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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

उच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन – आर.टी.ई. 2009, अधिनियम (शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009) के अनुसार, पंजाब सरकार और निजी स्कूल गरीब और कमजोर वर्गों के छात्रों को 25% प्रवेश नहीं दे रहे हैं।

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उच्च न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन – आर.टी.ई. 2009, अधिनियम (शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009) के अनुसार, पंजाब सरकार और निजी स्कूल गरीब और कमजोर वर्गों के छात्रों को 25% प्रवेश नहीं दे रहे हैं।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के तहत, जो 1 अप्रैल, 2010 से पूरे भारत में लागू हुआ, निजी स्कूलों को प्री-नर्सरी से 8वीं तक की कक्षाओं में गरीब और वंचित समूहों के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित करना आवश्यक है।

पंजाब सरकार द्वारा 2011 में बनाए गए पंजाब आरटीई नियमों में असंवैधानिक नियम 7(4) के कारण, यह कानून पंजाब में कभी लागू नहीं हुआ। इसके कारण 2010 से 2025 तक करीब 10 लाख गरीब बच्चों को निजी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से वंचित होना पड़ा।

18 जनवरी 2024 को कुछ जागरूक और सजग नागरिकों द्वारा पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में दायर एक जनहित याचिका (पी.आई.एल.) पर सुनवाई करते हुए, उच्च न्यायालय ने 19 फरवरी 2025 को एक ऐतिहासिक फैसले में पंजाब सरकार द्वारा बनाए गए नियम 7(4) को रद्द कर दिया और इसे आर.टी.ई. अधिनियम 2009 की भावना और उद्देश्य के खिलाफ घोषित किया।

हाईकोर्ट ने पंजाब सरकार को सत्र 2025-26 के लिए निजी स्कूलों में 25% नामांकन सुनिश्चित करने का आदेश दिया। परिणामस्वरूप, पंजाब मंत्रिमंडल ने नियम 7(4) को निरस्त कर दिया और पंजाब सरकार ने 21 मार्च 2025 को डी.पी.आई. (प्राइमरी), पंजाब और जिला शिक्षा अधिकारियों को दाखिलों के संबंध में आवश्यक निर्देश जारी किए। इसके अलावा, डी.पी.आई. (एलिमेंट्री), पंजाब ने 24 मार्च 2025 को सभी निजी स्कूलों को हाईकोर्ट के आदेशों को लागू करने के निर्देश जारी किए।

लेकिन जमीनी हकीकत बिल्कुल अलग है। निजी स्कूल अभी भी बच्चों को दाखिला नहीं दे रहे हैं और जिला शिक्षा अधिकारी (प्राथमिक) भी अपने कर्तव्यों का पालन नहीं कर रहे हैं।

यहां उन कारणों का उल्लेख करना आवश्यक है जिनके कारण छात्रों को प्रवेश पाने में विभिन्न कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। पंजाब सरकार ने हाईकोर्ट के आदेशों के अनुसार निजी स्कूलों में बच्चों के दाखिले के बारे में आम जनता में जागरूकता पैदा नहीं की। आम जनता के पास निजी स्कूलों की सूची नहीं है जहां बच्चे दाखिला ले सकते हैं। स्कूलों में दाखिले के लिए बहुत कम समय बचा है, लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी दाखिले की प्रक्रिया में सक्रिय नहीं दिख रहे हैं। सरकार ने प्रवेश के लिए कोई आवेदन पत्र जारी नहीं किया है। आय और जाति जैसे दस्तावेजों के संबंध में कोई निर्देश जारी नहीं किए गए हैं। आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के प्रवेश के लिए आय सीमा के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। निजी स्कूलों को पंजाब सरकार द्वारा छात्रों की फीस के भुगतान के बारे में कोई जानकारी नहीं है। ऐसे स्कूलों में फीस का समय पर भुगतान होने को लेकर कई तरह की शंकाएं रहती हैं। इसलिए सरकार को बिना किसी देरी के इन शंकाओं को दूर करना चाहिए। प्रवेश प्रक्रिया में जिला शिक्षा अधिकारियों, निजी स्कूलों और छात्रों तथा जिला स्तरीय निगरानी समितियों की भूमिका पर कोई स्पष्ट स्थिति नहीं है। प्रवेश प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए कोई वेबसाइट विकसित नहीं की गई है। लोकतंत्र में इस प्रकार का व्यवहार जिम्मेदार सरकारी प्रशासन का प्रमाण नहीं है।

इस प्रकार का व्यवहार उच्च न्यायालय के आदेशों का स्पष्ट उल्लंघन है तथा गरीब बच्चों के संवैधानिक अधिकारों के साथ खिलवाड़ है।

उपरोक्त स्थिति को देखते हुए सभी समाजसेवी व सामाजिक संगठन जल्द ही सार्वजनिक रूप से विरोध करने को मजबूर होंगे तथा पंजाब सरकार व निजी स्कूलों के इस गैरकानूनी व्यवहार के खिलाफ हाईकोर्ट में अदालती आदेशों की अवमानना ​​का केस दायर किया जाएगा ताकि गरीब बच्चों को शिक्षा का असली हक मिल सके।