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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

विदेश से लौटकर शुरू किया खुद का बिजनेस, मिला पैसा और शोहरत

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चंडीगढ़ सुनीता शास्त्री। चंडीगढ़ से लगभग 40 किलोमीटर दूर संघोल गांव में हड़प्पा खुदाई स्थल के दाहिनी तरफ स्थित द कोर्डिया एजुकेशन कॉम्प्लेक्स को राणा ने राज्य के पिछड़े और ग्रामीण इलाकों तक बेहतर शिक्षा पहुंचाने के मकसद से खोला है. यह जगह फतेहगढ़ साहिब जिले में आती है।राणा ने कहा, मैंने पंजाब के ग्रामीण इलाके में अच्छी शिक्षा पहुंचाने का निश्चय किया था, क्योंकि गांवों के ज्यादातर बच्चों के पास गांव छोडऩे और उच्च शिक्षा पाने के साधन नहीं थे।हमारा पहला कॉलेज 2005 में शुरू हुआ। हमारे अब छह कॉलेज हैं, जिनमें ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन कोर्सेज चलते हैं।लॉर्ड राणा एजु-सिटी 27 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है, जिसमें बिजनेस मैनेजमेंट, हॉस्पिटलिटी और टूरिज्म मैनेजमेंट, कृषि, शिक्षा, प्रोफेशनल एजुकेशन और कौशल विकास के कोर्सेज मौजूद हैं।राणा के मुताबिक, मेरी मां ज्वाला देवी का जन्मस्थान होने के कारण संघोल को मैंने शिक्षण संस्थान स्थापित करने के लिए चुना। परियोजना में प्रतिबद्धता, समय और धन का निवेश हुआ है। यहां आने वाले ज्यादातर स्टूडेट ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों से होते हैं, जिसके कारण उन्हें पढ़ाना एक चुनौती है।उत्तरी आयरलैंड में कुछ समय बिताने के बाद रेस्टोरेंट, होटल और दूसरे कारोबार के जरिए छह करोड़ पाउंड का साम्राज्य खड़ा करने में उन्होंने काफी कड़ी मेहनत की.ग्रामीण पंजाब में शिक्षा जैसी परोपकारी पहल करने वाले राणा को दुख है कि उन्हें भी दफ्तरशाही और नौकरशाही से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा.राणा कहते हैं कि विश्वविद्यालय परिसर स्थापित करने के लिए न्यूनतम 35 एकड़ भूमि की अनिवार्यता आड़े आ रही थी. उन्होंने कहा, यहां कानून पुराने हैं।दुनियाभर में कई विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालयों में इससे भी कम जमीन है। यहां नियमों में बदलाव किए जाने की जरूरत है.उन्होंने कहा, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के स्टूडेंट्स को स्कॉलरशिप देने के लिए दो करोड़ रुपये जिनका भार राज्य सरकार को उठाना है, लगभग ढाई सालों से अटके हैं, जिससे हमें आर्थिक समस्या हो रही है.उन्होंने कहा, ग्रामीण क्षेत्रों के लिए बेहतर टीचर ढूढऩा भी एक मुश्किल काम है. परियोजना की प्रगति देखने के लिए मैं तीन-चार महीनों में भारत का दौरा करता हूं देश का विभाजन देख चुके और खुद एक शरणार्थी परिवार से ताल्लुक रखने वाले राणा ने कहा कि वह जब भारत के पंजाब आए थे तो उनके पास कुछ नहीं था। राणा का परिवार विभाजन के बाद पाकिस्तान के लायलपुर से भारत के पंजाब आकर बस गया था।1980 के दशक में उत्तरी आयरलैंड में सांप्रदायिक हिंसा में उनके कुछ प्रतिष्ठानों पर 25 से ज्यादा बम विस्फोट हुए थे, लेकिन राणा हिंसाग्रस्त क्षेत्र में भी दृढ़ बने रहे। इसके बाद वह यूनाइटेड किंगडम के सबसे सफल और सम्मानित व्यवसायियों में शुमार हो गए. वह उत्तरी आयरलैंड में भी समाज कल्याण के काम करते रहते हैं और ब्रिटिश सरकार उनकी सेवाओं का सम्मान करती है।उत्तरी आयरलैंड में भारत के मानद महावाणिज्यदूत के तौर पर नियुक्त राणा ग्लोबल ऑर्गनाइजेशन ऑफ पीपुल ऑफ इंडियन ऑरिजिन के अध्यक्ष हैं।