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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

भाषा का कोई मजहब नहीं होता : इरशाद कामिल हिंदी विभाग का हिंदी माह उत्सव 2020 संपन्न

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चंडीगढ़, 14 सितंबर। पंजाब विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा मनाए गए हिंदी माह उत्सव 2020 का समापन आज हिंदी दिवस पर आयोजित परिचर्चा से हुआ। इसमें प्रसिद्ध गीतकार और हिंदी विभाग के पूर्व छात्र डॉ. इरशाद कामिल मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। उन्होंने ‘हिंदी-उर्दू-पंजाबी की साझा विरासत’ पर अपने विचार व्यक्त किए। इरशाद कामिल ने कहा कि पंजाब के लोग इस मायने में बहुत सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें तीन भाषाओं हिंदी-उर्दू-पंजाबी की समृद्ध विरासत मिली है। उन्होंने कहा कि वह स्वयं भी इसी विरासत के कारण अपने गीतों में तीनों भाषाओं के शब्दों का बहुत सहजता से प्रयोग कर पाते हैं। इरशाद कामिल ने हिंदी के भीष्म साहनी व यशपाल, उर्दू के मंटो और पंजाबी की अमृता प्रीतम जैसे लेखकों के उदाहरण देते हुए कहा कि तीनों भाषाओं में विभाजन की त्रासदी को कई तरह से और बहुत संजीदगी से चित्रित किया गया है। उन्होंने साझी विरासत पर बात करते हुए कहा कि भाषा का कोई मजहब नहीं होता। भाषा जो है वह सबकी साझी होती है।

विभागाध्यक्ष डॉ. गुरमीत सिंह ने इरशाद कामिल का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी माह के दौरान हुई परिचर्चाओं में बार – बार यह बात उभर कर सामने आई की हिंदी के प्रचार – प्रसार में फिल्मी गीतों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इसलिए डॉ. इरशाद कामिल जैसे लेखकों पर हमें गर्व होना चाहिए।

व्याख्यान के बाद प्रश्न – उत्तर का सत्र भी हुआ जिसमें इरशाद कामिल ने कार्यक्रम में मौजूद विद्यार्थियों की फरमाइश पर हिंदी, उर्दू और पंजाबी तीनों भाषाओं में स्वयं लिखित कविताएं/ग़जलें भी सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

आज के कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से शोधार्थी एवं प्राध्यापकों सहित 100 से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया जिनमें पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर, संगीत विभाग से प्रो. नीना ग्रोवर, विभाग से प्रो. नीरजा सूद, प्रो. सत्यपाल सहगल, संध्याकालीन विभाग से प्रो. नीरज जैन, जनसंचार विभाग से डॉ. भवनीत भट्टी, इतिहास विभाग से डॉ. प्रियतोष शर्मा, प्रो. सुखदेव सिंह मिन्हास, तिरुपति से प्रो. राम प्रकाश, मणिपुर से डॉ. ई विजयलक्ष्मी, प्रयागराज से डॉ. ज्ञानेन्द्र शुक्ल और श्री प्रशांत मिश्रा शामिल रहे।