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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

रुपे ने पेनीयरबाई के सहयोग के साथ ‘रुपेपीओएस’ समाधान को लॉन्च करने के लिए आरबीएल बैंक से मिलाया हाव्यापारियों को डिजिटल सशक्त बनाने वाली ‘रुपेपीओएस’, स्मार्टफोन को पाइंट ऑफ सेल मशीन में बदलने की पहल

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चंडीगढ़, सुनीता शास्त्री। नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई) ने बताया है कि भारतीय व्यापारियों के लिए एक नए भुगतान समाधान ‘रुपेपीओएस’ को शुरू करने के लिए रुपे ने पेनीयरबाई के सहयोग से आरबीएल बैंक के साथ भागीदारी की है। यह स्मार्टफोन को रिटेल विक्रेताओं के लिए मर्चेंट पॉइंट ऑफ सेल (पीओएस) टर्मिनलों में बदल देगा। व्यापारी अब एक साधारण टैप और अपने एनएफसी सक्षम मोबाइल फोन पर भुगतान तंत्र के माध्यम से 5000 तक के संपर्क रहित भुगतान को स्वीकार कर सकेंगे। रुपे कार्ड का उपयोग करने वाले ग्राहक अपनी नियमित खरीद के लिए संपर्क रहित भुगतान कर सकते हैं।’रुपे पीओएस’ खुदरा विक्रेताओं को बिना किसी अतिरिक्त पूंजी लागत के प्रभावी स्वीकृति बुनियादी ढांचा प्रदान करेगा। यह अनोखी पहल लाखों वंचित और तकनीक से अछूते भारतीयों व एमएसएमई के बीच डिजिटल भुगतान स्वीकृति को आगे बढ़ाने में मददगार होगी। व्यापारी अपने पेनीयरबाई ऐप को अपडेट करके अपने एंड्रॉइड स्मार्टफोन को भुगतान स्वीकृति टर्मिनल में बदल सकते हैं। ‘रुपेपीओएस’ के साथ, दूरस्थ इलाकों से लेकर नजदीक के स्थानीय स्टोर भी अब अपने स्मार्टफोन पर संपर्क रहित भुगतान की प्रक्रिया पूरी कर सकेंगे।एक पायलट प्रोजेक्ट के रूप में, ‘रुपेपीओएस’ स्केन रुपेएनसीएमसी के ऑफलाइन लेनदेन को भी स्वीकार करता है, इस प्रकार ऑनलाइन और ऑफलाइन कार्ड भुगतान दोनों के लिए आसान स्वीकृति बुनियादी ढांचे को सुनिश्चित करता है। 200 रुपए या इससे कम के लेन-देन पर ऑनलाइन प्रमाणीकरण की आवश्यकता नहीं होगी, यह इस किस्म के लेनदेन को नकद विनिमय की तरह त्वरित और आसान बना देगा। यह माइक्रो पेमेंट प्रोसेसिंग के लिए इंटरनेट निर्भरता को खत्म करने के दोहरे उद्देश्य को बढ़ावा देता है और ग्राहकों के लिए परेशानी मुक्त खरीदारी के अवसर को सुनिश्चित करता है।आरबीएल बैंक में डिजिटल भुगतान और अधिग्रहण के हेड पुष्पेन्द्र शर्मा ने कहा, ‘हम ‘रुपेपीओएस’ समाधान की पेशकश करने के लिए रुपे और पेनीयरबाई के साथ साझेदारी करते हुए प्रसन्न हैं। यह पहल डिजिटल भुगतान परिदृश्य को बदलने और लेनदेन के सुरक्षित और सुविधाजनक तरीकों तक पहुंच का लोकतंत्रीकरण करने के उद्देश्य से है। स्मार्टफोन की बढ़ती पहुंच और प्रसार के साथ हमारा मानना है कि डिजिटल भुगतान लाखों व्यापारियों और उपभोक्ताओं के लिए सरल और किफायती है। इस अभिनव पेशकश के साथ, आरबीएल बैंक में हम हमारी भौगोलिक पैठ को गहरा करने और अपने ग्राहक आधार को बढ़ाने के लिए आश्वस्त हैं। ‘रुपेपीओएस’ जैसे नवाचारों से निश्चित रूप से भारत को कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था बनाने में मदद मिलेगी।’