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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

शहीद मंगल पांडे के जन्मदिवस पर कोटि-कोटि नमन–खोसला

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दिल्ली प्रदेश नेशनल पैंथर्स पार्टी

नई दिल्ली, 19 जुलाई, 2021
प्रेस-विज्ञप्ति
शहीद मंगल पांडे के जन्मदिवस पर कोटि-कोटि नमन–खोसला
धर्म की रक्षा के लिए अंग्रेजों से भी लड़ गए क्रांतिकारी मंगल पांडे

भारतीय इतिहास में मंगल पांडे ही वह पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने क्रांति का आगाज किया था, क्योंकि उन्होंने न केवल ब्रिटिश का विरोध किया था, बल्कि देशहित और अपने धर्म की रक्षा में अपना जीवन ही न्यौछावर कर दिया था। 1857 की क्रान्ति में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उनके कारण ही ये क्रान्ति इतिहास में अपना नाम दर्ज करा।
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई, 1827 को बलिया जिले के नगवा गाँव में हुआ था। इनके पिता जी का नाम दिवाकर पांडेय और माता जी का नाम अभारानी पांडेय था। इनकी बहन की 1830 के अकाल में मृत्यु हो गयी। मंगल पांडे एक महत्वकांक्षी युवा थे, वो ब्राह्मिण जाति के थे, उन्होंने 1849 में बंगाल आर्मी जॉइन की थी, वो 34वे बंगाल नेटिव इन्फेंट्री के पांचवी कंपनी में निजी सैनिक थे।

मंगल पांडे और भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम
मंगल पांडे जब 22 वर्ष के थे, तब ही उन्होंने ईस्ट इंडिया कम्पनी जॉइन कर ली थी। उनकी नियुक्ति अकबरपुर के एक ब्रिगेड में हुयी थी जो की मार्च पास्ट कर रही थी। शुरू में वो अपने मिलिट्री करियर के प्रति बहुत उत्साहित थे, उनके रेजिमेंट में अन्य ब्राह्मिण युवा भी थे। धीरे-धीरे उनका मिलिट्री सर्विस से मोह भंग होने लग गया, बैरकपुर में पोस्टिंग के दौरान हुए एक घटनाक्रम ने उनका जीवन बदल दिया।
उन दिनों भारत में एक नए प्रकार की राइफल लांच हुयी थी, जिसका नाम एनफील्ड राइफल था। इसका उपयोग आर्मी में किया जाने लगा। इसके कार्टिज पर जानवरों की चर्बी से ग्रीज लगे होने की अफवाह उड़ी थी और वो जानवर भी गाय और सूअर थे जिन्हें हिन्दू-मुस्लिम बहुत पवित्र मानते थे, जिससे हिन्दू-मुस्लिम सैनिकों में आक्रोश फैलने लगा, क्योंकि राइफल का उपयोग करते समय सैनिकों को इसमें ग्रीज लगी कार्टिज को मुंह से छीलकर हटाना पड़ता था। इस कारण भारतीय सैनिकों को लगने लगा की अंग्रेज उनकी धार्मिक भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। मंगल पांडे भी इस बात पर क्रोधित हुए और उन्होंने अंग्रेजों से बदला लेने की सोची।

