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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

NDA के लिए बड़ी भूमिका निभाने की तैयारी में नीतीश, 14 साल बाद गए गुजरात

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गुजरात के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री विजय रूपाणी के शपथ ग्रहण समारोह में बिहार सीएम नीतीश कुमार की मौजूदगी ने आने वाले समय में एनडीए में उनकी बड़ी भूमिका के दरवाजे खोल दिए हैं. खास बात यह है नीतीश 14 साल बाद गुजरात गए. मिशन 2019 के मद्देनजर और शिवसेना-बीजेपी के बिगड़ते रिश्तों को देखते हुए नीतीश के जेडीयू का एनडीए में रहना महत्वपूर्ण है.

नीतीश के लिए समय का एक पूरा पहिया घूम चुका है. वह आखिरी बार गुजरात दंगों के एक साल बाद यानी 2003 में गुजरात गए थे, तब उन्होंने वहां एक रेल प्रोजेक्ट का उद्घाटन किया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के काम की तारीफ की थी. लेकिन पांच साल बाद जब नीतीश कुमार बिहार चुनाव की तैयारी करने लगे तब तक स्थिति बदल चुकी थी.

अल्पसंख्यक वोटरों को रिझाने के मकसद से नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी को बिहार में चुनाव प्रचार करने से रोक दिया. मोदी और नीतीश के रिश्तों में और खटास तब आई जब 2010 में बीजेपी ने अखबारों में मोदी और नीतीश कुमार की साथ वाली तस्वीरें छपवा दीं. इसके बाद नीतीश कुमार ने मोदी के लिए आयोजित की गई डिनर पार्टी रद्द कर दी.

मोदी से नाराजगी के बावजूद नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ अपना गठबंधन नहीं तोड़ा और 2010 के विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज की. हालांकि बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर नरेंद्र मोदी का आगे बढ़ना नीतीश कुमार को पसंद नहीं आया और उन्होंने 2013 में बीजेपी के साथ अपने 17 सालों के गठबंधन को तोड़ने का ऐलान किया.
2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश मोदी लहर को नहीं रोक सके और लोकसभा में उनकी पार्टी सिर्फ दो सीटों में सिमट कर रह गई. इस हार से स्तब्ध नीतीश ने अपने पुराने साथी लालू प्रसाद यादव के राष्ट्रीय जनता दल के साथ महागठबंधन का फैसला किया. इस गठबंधन को 2015 के विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल हुई.

हालांकि यह गठबंधन केवल 18 महीने चला. इस साल 27 जुलाई को नीतीश कुमार ने लालू प्रसाद यादव को झटका देते हुए गठबंधन तोड़ दिया और बीजेपी से वापस हाथ मिला लिया. बीजेपी की तरफ नीतीश के झुकाव के संकेत पहले ही मिल गए थे जब उन्होंने पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक और नोटबंदी की खुलकर सराहना की थी. इसके बदले में पीएम मोदी ने पिछले साल प्रकाशपर्व के मौके पर पटना साहिब में उनकी तारीफ की थी.

2019 के चुनाव के लिए यूपीए की तरफ से नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के अपोजिट प्रोजेक्ट करने की योजना थी लेकिन रातों-रात बीजेपी का हाथ थामते ही नीतीश कुमार ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षा को दरकिनार कर केवल बिहार पर फोकस करने का फैसला कर लिया.

गुजरात में कड़े मुकाबले के बाद हासिल हुई जीत के बाद बीजेपी के लिए नीतीश कुमार का महत्व और बढ़ गया है. जेडीयू के जनरल सेक्रेटरी संजय झा रूपाणी के शपथग्रहण में नीतीश के साथ पहुंचे थे. झा नीतीश के बेहद करीबी माने जाते हैं. उन्होंने कहा, “अभी तक विपक्ष कह रहा है कि नीतीश ने खुद को नेशनल लीडर बनने का एक बड़ा मौका खो दिया. लेकिन इस बात से कौन इनकार कर सकता है कि वह एक बड़े राजनेता हैं और पूरा देश उनका सम्मान करता है.”

झा ने कहा, “नीतीश 2019 के आम चुनावों के लिए एनडीए को मजबूत बनाने की पूरी कोशिश करेंगे. अगर इसके लिए बिहार के बाहर प्रचार करने की जरूरत पड़ी तो उन्हें इसमें कोई समस्या नहीं होगी.” उन्होंने कहा कि मोदी और नीतीश दोनों राजनीतिक समीकरणों को बेहतर समझते हैं और इसे लेकर किसी को कोई संदेह नहीं होना चाहिए.

बीजेपी के लिए अगली चुनौती राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अपनी सरकार बचाने की है. इन राज्यों में अगले साल के अंत में चुनाव होने हैं. इसके अलावा कर्नाटक में भी चुनाव होने हैं. सोशल एनालिस्ट शैबाल गुप्ता मानते हैं कि इन राज्यों में नीतीश बीजेपी के समर्थन में प्रचार कर सकते हैं.

गुप्ता ने कहा, “बीजेपी को नीतीश जैसे नेता की जरूरत है. गुजरात में जहां पाटीदारों ने कांग्रेस को बड़ी संख्या में वोट किया वहां नीतीश एक जाना माना चेहरा हैं. वह राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी ओबीसी वोटरों को बीजेपी के पक्ष में कर सकते हैं.” नीतीश की जाति (कुर्मी) का फैक्टर तो है ही, इसके साथ-साथ उनकी साफ छवि एनडीए के लिए वरदान मानी जा रही है.