पेनीयरबाई के एमडी और सीईओ आनंद कुमार बजाज ने कहा, ‘पेनीयरबाई, देश में आत्मनिर्भर भुगतान समाधान का नेतृत्व करने के लिए डिजिटल भुगतान में आगे बढ़ने का लक्ष्य रखता है। ‘रुपेपीओएस’ के माध्यम से, हम आसान और तेज डिजिटल भुगतान के लिए स्वीकृति बिंदुओं की संख्या जोड़कर एक पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना चाहते हैं। यह लागत प्रभावी समाधान देश के 30 मिलियन छोटे और मध्यम व्यापारियों को लक्षित करते हुए तैयार किया गया है जो उन्हें अपने ग्राहकों को सरल संपर्क रहित समाधान के साथ सशक्त बनाता है। हम लास्ट-मील कनेक्टिविटी के साथ आसान उपयोग वाली डिजिटल तकनीक को जोड़कर अपने खुदरा विक्रेताओं और उपभोक्ताओं को सशक्त बनाने के लिए तत्पर हैं। ऐसे ही कामों से जनता में डिजिटल अंतराल घटेगा और डिजिटल भारत की नींव मजबूत होगी।’एनपीसीआई में रुपे और एनएफसी के हेड नलिन बंसल ने कहा, ‘हम पेनीयरबाई, पेनेक्स्ट, यूविक और आरबीएल बैंक के साथ जुड़कर खुशी महसूस कर रहे हैं ताकि ‘रुपेपीओएस’ को लॉन्च कर देश भर के व्यापारियों को डिजिटल भुगतान पारिस्थितिकी तंत्र में शामिल किया जा सके। हमारा मानना है कि स्मार्टफोन को पीओएस मशीन में बदलने वाला यह क्रांतिकारी तंत्र डिजिटल भुगतानों की पैठ को मजबूत करेगा और देश में डिजिटल भुगतान के प्रति स्वीकृति के बुनियादी ढांचे को मजबूत करेगा। इससे व्यापारियों के साथ-साथ ग्राहकों के लिए भी एक सहज लेन-देन का अनुभव विकसित होगा। व्यापारी के लिए डिजिटल भुगतान में आसानी तो होगी ही, साथ ही उन्हें इस सुविधा से काउंटर पर नकदी से निपटने की परेशानी को कम करने में भी मदद मिलेगी। यह हमारा विश्वास है कि यह पहल व्यापारियों और ग्राहकों की कैश पर निर्भरता को कम करते हुए ‘आत्मनिर्भर’ बनाने की ओर ले जाएगी। इस तरह कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था की दिशा में भारत के कदम भी तेज होंगे।ऑनलाइन स्कूली शिक्षा के कारण बच्चे भी कठिन दौर से गुजर रहे हैं। इंटरनेट एक्सपोजर के कारण बच्चे साइबर क्राइम आदि में फंस रहे हैं। स्क्रीन का समय बढ़ गया है जिससे छात्रों का मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है। किसी के पास घर में वास्तविक स्कूल जैसी बुनियादी संरचना नहीं हो सकती है जो शिक्षा को समझने बहुत प्रभावित करती है।उन्होंने आगे कहा कि एक आंकड़े के अनुसार, महिलाओं में डिप्रेशन पुरुषों की तुलना में दोगुनी होती हैं। अध्ययन में पाया गया है कि लॉकडाउन में घरेलू हिंसा व काम का बोझ बढऩे से महिलाओं में डिप्रेशन बढ़ गया है। इस अवसर के दौरान अन्य लोगों में, डॉ आरपी गाबा, धन्वंतरि पुरस्कार से सम्मानित और नीमा के पैट्रन , डॉ जीडी मेहता, डॉ, मीनू गांधी और डॉ राजेश तायल, नीमा के क्रमश: अध्यक्ष, महासचिव और कोषाध्यक्ष व डॉ अमित बंसल फेथ हॉस्पिटल के संस्थापक निदेशक भी मौजूद थे।