- कारोबार के सिस्टम- बल्ले बनकर जालंधर से जाते हैं अौर स्टिकर दूसरी कंपनियों के लगते हैं
Dainik Bhaskar
Jun 23, 2019, 09:32 AM IST
जालंधर (वारिस मलिक). क्रिकेट वर्ल्ड कप अपने नाम करने के लिए 10 टीमों के खिलाड़ी इंग्लैंड में दमखम लगा रहे हैं। सभी टीमों के प्लेइंग इलेवन की बात करें तो करीब 80% खिलाड़ी मेड इन जालंधर बैट से चौके-छक्के लगाकर अपनी टीम को जीत के करीब ले जा रहे हैं। पूरी दुनिया में बल्ले एक्सपोर्ट कर रहीं जालंधर में कंपनियों में न्यू बैलेंस, ग्रे-निक्कल, स्पार्टन, बीट आॅल स्पोर्ट्स और एएनएम और केजी का नाम प्रमुख है।
35 खिलाड़ी बल्ले पर इन कंपनियों के स्टिकर लगाकर खेल रहे हैं। अन्य खिलाड़ी बैट पर स्टिकर दूसरी कंपनियों के लगाते हैं पर बैट जालंधर का ही बना होता है। प्रोफेशनल बैट का वजन 1150 से 1200 ग्राम तक और कीमत ~55 हजार तक है। जालंधर के बैट निर्माता ग्रे-निक्कल भारत के एकमात्र ऑफिशियल स्पांसर हैं और अपने हर प्रोडक्ट पर वर्ल्ड कप लोगो का इस्तेमाल कर सकते हंै।
ग्रे-निक्कल वर्ल्ड कप में भारत का एकमात्र स्पांसर :
इंग्लैंड के जोनी बेरिस्टो; न्यूजीलैंड के कैन विलियम्सन अॉस्ट्रेलिया के शॉन मार्श, साउथ अफ्रीका टीम के रबाडा, वेस्ट इंडीज टीम के क्रिस गेल, आॅस्ट्रेलिया के डेविड वार्नर, साउथ अफ्रीका के हाशिम आमला, भारत के महेंद्र सिंह धोनी, श्रीलंका टीम का इसरू उदाना, बांग्लादेश के 4 खिलाड़ी, साउथ अफ्रीका के 4 खिलाड़ी जालंधर के बल्ले का इस्तेमाल करते हैं। आॅस्ट्रेलिया के स्टीव स्मिथ, एरोन फिंच, मेथ्यू वेड, केन रिचर्डसन, एडम जम्पा, मिशेल मार्श, न्यूजीलैंड के मिशेल सेंटनर, ट्रेंट बोल्ट, कोलिन मुनरो, ईश सोढी, जेम्स नेशाम, साउथ अफ्रीका के डेल स्टेन, डेविड मिलर, क्रिस मौरिस, इमरान ताहिर और इंग्लैंड के जॉय रूट, जैसन रॉय, मार्क वुड, लियाम पुलंकित खेल रहे हैं।
प्लेयर की परफॉर्मेंस में बल्ले की शेप, वजन का अहम रोल :
रणजी खेल चुके कोच दविंदर अरोड़ा और हरजिंदर सिंह हैरी ने बताया कि बल्लेबाज की परफॉर्मेंस में बल्ले की शेप, साइज और वजन का अहम रोल होता है। आज हर खिलाड़ी अपनी सुविधा के अनुरूप बल्ले तैयार करवाता है। पहले जहां हैवी बैट पसंद किए जाते थे वहीं अब लाइट वेट बल्लों का ज्यादा ट्रेंड है। ज्यादातर बैट 1150 से 1180 ग्राम वजन के बनते हैं।
विदेशी प्लेयर्स जालंधर के बल्लों की करने लगे डिमांड :
वर्ल्ड कप में भारत के ऑफिशियल स्पांसर ग्रे-निक्कल के एमडी अरविंद अबरोल ने कहा कि विदेशी प्लेयर पहले भी जालंधर में बने बल्लों पर यकीन करते थे पर मेड इन इंडिया को क्रेडिट देने से हिचकते थे। विदेश में बल्लों की प्रोडक्शन बहुत कम हो गई है। ऐसे में भारतीय बल्लों की डिमांड बढ़ी है।
टूर्नामेंट के फार्मेट के हिसाब से तैयार कराते हैं बल्ला :
इन दिनों बल्लेबाज टूर्नामेंट के फार्मेट के मुताबिक बल्ले तैयार करवाते हैं। बल्ले का वजन, साइज और हैंडल की ग्रिपिंग पर खास ध्यान दिया जाता है। वन-डे, टी-20 और टेस्ट क्रिकेट के लिए अलग-अलग वजन होता है। सचिन सबसे भारी 1300 ग्राम के बल्ले खेलते थे। इसके चलते उन्हें टेनिस एल्बो नाम की प्रॉब्लम हो गई थी। इसके बाद उन्होंने अपने बल्ले के वजन को कम करवाया था।