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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने सोमवार को हरियाणा राजभवन में प्रसिद्ध कवि, दार्शनिक और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्य तिथि पर उन्हें याद करते हुए उनके चित्र पर पुष्पमाला चढ़ाकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

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चंडीगढ़, 07 अगस्त – हरियाणा के राज्यपाल श्री बंडारू दत्तात्रेय ने सोमवार को हरियाणा राजभवन में प्रसिद्ध कवि, दार्शनिक और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की पुण्य तिथि पर उन्हें याद करते हुए उनके चित्र पर पुष्पमाला चढ़ाकर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि भारतीय और वैश्विक साहित्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति रवीन्द्रनाथ टैगोर एक बहुज्ञ थे जिनकी बहुमुखी प्रतिभा कविता, गद्य, संगीत, कला और सामाजिक सक्रियता तक फैली हुई थी। एक महान देशभक्त और भारतीय लोकाचार, मूल्यों और संस्कृति के चैंपियन, टैगोर ने अपने लेखन के माध्यम से स्वराज का आह्वान करके भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया आयाम दिया। श्री दत्तात्रेय ने कहा कि वे न केवल भारत की महान वैदिक संस्कृति की गहराई से प्रभावित ही थे बल्कि उनका समस्त जीवन महान वैदिक संस्कृति में रचा-बसा था।
उन्होंने कहा कि टैगोर ने पंजाब के जलियांवाला बाग में निर्दाेष लोगों के नरसंहार से बेहद दुखी होकर उन्हें प्रदान की गई नाइटहुड की उपाधि को भी लौटा दिया था। वे मां भारती के सच्चे सपूत थे, जिन्होंने सच्चे दिल से देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि उनकी महान रचना श्गीतांजलिश् सहित टैगोर की रचनाएँ अक्सर प्रेम, प्रकृति, आध्यात्मिकता और मानवीय स्थिति के विषयों की खोज करती हैं, जो विभिन्न   संस्कृतियों के लोगों के साथ गहराई से जुड़ती हैं।
अपनी साहित्यिक उपलब्धियों से परे टैगोर ने शांतिनिकेतन में विश्व भारती विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह एक ऐसी संस्था थी जिसने पूर्वी और पश्चिमी शिक्षा के समामेलन को बढ़ावा दिया। माननीय राज्यपाल ने कहा उन्होंने विश्व भारती विश्वविद्यालय के माध्यम से हमारे देश में मॉडल शिक्षा की शुरुआत की।
उन्होंने कहा कि रवींद्रनाथ टैगोर को सच्ची श्रद्धांजलि उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करना भारत के सांस्कृतिक मूल्यों और मानवता के कल्याण में योगदान देना होगा।
श्री दत्तात्रेय ने कहा कि शिक्षा, सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और भारतीय स्वतंत्रता की वकालत करने के उनके अथक प्रयासों ने उन्हें श्बंगाल के बार्डश् के रूप में सार्वभौमिक सम्मान दिलाया। उनकी विरासत भाषा की सुंदरता और मानवता की एकता का जश्न मनाते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए विविधता एक प्रेरणा के रूप में बनी रहेगी।