पचकुलां 22 सितंबर- अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्य और आदमपुर के विधायक श्री कुलदीप बिश्नोई ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा कृषि सुधार से सम्बन्धित दो अध्यादेशों को कानूनी अमली जामा पहनाने के लिए ,राज्य सभा में जिस अलोकतांत्रिक तरीके से विपक्ष की आवाज को दबाकर, ध्वनिमत से इन अध्यादेशों को पास करवाया गया है, इससे लोकतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंची है और संसदीय इतिहास में जिस अनूठी परम्परा की शुरुआत करने का प्रयास किया गया है, वह लोकतंत्रान्त्रिक मूल्यों के लिए भविष्य में घातक सिद्ध होगा।
श्री बिश्नोई ने कहा कि मैं भी संसद का सदस्य रहा हूं और संसदीय परम्पराओं के अनुसार अगर विपक्षी पार्टियों के सदस्य किसी अंहम बिल पर मत विभाजन की मांग करते हैं तो उनकी भावनाओं का सम्मान करना और उन्हें संरक्षण प्रदान करना सभापति का प्रमुख दायित्व है। उन्होंने प्रश्न किया कि अगर इसी तरह ध्वनिमत से ही बिना बहस के ही लोक सभा और राज्य सभा में बिल पास होने लग जायेंगे तो देश में लोकतंत्र की अहमियत ही क्या बचेगी। ऐसे
आचरण से तो लोकतंत्र से ही लोगों का विश्वास उठ जाएगा और फिर अगर मनमाने ढंग से सरकार चलानी है तो फिर विपक्षी पार्टियों की क्या जरूरत है। उन्होंने कहा कि देश का किसान इन काले कानूनो के खिलाफ सड़कों पर है, उसकी आवाज को नहीं सुना जाना चाहिए था। उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि अगर सरकार इन कृषि सुधार बिलों को किसानों की तकदीर बदलने वाला मान रही है, तो सतापक्ष इनको पास करवाने की इतनी जल्द बाजी कर्मों दिखला रहा है। उन्होंने कहा कि देश का किसान अपने भविष्य के प्रति आशंकित है और वह सड़कों पर उतर कर सरकार से अपनी आजीविका को पूंजीपतियों के चंगुल से मुक्त करवाने की गुहार लगा रहा है। क्या सरकार किसानों के इतनी असंवेदनशील हो गई है कि केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को अपने संसदीय क्षेत्र में इन कृषि विधेयकों के खिलाफ मुखर विरोधी आवाज सुनाई नहीं दे रही है। श्री बिश्नोई ने कहा कि देश का किसान यह जानने को उत्सुक हैं कि न्यूनतम समर्थन मूल्य कौन तय करेगा , देश के कारपोरेट घराने या सरकार, किसानों की बेबसी और लाचारी का फायदा , साहुकार उठाएगें और उनके बूरे दिनों की शुरुआत प्रतीक्षा कर रही है। भाजपा ने जिस प्रकार से अपने स्वार्थ के लिए देश के किसानों को स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने और फसलों के दाम दोगुना करने के नाम पर गुमराह किया, वह कड़वी सच्चाई अब देश के किसानों के सामने आ चुकी है।
उन्होंने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के नाम पर भी देश के किसानों को गुमराह किया जा रहा है। उन्होंने केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के 18 सितंबर को दिए गए , एक साक्षात्कार में कहा था कि -एम एस पी , इस लिए अनिवार्य नहीं हो सकता है, क्योंकि यह व्यापारी और किसान के बीच में करार है। किसान और प्रोसेसर मिल कर फसल की कीमत तय करेंगे। उन्होंने पूछा एम एस पी के बारे में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी गुमराह कर रहे हैं या केन्द्रीय कृषि मंत्री , यह भ्रम की स्थिति देश को स्पष्ट की जानी चाहिए। श्री बिश्नोई ने मांग की है कि सरकार पर अंकुश लगाने के लिए ध्वनिमत से वोटिंग के खिलाफ भी एक बिल पास किया जाए ताकि सत्ताधारी दल इसका दुरुपयोग करके लोकतांत्रिक व्यवस्था को बर्बाद ना कर दे। इसके साथ ही उन्होंने मांग की है कि जो भी प्रोसेसर न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर खरीद करता है, उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई का प्रावधान किया जाए और किसानों का न्यायालय में जाने का अधिकार बहाल किया जाए अन्यथा किसानों के साथ यह होने वाला है कि, पहले फसल आने पर फसल बिकती थी और अब इस कानून के आने के पश्चात खेत में बोने से पहले ही फसल बिक जायेगी और यही से किसान की बर्बादी की दास्तान लिखनी शुरू हो जाएगी। उन्होंने भरोसा दिलाया कि कांग्रेस पार्टी की सरकार आने पर इन सभी काले कानूनों को वापिस ले कर किसानों की आजादी बहाल की जाएगी। *******************
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020