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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

विश्वेश्वरानन्द विश्वबन्धु संस्कृत एवं भारत-भारती अनुशीलन संस्थान, पंजाब विश्वविद्यालय, साधु आश्रम में आयोजित सप्तदिवसीय कार्यशाला एवं राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

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Chandigarh March 31, 2021

उन्तति का प्रथम सोपान उच्चारण शुद्ध

महामहोपाध्याय प्रो. वेदप्रकाश उपाध्याय, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़)

दिनांक 31-03-2021 को विश्वेश्वरानन्द विश्वबन्धु संस्कृत एवं भारत-भारती अनुशीलन संस्थान, पंजाब विश्वविद्यालय, साधु आश्रम में महर्षि विश्वामित्र वेद वेदाङ्ग कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापनोत्सव के मुख्यातिथि- प्रो. राजाराम शुक्ल, कुलपति, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, विशिष्ट अतिथि- प्रो. गोपबन्धु मिश्र, कुलपति, श्रीसोमनाथ संस्कृत विश्वविद्यालय, गुजरात, अध्यक्ष- प्रो. वेदप्रकाश उपाध्याय, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ थे। कार्यक्रम का शुभारम्भ श्री कृष्णकान्त तिवारी के द्वारा वैदिक मंगलाचरण के द्वारा किया गया। मंच का संचालन डा. ऋतु बाला ने किया। डा. सुधांशु कुमार (विभागाध्यक्ष) ने आॅनलाइन जुडे़ं सभी महानुभावों का स्वागत कर अतिथियों का परिचय दिया। प्रो. नरसिंह चरण पण्डा ने वेद वेदाङ्ग कार्यशाला तथा राष्ट्रीय संगोष्ठी का संक्षिप्त प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर विशिष्ट अतिथि प्रो. गोपबन्धु मिश्र ने वेद राशि रुप ज्ञान को पूर्ण विश्व की अमूल्य धरोहर स्वीकार करते हुए इसके अध्ययन और अध्यापन पर विशेष रुप से बल देने की बात कही तथा वेदज्ञान को समझने के लिए अंग रुप ग्रन्थों का अध्ययन अनिवार्य बताया। मुख्यातिथि प्रो. राजाराम शुक्ल ने अपने सम्बोधन में कहा कि रसभावरूप अर्थतत्त्व को प्रवाहित करने वाली महाकवियों, ऋषियों की वाणी अलौकिक प्रतिभासमान प्रतिभा के वैशिष्ट्य को प्रकट करती है। कालिदास इत्यादि महाकवियों ने अलौकिक प्रतिभासमान प्रतिभा के वैशिष्ट्य के कारण अलौकिक शब्दचयन द्वारा अलौकिक अर्थ द्वारा सह्यदय पाठकों को अलौकिक आनन्द हेतु जो प्रयत्न किया वे आज भी अमर है। इस अवसर पर सभा के अध्यक्ष ने छात्रों को सम्बोधित करते हुए कहा कि विषय का अध्ययन करने से पहले प्रत्येक छात्र तथा अध्यापक का यह परम धर्म बनता है कि वे उच्चारण की शुद्धता पर विशेष रुप से ध्यान दें क्योंकि यदि आपकों वेदों का अध्ययन करना है तो उसके लिए उच्चारण शुद्धता अनिवार्य हो जाती है नहीं तो शब्दों का अनुचित अर्थ प्रतीत होना शुरु हो जाता है। इस सप्त दिवसीय व्याख्यान माला में निम्नलिखित विद्वानों ने व्याख्यान प्रस्तुत किए। जैसे – 1. प्रो. राजेश्वर मिश्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय 2. प्रो.विक्रम कुमार, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ 3. प्रो. वीरेन्द्र कुमार अंलकार, पंजाब विश्वविद्यालय, चण्डीगढ़ 4. प्रो. सुरेन्द्र मोहन मिश्र, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, 5. प्रो. उपेन्द्र कुमार त्रिपाठी, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी। इसके अतिरिक्त दो पत्रवाचनसत्रों में कुल 40 के आस पास शोधपत्र प्रस्तुत किए गए। 309 के आस पास छात्रों ने अपना पंजीकरण किया। इन सत्रों की अध्यक्षता प्रो. कृष्णमुरारि शर्मा तथा प्रो. रेणु बाला, गुरुनानक देव विश्वविद्यालय ने की। इस अवसर पर डा. आदित्य आङ्गिरस, डा. आशुतोष आङ्गिरस, प्रो. प्रेमलाल शर्मा, प्रो. रघुबीर सिंह, प्रो.कृष्णा सैनी, प्रो. विक्रम कुमार, श्री शिव कुमार वर्मा, आचार्य सांख्यायन, श्री सुबोध कुमार, डा.सुनीता जायसवाल, डा. नरेन्द्र दत्त तिवारी, डा. टीना वेद, प्रों रणजीत कुमार, दिल्ली यूनिवर्सिटी, डा. सुमन लता इत्यादि 70 से भी अधिक प्रतिभागिओं ने कार्यक्रम में भाग ले कार्यक्रम की गरिमा को बढाया। धन्यवादज्ञापन प्रो. एन.सी.पण्डा ने किया।