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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

वास्तविक मनुष्य बनने के लिए मानवीय गुणों को अपनाना आवश्यक

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चंडीगढ़,सुनीताशास्त्री : यदि हम वास्तव में मनुष्य कहलाना चाहते हैं तो हमें मानवीय गुणों को अपनाना होगा। इसके विपरीत यदि कोई भी भावना मन में आती है तो हमें स्वयं का मूल्यांकन करना होगा और सूक्ष्म दृष्टि से मन के तराजू में तोलकर उसे देखना होगा। ऐसा करने से हमें यह एहसास होगा कि हम कहां पर गलत हैं। यह प्रेरणादायी विचार निरंकारी सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने महाराष्ट्र के 54वें प्रादेशिक निरंकारी सन्त समागम के समापन पर व्यक्त किए। यह जानकारी श्रीमति राजकुमारी जी मैम्बर इंचार्ज प्रैस एण्ड पब्लिसिटी ने दी ।सत्गुरू माता सुदीक्षा जी ने कहा कि यथार्थ मनुष्य बनने के लिए हमें हर किसी के साथ प्यार भरा व्यवहार, सबके प्रति सहानुभूति, उदार एवं विशाल होकर दूसरे के अवगुणों को अनदेखा करते हुए उनके गुणों को ग्रहण करना होगा। सबको समदृष्टि से देखते हुए एवं आत्मिक भाव से युक्त होकर दूसरों के दुख को भी अपने दुख के समान मानना होगा। इसके साथ ही और भी जो मानवीय गुण हैं उनको भी धारण करने से जीवन सुखमयी व्यतीत होगा।माता सुदीक्षा जी ने आगे कहा कि – मनुष्य स्वयं को धार्मिक कहता है और अपने ही धर्म के गुरु-पीर पैगम्बरों के वचनों का पालन करने का दावा भी करता है। परंतु वास्तविकता तो यही है कि आपकी श्रद्धा कहीं पर भी हो, हर एक स्थान पर मानवता को ही सच्चा धर्म बताया गया है और ईश्वर के साथ नाता जोड़कर अपना जीवन सार्थक बनाने की सिखलाई दी गई है। मनुष्य जीवन बड़ा ही अनमोल है और प्रभु प्राप्ति के लिए उम्र का कोई तकाजा नहीं होता। किसी भी उम्र का मनुष्य ब्रह्मज्ञानी सन्तों का सान्निध्य पाकर क्षणमात्र में प्रभुपरमात्मा की पहचान कर सकता है।यह तीन दिवसीय संत समागम इस वर्ष वर्चुअल रूप (अपतजनंस) में आयोजित किया गया जिसका सीधा प्रसारण निरंकारी मिशन की वेबसाईट (ूमइेपजम) एवं संस्कार टी.वी. चैनल (ज्ट ब्ींददमस) के माध्यम द्वारा हुआ। समस्त भारत वर्ष तथा विदेशों में लाखों निरंकारी भक्तों के अतिरिक्त श्रद्धालु सज्जनों ने घर बैठे इस सन्त समागम का भरपूर आनंद प्राप्त किया।समागम के प्रथम दिन सत्गुरू माता सुदीक्षा जी ने अपनी दिव्य वाणी में फरमाया कि ईश्वर को हम किसी भी नाम से सम्बोधित करे वह तो सर्वव्यापी है और हर किसी की आत्मा इस निराकार परमात्मा का ही अंश है। स्वयं की पहचान के लिए परमात्मा की पहचान जरूरी है क्योंकि ब्रह्मानुभूति से ही आत्मानुभूति सम्भव है। स्थिर परमात्मा से जीवन में स्थिरता, शान्ति और सन्तुष्टि जैसे दिव्य गुण आते हैं। परमात्मा पूरे ब्रह्माण्ड का कर्ता है इसकी अनुभूति हर कार्य को सहजता से स्वीकार करने की अनुभूति देती है। परमात्मा का आधार लेने से जीवन में उथल-पुथल सन्तुष्टि में परिवर्तित हो जाती है।सत्गुरू माता जी ने आगे कहा कि – अपने दैनिक जीवन में हर परिस्थिति का आकलन करने के लिए एवं उचित ढंग से शरीर का संचालन करने के लिए ज्ञानेंद्रियों का उपयोग करना है और इन इंद्रियों के अधीन नहीं रहना हैं। इसी पर हमारे मन का कर्म निर्भर करता है। यदि इंद्रियां हमारे नियंत्रण में है तब हम उनका उचित सदुपयोग कर पाते हैं इसलिए हमें इंद्रियों में उलझना नहीं है अपितु उन्हें अपने नियंत्रण में रखना है।समागम के दूसरे दिन का शुभारम्भ सेवादल रैली द्वारा किया गया इस रैली में शारीरिक व्यायाम के अतिरिक्त खेलकूद तथा मलखम्ब जैसे साहसी करतब दिखाए गए। साथ ही साथ मिशन की सिखलाई पर आधारित लघु नाटिकायें भी प्रस्तुत की गई।

