहां बहुत छोटे-छोटे ग्रहों के टकराने से निकला मलबा इकट्ठा होता है। इन्हीं मलबों के टुकड़ों को एस्टेरॉइड या क्षुद्रग्रह कहा जाता है जो लगातार टकराते रहते हैं। इन्हीं से उल्कापिंडों का निर्माण होता है।
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इस रिसर्च में अमेरिका के दो अलग-अलग क्षेत्रों में गिरे उल्कापिंडों का अध्ययन किया गया। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के एम्स रिसर्च सेंटर के रिसर्चर पीटर जेनिस्केंस ने बताया, ‘”कैलिफोर्निया के क्रेस्टन में 2015 और नोवाटो में 2012 में जो उल्कापिंड गिरे, उनका अंतरिक्ष में एक ही स्रोत था। ये दोनों ही उल्कापिंड ‘एल कोंड्राइट्स’ नाम की कैटेगरी के थे, जो धरती पर गिरने वाले सबसे आम उल्कापिंड होते हैं।’’
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जब उल्कापिंड 16 किमी प्रति सेकंड की रफ्तार से क्रिस्टन के पास आ रहा था, तब अमेरिका के सनीवेल में स्काई कैमरा से इसकी फोटो ली गई थी। जेनिस्केंस ने बताया, “ये उल्कापिंड किस दिशा से और कितनी दूरी से धरती पर आ रहा था, इसका पता लगाने के लिए हम कैलिफोर्निया के सभी स्काई कैमरों को देख रहे हैं।” उन्होंने बताया, इस प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए ऑस्ट्रेलिया की कर्टिन यूनिवर्सिटी के सहयोग से एक लैब भी बनाई गई है।
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33 वैज्ञानिकों ने क्रेस्टन और नोवाटो में गिरने वाले उल्कापिंडों की तुलना की। अमेरिका के बर्कली में स्थित कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के कोस्मोकेमिस्ट कीस वेल्टन का कहना है कि, “क्रेस्टन में जो उल्कापिंड गिरा था, वह लगभग 4.5 करोड़ साल तक अंतरिक्ष में था जबकि नोवाटो में जो उल्कापिंड गिरा था, वह 90 लाख साल से ही अंतरिक्ष में था।”