बिना सर्जरी के हार्ट वाल्व बदलने की आधुनिक तकनीक टीएवीआई बुजुर्ग मरीजों के लिए वरदान: डा. एच.के.बाली
भारत में 15 लाख मरीज दिल के वाल्व की खराबी से पीडि़त : डा. अनुराग शर्मा
बीमारी का समय पर पता लगने पर मरीज को मिल जाता है नया जीवन: डा. राणा संदीप: पारस अस्पताल चंडीगढ़, सुनीता शास्त्री : पंचकूला के दिल के रोगों के माहिर डाक्टरों की टीम ने हार्ट वाल्व की समस्या तथा बिना सर्जरी इलाज विषय पर मीडिया के साथ बातचीत की। इस संबंधी कार्डियक साइंस के चेयरमैन डा. एच.के.बाली, सीटीवीएस के डायरेक्टर राणा संदीप सिंह, एसोसिएट डायरेक्टर डा. अनुराग शर्मा, सीनियर कंस्लटेंट डा. गगनदीप सिंह, डा. कपिल चैटरी तथा प्रियंका गुप्ता ने संबोधन किया।
डा. एच.के.बाली ने कहा कि दिल के वाल्व की समस्या या बीमारी के समय वाल्व बदला जाता है। उन्होंने बताया कि वाल्व बदलना एक आम डाक्टरी प्रक्रिया है, जिसमें एरोटिक वाल्व बदला जाता है। डा. बाली ने बताया कि कई बार बुढ़ापे में यह वाल्व सुकूड़ जाता है या मोटा हो जाता है। उन्होंने बताया कि पहले दिल का आप्रेशन (ओपन हार्ट सर्जरी) करके वाल्व बदला जाता था, जिस कारण बुजुर्ग मरीज यह आप्रेशन नहीं करवा सकते थे।
डा. बाली ने बताया कि एरोटिक वाल्व में समस्या के कारण मरीज के शरीर को कम रक्त पहुंचता है, जिससे सांस लेने, थकावट, छाती में दर्द तथा टांगों की सोजिश जैसे कई लक्ष्ण दिखाई देते हैं। उन्होंने बताया कि अब सर्जरी की जरूरत नहीं है, क्योंकि ट्रांस कैथेटिर एरोटिक वाल्व इम्पलांटेशन (टीईवीआई) या टीएवीआर आ गई है।
इसी तरह के इलाज में संक्रमण का भी कोई खबरा नहीं रहता है, दो-तीन दिन बाद मरीज को अस्पताल में से छुट्टी दे दी जाती है। डा. बाली ने बताया कि हमारे देश में इस तकनीक द्वारा एक साल में 600 मरीजों का इलाज किया जाता है, जबकि अमरीका में करीब 80 हजार लोगों का एक साल में इलाज होता है।
डा. अनुराग शर्मा ने कहा कि कुछ वर्ष पहले ही बहुत ज्यादा गंभीर मरीजों का इलाज टीएवीआई की तकनीक द्वारा किया जाता था, पर अब कम जोखिम वाले मरीजों के लिए भी इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। उन्होंने बताया कि यह इलाज एंजियोग्राफी की तरह एक आर्टरी द्वारा किया जाता है। एंडोवेस्कूलर तकनीक के जरिए वाल्व तबदील किया जाता है। उन्होंने बताया कि इस विधि से ट्रांस्पलांट के लिए डेढ़ से दो घंटे का समय लगता है।
दिल के रोगों के इलाज संबंधी विभाग (कार्डियो थोरोकिक एंड वेस्कूलर सर्जरी विभाग) में पारस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल की सुविधाओं के बारे बताते हुए डा. राणा संदीप सिंह ने बताया कि दिल के वाल्व की स्थिति की जांच के लिए इको-कार्डियोग्राफी तथा डोपलर एक सरल तकनीक है, जो पारस अस्पताल में उपलब्ध है। उन्होंने बताया कि दूर-दराज के इलाकों करनाल, पानीपत, जम्मू, अमृतसर, संगरूर, बठिंडा से मरीज यहां वाल्व के इलाज के लिए आते हैं।
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020