साहित्यक स्पर्श रचना को कालजयी बना देता है : सतीश वर्मा
साहित्यिक भाषा और पत्रकारिता पर राष्ट्रीय सेमिनार का दूसरा दिन
जीरकपुर : भारत सरकार शिक्षा मंत्रालय केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय और साहित्य संगम ट्राईसिटी के संयुक्त तत्वावधान में होटल सिल्वर सैंड्स, बलटाना में साहित्यिक भाषा और पत्रकारिता पर आयोजित किए जा रहे तीन दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आज दूसरा दिन था। सेमिनार के पहले सत्र की अध्यक्षता डॉक्टर फूलचंद मानव ने की तथा दूसरे सत्र के अध्यक्ष रहे प्रसिद्ध नाटककार डॉक्टर सतीश वर्मा । प्रोफ़ेसर योगेश्वर कौर ने अपने वक्तव्य में साहित्यिक पत्रिकाओं के हवाले से अपनी बात रखते हुए पत्रकारिता में सजगता और भाषागत सृजनात्मकता की चर्चा की। बंगलौर से पधारे डॉक्टर टी. रविंद्रन ने पत्रिकाओं में बढ़ते बाजारवाद के प्रभाव पर प्रकाश डाला। पुणे महाराष्ट्र से पधारे प्रसिद्ध चित्रकार पत्रकार गणेश रहाणे ने भाषा की विविधता के विभिन्न पक्षों और पत्रकार की समाज के प्रति ज़िम्मेदारियों की चर्चा करते हुए सही पत्रकारिता के मानदंड स्थापित किए। डॉक्टर फूलचंद मानव ने अध्यक्षीय वक्तव्य में प्रस्तुत आलेखों की समीक्षा के साथ साथ भाषा और पत्रकारिता के अंतर्संबंधों की चर्चा करते हुए कहा कि पत्रकारिता तलवार की धार पर चलने के समान है तमाम आलोचनाओं के बावजूद सच्चा पत्रकार सच्चाई को सामने लाने के लिए सदैव प्रतिबद्ध रहता है।
दूसरे सत्र में प्रतिष्ठित नाटककार डॉक्टर सतीश वर्मा ने साहित्य और पत्रकारिता के बीच भाषा को सेतु के रूप में परिभाषित करते हुए कहा कि सूचनात्मक पत्रकारिता की उम्र लंबी नहीं होती किन्तु वही रचना साहित्य के स्पर्श से कालजयी हो जाती है । डॉक्टर मीरा गौतम ने अपने वक्तव्य में प्रभाकर श्रोत्रिय, रवींद्र कालिया, लीलाधर मंडलोई की संपादकीय विशेषताओं पर प्रकाश डाला। पत्रकार अरुण नैथानी ने आज की पत्रकारिता के समक्ष चुनौतियों का उल्लेख किया। वहीं हिमाचल से पधारे गुरमीत बेदी ने भाषा के संस्कारों को प्रभावी पत्रकारिता के लिए आवश्यक अंग बताया।