रत्न पंवार, रोहतक.लोक संस्कृति, रीति-रिवाजों और यादों को संजोने के लिए रोहतक की महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी में दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक गुल्लक बनाई जा रही है। कागज की लुगदी, प्राकृतिक फूलों व अन्य सामग्री के जरिए बनाई जा रही इस 12 फीट ऊंची, छह फीट गोलाई वाली गुल्लक में लोग संस्कृति, सभ्यता, विचारों, समुदाय की रस्मों, पारिवारिक रिवाजों से जुड़ी चीजों को संजो सकेंगे।
दो हजार लीटर क्षमता वाली इस प्राकृतिक गुल्लक का डिजाइन बनाने का काम एमडीयू परिसर में 60 फीसदी पूरा हो चुका है। अब कोच्ची में 12 दिसंबर से शुरू होने वाले कोच्ची इंटरनेशनल स्टूडेंट्स बिनाले में इस प्राकृतिक गुल्लक को स्थापित करने से पहले वहीं पर एसेंबलिंग और सजावट का काम किया जाएगा।
इस पर लोकचित्र, घरों में गेरू से लगने वाले हाथ के थापे, सीप, घरों में शादी, त्योहार व समारोह पर बनने वाले चित्र बनाए जाएंगे। अब तक जर्मनी के नाम फाइबर का 26 फीट के पिगी बैंक बनाने का रिकॉर्ड है, लेकिन प्राकृतिक सामग्री और प्रकृति को संजोने के लिए यह पहला प्रयोग है। इस प्राकृतिक गुल्लक को 25 साल के लिए केरल में ही रखे जाने की सिफारिश एमडीयू की ओर से की गई है।
इन सामग्रियों से बनाई जाएगी :
पेपर मैसी की इस गुल्लक का वजन 725 किलोग्राम होगा। इसमें 100 किलो चूना, 100 किलो चॉक मिट्टी, 20 किलो गोंद, 5 किग्रा टेशू के फूल, 5 किग्रा मेथी दाना, 500 किग्रा कागज लुगदी, 100 किग्रा मुल्तानी मिट्टी, 10 किग्रा सण का रेशा, 50 किग्रा सरिया, 15 किग्रा लोहे की जाली, 1 किग्रा कील, 5 किग्रा चीया यानी इमली के बीज, 5 किग्रा चावल, 2 किग्रा लोहे की तार, एक बोरी चावल की भूसी, 2 किग्रा सिंदूर को पेस्ट बनाकर तैयार किया गया है।
इस सामग्री से 60 फीसदी डिजाइन रोहतक में और 40 फीसदी डिजाइन केरल में ले जाकर ही पूरा किया जाएगा। इस प्राकृतिक गुल्लक को बनाने में एमडीयू के विजुअल आर्ट के सहायक प्रोफेसर संजय कुमार के निर्देशन में 3 स्टूडेंट्स दीपक यादव, बिपिन और विक्की दो सप्ताह से लगे हैं। इस प्रोजेक्ट पर लगभग एक लाख रुपए की लागत आएगी।
गुल्लक के जरिए उजड़ रही प्रकृति को संजोने का मकसद :
एमडीयू के विजुअल आर्ट के सहायक प्रोफेसर संजय कुमार कहते हैं कि अब समय उजड़ रही प्रकृति को संजोने का है। गुल्लक बनाने के पीछे मकसद भी यही है। इसमें भारत की विविधता वाली संस्कृति, सभ्यता और प्राकृतिक चीजें हैं, जोकि अधिकतर लुप्त हो चुकी हैंै। इस गुलक में अपनी संस्कृति को सहेजा जाएगा।
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