सत्गुरू माता जी ने कहा कि सारी मानवता को अपना परिवार मानते हुए, अहंकार को त्यागकर, समय की जरूरत के अनुसार, मर्यादा एवं अनुशासन में रहकर मिशन द्वारा वर्षों से सेवा का योगदान दिया जा रहा है। सेवा करते हुए, हर किसी को प्रभु का अंश मानकर उसकी सेवा करनी चाहिए क्योंकि मानव सेवा परमात्मा की ही सेवा है। जो मिशन की अहम सिखलाई है – नर सेवा, नरायण पूजा।दूसरे दिन शाम के सत्संग समारोह को संबोधित करते हुए सत्गुरू माता जी ने कहा कि जीवन में स्थिरता लाने के लिए चेतनता एवं विवेक की आवश्यकता होती है और इसके लिए यह जरूरी है कि हम परमात्मा को अपने हृदय में स्थान दें, तब मन स्वतः ही निर्मल हो जाता है। किसी भी प्रकार के नकारात्मक भावों का स्थान नहीं रहता, जब परमात्मा हृदय के रोमरोम में बसा हो।आगे माता जी ने कहा कि पुरातन सन्तों ने भी यही कहा है कि इस ईश्वर को खुली आँखों से देखा जा सकता है। परमात्मा के दर्शन से हमें स्वयं की भी पहचान हो जाती है कि हम शरीर न होकर आत्मा रूप में है। युगों युगों से सन्तों, भक्तों ने यही कहा है कि परमात्मा से नाता जोड़कर, भक्ति के पथ पर चलने से ही जीवन का कल्याण हो सकता है और हमारी आत्मा बंधन मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकती है।समागम के तीसरे दिन का मुख्य आकर्षण एक बहुभाषी कवि दरबार रहा। जिसका शीर्षक ‘स्थिर से नाता जोड़ के मन का, जीवन को हम सहज बनायें’ था। इस विषय पर आधारित कई कवियों ने अपनी कवितायें मराठी, हिंदी, सिंधी, गुजराती, पंजाबी एवं भोजपुरी आदि भाषाओं के माध्यम से प्रस्तुत की।समागम के तीनों दिन महाराष्ट्र के विभिन्न क्षेत्रों से तथा आसपास के राज्यों एवं देशविदेशों से भी संतों ने सम्मिलित होकर अपने भावों को अभिव्यक्त किया। इसके अतिरिक्त सम्पूर्ण अवतार बाणी एवं सम्पूर्ण हरदेव बाणी के पावन शब्दों के कीर्तन से तथा पुरातन सन्तों की रब्बी बाणियों एवं मिशन के गीतकारों की प्रेरणादायी भक्ति पूर्ण रचनाओं की प्रस्तुतियों द्वारा मिशन की विचारधारा पर आधारित सारगर्भित सन्देश दिया गया।