अंग्रेज अफसर मेजर ह्यूसन की हत्या
29 मार्च 1857 को मंगल पांडे परेड ग्राउंड से रेजिमेंट गार्ड रूम पर पहुंचे और अन्य सैनिकों को भी विद्रोह के लिए प्रेरित करना शुरू किया, उन्होंने सबसे पहले दिखने वाले ब्रिटिश ऑफिसर को मारने का फैसला किया था, वो ग्राउंड में सैनिकों को समझा रहे थे और उन्हें देश और धर्म के प्रति कर्तव्य याद दिलाने की कोशिश कर रहे थे, तभी लेफ्टिनेंट बौघ अपने घोड़े पर मंगल पांडे की तरफ बढने लगे। मंगल पांडे ने लेफ्टिनेंट पर गोली चला दी लेकिन गोली घोड़े के पैर पर लगी और बौघ नीच गिर गया।् बौघ ने तुरंत पांडे पर फायर किया, लेकिन वो भी निशान चुक गया और इसी दौरान उन्होंने बन्दुक में नयी राइफल डालने की कोशिश की, लेकिन इसमें समय लगता देखकर पांडे ने एक हाथ में तलवार उठा ली और बौघ पर प्रहार किया, जिससे बौघ घायल हो गया। तभी एक अन्य सैनिक शैख पल्टू मंगल पाण्डे के पीछे से आया और उन्हें पकड़ने की कोशिश की, लेकिन मंगल पांडे ने खुद को उसके चुंगल से छुड़ा लिया, वो भी पलटकर भाग गया। आवाज सुनकर सार्जेंट-मेजर ह्युडसन ग्राउंड पर पहुचे, उन्होंने जमादार इश्वरी प्रसाद को आदेश दिया कि वो मंगल पांडे को तुरंत गिरफ्तार करे, लेकिन इश्वरी प्रसाद ने ऐसा करने से मना कर दिया। ह्युडसन लेफ्टिनेंट को सम्भालने को आगे बढे तभी पीछे से मंगल पांडे ने उन पर गोली चलाकर ह्त्या कर दी।
थोड़ी देर में अंग्रेजों की गाडी आई और साथ आये असफरों ने भी सैनिकों को आदेश दिया कि वो इस सैनिक को पकडे, लेकिन सैनिकों ने घायल और सदाचारी ब्राह्मण को हाथ लगाने से मना कर दिया। ब्रिटिश ऑफिसर्स का खून और सैनिकों में आक्रोश बढ़ता देखकर वो भी लौट गये। हालांकी बाद में जनरल हाइरसयभ्लमतमे बहुत सारे यूरोपियन सैनकों के साथ पहुँच गए और तब तक दोपहर हो चुकी थी और मंगल पाण्डे भी थक चुके थे। वे ये समझ चुके थे कि वो अब अंग्रेजों से नहीं लड़ सकते इसलिए उन्होंने खुदकी ही छाती पर गोली मार ली, जिससे वे जमीन पर गिरकर बेहोश हो गये। उसके बाद ही अंग्रेज अधिकारी उन्हें हाथ लगा सके थे और उन्हें उठाकर मिलिट्री हॉस्पिटल ले जाया गया।
एक सप्ताह के भीतर ही उन्हें मिलिट्री कोर्ट ले जाया गया, जहां पर उस शूरवीर से पूछा गया कि उनके साथ इस प्लान में और कौन-कौन शामिल था, मंगल पांडे ने एक का नाम भी नहीं लिया। उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी। ये बात अब सेना में फैली तो अब तक का दबा-छुपा आक्रोश बाहर आने लगाए सैनिकों में उनके लिए इज्जत और बढ़ गयी वो समझ गए कि अपने धर्म की रक्षा के लिए मंगल पांडे ने अपनी जान दांव पर लगा दी है, जिसे वो सिर्फ सोच रहे थे, मंगल पांडे ने कर दिया था। इस तरह से आक्रोश इतना बढ गया था कि उनकी लाश को बैरकपुर से बाहर निकालना भी मुश्किल हो गया था, आखिर में कलकता से 4 लोगों को बुलाया गया।
स्वतंत्रता संग्राम के प्रथम क्रन्तिकारी को फांसी की सजा 18 अप्रैल, 1857 को देना तय किया गया था, लेकिन किसी बड़ी क्रांति की आशंका और डर के चलते अंग्रेजों ने 10 दिन पूर्व 8 अप्रैल, 1857 को ही उन्हें फांसी दे दी थी। मंगल पांडे की शहादत ने 1857 की क्रान्ति की चिंगारी को हवा दी और इस तरह देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम की क्रान्ति की। मंगल पांडे के बलिदान के बाद ही ब्रिटिश सरकार ने ये मान्य किया कि सैनिक कारतूस पर ग्रीज के तौर पर घी का उपयोग कर सकते हैंए इसके लिए लार्ड कैनिंग ने प्रस्ताव पारित करवाया। जिस जगह मंगल पांडे ने ब्रिटिश अफसरों पर आक्रमण किया था वहां पर अब पार्क बनाया गया हैं जिसे शाहिद मंगल पांडे महाउद्यान के नाम से जाना जाता हैं। 5 अक्टूबर 1984 में भारतीय सरकार ने इन्हें पहला स्वतंत्रता सेनानी मानते हुए उन पर पोस्टेज स्टाम्प जारी किया, इसे सी. आर प्रकाशी ने डिजाइन किया हैं, जिसमें मंगल पांडे की फोटो लगी हैं।
मंगल पांडे ने अंग्रेजों पर इतना प्रभाव डाला कि उन्होंने एक नये अंग्रेजी शब्द ‘पांडे‘ को अपनी भाषा में जगह दे दी, जिसका मतलब उन्होंने ट्रेटर (देशद्रोही, विश्वासघाती) रखा, हालांकि ये बाद में बोलचाल की भाषा में प्रयुक्त नहीं हुआ, इसलिए अब इसका इस्तेमाल कम किया जाता हैं बेगम हजरत महल के।
पैंथर्स पार्टी सभी क्रांतिकारी वीरों को नमन करती है और भारत की जनता से अपील करती है कि जाति धर्म की लड़ाई छोड़कर सोचें राष्ट्र उत्थान का सबसे बढ़कर राष्ट्र धर्म।