साहित्य की अनेक विधाओं में विशिष्ट दृष्टिकोण की अभिव्यक्तियां प्रस्तुत कीं
चण्डीगढ़ : अभिव्यक्ति की नवंबर माह की गोष्ठी का आयोजन साहित्यकार सुभाष भास्कर के निवास स्थान पर सेक्टर 38 वेस्ट में हुआ जिसका संयोजन और संचालन विजय कपूर ने किया। गोष्ठी के पहले सत्र में काव्य की विधा के अनेक रंग सामने आए जिसमें मानव हृदय की राग चेतना अंतर्निहित रही। डॉक्टर कैलाश आहलूवालिया की हृदयस्पर्षी कविता से गोष्ठी की शुरुआत हुई जिसमें वह कहते हैं, इन क्षणिक तृष्णाओं के सम्मुख, इन प्रेत छायाओं के भुलावे में, कैसे झुका दूं शीश अपना। निर्मल जसवाल की कविता प्रेम का भाव इस तरह आया, इन उड़े उड़े गेसुओं में तुम्हें भी लपेट लेना….और कहते जाना यह जिंदगी का फसाना।
रेखा मित्तल ने महब्बत का पैगाम देते हुए कहा, हम दुनिया से मिलने के लिए उत्साहित रहते हैं हर वक्त। नीनदीप बड़ी शिद्दत से कहती है, कविता मोहताज नहीं होती, कहीं भी छिप जाने की। विजय कपूर की अभिव्यक्ति यूं सामने आई-मैंने ताउम्र अपने सच को आत्मसात किया, मैने ही लिखा था तुम्हारा वो खत अपने नाम, हां इतना सा तुमसे विश्वासघात किया।
सुभाष भास्कर ने कोरोना की याद में कहा, कोरोना ने कर दिया था सब कुछ बेरंग। ऊषा पांडे ने कहा, प्यार नेमत है खुदा की बात यह जान लें।
शहला जावेद की नज्म यूं आई, उठ कर कमरे से यूं गया कोई, ज़मी पर सब निशान छोड़ गया कोई। वीना सेठी ने चुनीदा शे’र और बिछड़ने के एहसास से लबरेज़ कविता पढ़ी। अन्नुरानी शर्मा सुंदर और में दिवाली उम्मीदों वाली हो को सुनाया। अनुभूति ने दिवाली की एक जगमगाती रात नाम की कविता में बहुत हृदयस्पर्श भावनाओं को को पिरोया। अश्वनी भीम तंज़ भरी कविता सारे जहां से अच्छा का पाठ किया। गौरव आहूजा ने औरत और हैपिली मैरिड नाम की अच्छी नज़्मों को पढ़ा। सारिका धूपर की कविता, रूह से रूबरू होने की आरज़ू भी खूब बन पड़ी। राजिंदर सराओ ने संजीदा कविता होंद का सुंदर पाठ किया।
दूसरे सत्र में प्रेम विज ने अपने चर्चित व्यंग्य लेख,मैं जिंदा हूं के ज़रिए आप आदमी की व्यथा कथा को दर्शाया। सुभाष शर्मा का व्यंग्य साहब दे कुत्ते ने, व्यवस्था पर तंज़ करते हुए खूब गुदगुदाया। सारिका धुपर ने बहुत मार्मिक संस्मरण, सिमरन नहीं रही, को बहुत संजीदगी से सुनाया। अश्वनी भीम ने अपने व्यंग्य, पेट्रोल आत्मावलोकन में उसकी उमर को सौ पार करवा दिया।