जालंधर। जेल… वो चारदीवारी वो नाम जहां अपराधियों को इसलिए भेजा जाता है कि वे सुधर जाएं। जेल से छूटें तो अच्छे नागरिक बनें। दोबारा अपराध की दुनिया में कदम न रखें, लेकिन आजकल जो हालात दिखाई दे रहे हैं उन्होंने जेल नाम की परिभाषा बदल दी है। जेल में नशा, जेल में ही जेल ब्रेक की साजिशें, जेल में ही अगले अपराध की रूपरेखा और जेल से गैंगस्टर नेटवर्क आपरेट किए जाने लगे हैं।
इंटरनेट व मोबाइल इसका जरिया बनते हैं और पंजाब की जेलों में ये सब आसानी से उपलब्ध है। अपराध की नींव ही अब जेलों से रखी जाने लगी है। कुख्यात अपराधियों के हाथ में जेलों में मोबाइल धड़ल्ले से चलाए जा रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये लोग पकड़े नहीं जाते और कानून के रक्षक कार्रवाई नहीं कर रहे। सब कुछ हो रहा है। मोबाइल भी पकड़े जा रहे हैं और मोबाइल चलाने वाले भी पकड़े जा रहे हैं। बस, अगर कुछ हाथ नहीं लग रहा तो वो है इन अपराधियों तक मोबाइल पहुंचाने वाला नेटवर्क।
राज्य की इंटेलीजेंस भी इस नेटवर्क के आगे असहज नजर आ रही है, जेल प्रशासन मामले दर्ज करवाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहा है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है। पंजाब में कई ऐसी सनसनीखेज वारदातें हो चुकी हैं जिन्हें आतंकियों, गैंगस्टर्ज और आइएसआइ नेटवर्क ने उन लोगों के जरिए अंजाम दिलवा दिया जो लोग जेलों में बंद हैं। कहीं न कहीं जेलों से रची जाने वाली इन साजिशों के लिए मोबाइल फोन और इंटरनेट का जेलों से इस्तेमाल बड़ी भूमिका निभाता रहा है।
जेलों में मोबाइल का प्रयोग क्यों नहीं रुक रहा और जेलों में मोबाइल पहुंच कैसे रहे हैं, ये सवाल सिर उठाए खड़ा है। जिसका जवाब सरकार और जेल प्रशासन भी नहीं दे पा रहा है। कैदी जेलों से ही वाट्सएप और फेसबुक चला रहे हैं। मोबाइल के जरिए अपने गुर्गों को बाहर कहां, कौन सी वारदात करनी है फोन पर ही बताते है। जिसका नमूना पंजाब में हुई सात बड़ी हत्याओं का मामला है, जिसमें जेल में बैठा गैंगस्टर गुगनी ग्रेवाल हथियार सप्लाई कर रहा था, इसके अलावा रवि ख्वाजके और नाभा जेल ब्रेक जैसे कांड भी जेल के अंदर चल रहे मोबाइल की मदद से अंजाम दिए गए।
ऐसे पहुंचते हैं जेलों में मोबाइल और सुरक्षा पर खड़े होते हैं सवाल
सूत्रों की मानें तो जेल में बंद अपने परिजनों को मिलने आने वाले परिवारों से पहली मुलाकात में कैदी अगली बार मोबाइल लाने के लिए कहते हैं तो परिवार के लोग मोबाइल लाने के लिए अलग-अलग हथकंडे अपनाते हैं। कभी सब्जी के अंदर छिपाकर, तो कभी जूते के अंदर मोबाइल को फिक्स कर जेल के अंदर तक पहुंच जाते हैं। अगर ये सब न हो सके तो मुलाकात के वक्त कैदी परिजन को बैरक से बाहर आने का समय बता देते है। जिसके उन्हें अगले दिन जेल की दीवार के बाहर से मोबाइल अंदर फेंकने का समय और जगह बता देते हैं। इसके बाद उक्त शख्स मोबाइल बताए समय व स्थान पर अंदर फेंक देता है।
कई बार तो ज्यादातर कैदी पेशी के दौरान अपने साथ कुछ इस तरह से मोबाइल छिपाकर ले आते ही कि चैकिंग के बाद भी मोबाइल पकड़ा नहीं जाता। इन सबके बीच सवाल ये खड़े होते हैं कि क्या जेलों में चैकिंग की व्यवस्था दुरुस्त नहीं है या चैकिंग के दौरान ही कुछ चीजों को अनदेखा कर दिया जाता है। जेल में क्या कोई भी, कुछ भी, कभी भी और कहीं से भी फेंक सकता है। यहीं नहीं सूत्रों की मानें तो जेल में मोबाइल कुछ मुलाजिमों की मिलीभगत से भी पहुंच रहे हैं। अगर वाकई ऐसा है तो जब मोबाइल पकड़े जाते हैं तो इसकी जांच क्यों नहीं की जा रही कि जिससे मोबाइल मिला उसे वह मोबाइल किसने दिया।