गैजेट डेस्क. अगर आपकी हाईट 6 फीट है तो ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ आपसे 100 गुना ज्यादा ऊंची है। भारत के पहले उप-प्रधानमंत्री और गृहमंत्री रहे सरदार वल्लभ भाई पटेल की 182 मीटर ऊंची (597 फीट) है और ये दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इसे बनाने में 2,989 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं और इसे भारत की लार्सन एंड टुब्रो (L&T) कंपनी ने बनाया है।
42 महीनों में बनकर हुई तैयार : सरदार पटेल की ये मूर्ति सरदार सरोवर बांध से 3.2 किलोमीटर दूर साधू बेट नाम के स्थान पर है जो नर्मदा नदी पर एक टापू है। 2012-13 में इस मूर्ति की नींव तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने रखी थी और आज उन्होंने प्रधानमंत्री के तौर पर इस मूर्ति का अनावरण किया। इस मूर्ति को बनाने में 3000 से ज्यादा लोग और 250 से ज्यादा इंजीनियरों ने काम किया है।
25 मीटर के बेस पर रखा है मूर्ति को : इस मूर्ति की ऊंचाई 182 मीटर है, लेकिन अगर सिर्फ मूर्ति की ऊंचाई को देखें तो ये 167 मीटर ऊंची है। इस मूर्ति को 25 मीटर ऊंचे बेस पर रखा गया है जिस कारण इसकी ऊंचाई 182 मीटर हो जाती है।
स्टैच्यू आफ यूनिटी जहां राष्ट्रीय गौरव और एकता का प्रतीक है वहीं यह भारत के इंजीनियरिंग कौशल तथा परियोजना प्रबंधन क्षमताओं का सम्मान भी है।
एसएन सुब्रमण्यम, सीईओ, एल एंड टी
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इस मूर्ति का वजन 67,000 मीट्रिक टन है जिस वजह से इसे बनाकर तैयार करना और भूकंप से बचाना बहुत बड़ी चुनौती थी। इसे बनाते समय ध्यान रखा गया कि अगर यहां 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से भी हवा चले या 6.5 रिक्टर स्केल की तीव्रता का भूकंप भी आए तो मूर्ति को नुकसान न पहुंचे। इसके लिए इंजीनियरों ने इसके बेस में 250 टन वजनी दो मास डंपर्स का इस्तेमाल किया है ताकि किसी भी परिस्थिति में मूर्ति का बेस टिका रहे।
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इंजीनियरों के लिए इस मूर्ति को डिजाइन करने में काफी मेहनत की गई और इसका कारण है मूर्ति के पैर। दरअसल, इस मूर्ति में सरदार पटेल को चलता हुआ दिखाना था, जिस वजह से इनके दोनों पैरों के बीच में 21 फीट का अंतर है। इसके अलावा इतनी ऊंची इमारत बनाना ज्यादा आसान होता है क्योंकि उसका नीचला हिस्सा मोटा और ऊपर का हिस्सा पतला होता है। जबकि इसमें पैरों के बीच में इतना अंतर होने के साथ-साथ ऊपर का हिस्सा ज्यादा चौड़ा है। इसलिए इस मूर्ति के दो पैरों को कोर वॉल के रूप में इस्तेमाल किया, जिनकी ऊंचाई 152 मीटर है।
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इसे बनाते समय इस बात का ध्यान रखा गया है अलग-अलग पैटर्न वाले हवा का दवाब मूर्ति सह सके। इसलिए कोर वॉल को जोड़ने वाली होरिजोंटल वॉल्स को टेढ़ा-मेढ़ा लगाया गया है ताकि जैसे ही मूर्ति के बाहरी हिस्से यानी ब्रॉन्ज प्लेट्स पर हवा का दवाब पड़े तो वो स्पेस फ्रेम से होते हुए कोर वॉल में चली जाए। इसके बाद हवा का दवाब फाउंडेशन की तरफ चला जाता है।
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इसे बनाने के लिए एम65 ग्रेड के सीमेंट का इस्तेमाल हुआ है जबकि इमारतों को बनाने के लिए एम20 ग्रेड सीमेंट का इस्तेमाल होता है। एम65 ग्रेड का मतबल होता है इस सीमेंट 65 मेगापास्कल की ताकत है। इस सीमेंट का इस्तेमाल इसलिए किया गया है ताकि ये मूर्ति सैकड़ों साल तक भी खराब न हो। इसको बनाने में 22,500 मीट्रिक टन सीमेंट, 5,700 मीट्रिक टन स्ट्रक्चरल स्टील और 18,500 टन आयरन रॉड्स का इस्तेमाल हुआ है।
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आखिर में सबसे बड़ा चुनौती भरा काम था सरदार पटेल के चेहरे को बनाना। इसके लिए नोएडा के प्रसिद्ध मूर्तिकार राम वी. सुतार को चुना गया। उन्होंने सरदार पटेल की 2,000 से ज्यादा फोटो को देखकर चेहरा बनाया है।