- विधानसभा की कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया खुलासा
- करों को एकत्रित करने और रिकवरी में दिलचस्पी नहीं अधिकारियों की
Dainik Bhaskar
Mar 13, 2020, 08:43 AM IST
चंडीगढ़. सरकारी खजाने को भरने में वित्त मंत्री तो खूब जोर लगा रहे हैं लेकिन कई विभागों के कर्मचारी खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। जिसका नतीजा चालू वित्त वर्ष में भी देखने को मिलता है कि खजाने में टैक्स से मिलने वाले राजस्व में कमी आई है। इसका खुलासा विधानसभा की शहरी स्थानीय संस्थाओं संबंधी तकनीकी निरीक्षण कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में किया है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विभाग के अधिकारी कई करों व उपकरों को एकत्रित करने और रिकवरी में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि मकान निर्माण व शहरी विकास विभाग पर सरकार ने अगस्त 2013 में तय किया था कि अनधिकृत कालोनियों/प्लाटों को रेगुलर करने के एवज में मिलने वाली कुल फीस में कैंसर सेस और कल्चर सेस के रूप में 1-1 फीसदी राशि जमा करवाएगा। लेकिन 31 शहरी स्थानीय संस्थाओं ने 2013-16 के दौरान रेगुलराइजेशन चार्ज के रूप में 66.42 करोड़ हासिल किए लेकिन सेस की बनती 1.33 करोड़ खजाने में जमा नहीं कराई।
2013 में वसूली राशि 2016 तक नहीं जमा कराई गई
कमेटी ने 31 मई तक सेस की सारी राशि खजाने में जमा कराने और आरोपी अफसरों पर कार्रवाई की सिफारिश की है। श्रम विभाग को किसी भी इमारत की योजना को मंजूरी देते हुए उसके निर्माण की लागत की एक फीसदी राशि और ठेकेदार के बिलों में से टेंडर नोटिफिकेशन के जरिए मंजूर लागत पर एक फीसदी राशि काटकर लेबर सेस के तौर पर मजदूर कल्याण बोर्ड के पास जमा करानी है। 2013 में उगाही गई राशि 2016 तक जमा नहीं कराई गई।
वसूली करने को कहा...रिपोर्ट में बकाया राशि की वसूली तेज करने की सिफारिश की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ मामलों में करोड़ों की राशि की रिकवरी नहीं की गई और कुछ मामलों में उगाही गई राशि को किसी अन्य मद में खर्च कर दिया गया। विभाग ने कमेटी को बताया कि लेबर सेस की कुल 476.70 लाख की राशि में से 177.76 लाख रुपये ही बोर्ड के खाते में जमा कराए गए हैं।