खेल डेस्क. कपिल देव के 1978 में सामने आने के बाद से किसी अन्य भारतीय तेज गेंदबाज ने अपने टेस्ट करिअर के पहले साल में उतनी छाप नहीं छोड़ी थी, जितनी जसप्रीत बुमराह ने छोड़ी है। साल 2018 की शुरुआत में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पहले टेस्ट मैच के लिए उनके चयन के बाद काफी आशंकाएं जताई गई थीं। लेकिन, इसके 12 महीने के भीतर बुमराह भारतीय आक्रमण के लीडर बन गए हैं।
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टेस्ट क्रिकेट में 434 विकेट ले चुके दुनिया के महानतम ऑलराउंडरों में से एक कपिल के साथ तुलना करना बहुत समझदारी नहीं होगी। केवल गेंदबाज के तौर पर कपिल के आस-पास आने के लिए बुमराह को कम से कम एक दशक तक ऐसा ही प्रदर्शन करते रहना होगा। लेकिन, इतना तो तय है कि बुमराह ने भारतीय गेंदबाजी को वह धार दी है, जो लंबे समय से गायब थी। बुमराह ने मेलबर्न टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया की पहली पारी में छह विकेट लेकर अपनी क्षमता दिखाई। पिच में दोहरी उछाल थी। लेकिन बुमराह को उनकी स्किल, कंट्रोल और बुद्धिमानी की वजह से सफलता मिली।
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आखिर बुमराह की कामयाबी का क्या राज है? अपरंपरागत स्टाइल और अप्रोच से लाभ मिला है, इसमें कोई शक नहीं है। उनके छोटे रन अप और ओपन चेस्टेड एक्शन से उनकी गति और उछाल का अंदाजा लगाना काफी मुश्किल है। आधुनिक क्रिकेट में वीडियो और डेटा एनालिसिस खूब होती है। ऐसे में इस तरह के सरप्राइज एलिमेंट ज्यादा लंबे समय तक बरकरार नहीं रह सकते हैं। ऐसे में बुमराह की अन्य खूबियां काम आती हैं। लाइन और लेंथ पर उनका गजब का नियंत्रण है। ढीली गेंदें वे बहुत कम फेंकते हैं और बल्लेबाज को लगभग हर गेंद खेलने के लिए मजबूर करते हैं।
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पिछले कुछ सालों में बुमराह ने अपनी तरकश में नए तीर भी शामिल किए हैं। वे गेंद को दोनों ओर स्विंग कराने लगे हैं। बल्लेबाज की अलग-अलग एंगल पर परीक्षा लेने के लिए क्रीज की चौड़ाई का पूरा इस्तेमाल करते हैं। शॉर्ट पिच गेंद का इस्तेमाल सूझ-बूझ के साथ करते हैं और स्लोअर गेंद को सरप्राइज की तरह उपयोग में लाते हैं।
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बुमराह सीखने के लिए बेताब रहते हैं। वे लगातार अपनी स्किल को बेहतर करने में लगे रहते हैं। यह सब उनके प्रदर्शन में झलकता है। उन्होंने सिर्फ 9 टेस्ट मैचों में 47 विकेट लिए हैं। उनका स्ट्राइक रेट 47.1 का है। बुमराह का उदय अन्य भारतीय गेंदबाजों खासकर इशांत शर्मा और मोहम्मद शमी के बेहतरीन प्रदर्शन के साथ हुआ है। इनकी बदौलत भारतीय क्रिकेट स्पिन से तेज गेंदबाजी में शिफ्ट हो गई है।
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यह एक शानदार कहानी रही है। तीनों ने मिलकर इस साल 134 विकेट लिए हैं। यह असाधारण और अभूतपूर्व आंकड़ा है। इससे पहले कभी भी भारतीय तेज गेंदबाजों ने एक साल में इतने विकेट नहीं लिए थे। यही वजह है कि इस साल दो टेस्ट मैचों में भारत की प्लेइंग इलेवन में एक भी स्पिनर शामिल नहीं था।