- युवराज सिंह ने अक्टूबर 2000 में केन्या के खिलाफ वनडे में डेब्यू किया था, उन्होंने टीम इंडिया के लिए 304 वनडे खेले
- 2011 के वर्ल्ड कप में युवी ने 362 रन बनाए और 15 विकेट लिए, इसी टूर्नामेंट के बाद उन्हें कैंसर के बारे में पता चला
- युवराज का इलाज करने वाले डॉ. नितेश रोहतगी ने बताया- वे तकलीफ में थे लेकिन कभी रोए नहीं
नई दिल्ली. क्रिकेट वर्ल्ड कप 2011 की जीत में अहम भूमिका निभाने वाले युवराज सिंह ने सोमवार को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया। संन्यास के फैसले पर युवराज ने कहा कि “सफलता भी नहीं मिल रही थी और मौके भी नहीं मिल रहे थे।” युवराज ने 2011 के वर्ल्ड कप में 9 मैच में 90.50 के औसत से 362 रन और 15 विकेट लिए थे। वे उस वर्ल्ड कप में प्लेयर ऑफ द सीरीज भी चुने गए थे। इसी वर्ल्ड कप के दौरान युवराज कैंसर की बीमारी से जूझ रहे थे लेकिन उन्हें इस टूर्नामेंट के बाद अपनी इस बीमारी के बारे में पता चला। युवराज को ‘मीडियास्टिनल सेमिनोमा’ नाम का दुर्लभ कैंसर हुआ था। उन्होंने न सिर्फ इससे लड़ाई लड़ी बल्कि जीतकर वापसी भी की।
युवराज को जब कैंसर का पता चला तब उनके साथ दिल्ली के मैक्स केयर सेंटर के डॉक्टर नितेश रोहतगी ने हमेशा साथ दिया। युवराज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका शुक्रिया अदा भी किया। डॉ. नितेश से दैनिक भास्कर प्लस ऐप ने बात की और जाना कि किस तरह युवराज ने कैंसर से लड़ाई लड़ी।
‘उनका टारगेट था- कैंसर को हराकर वापसी करना’
डॉ. रोहतगी बताते हैं कि जब मुझे पता चला कि युवराज को इस तरह का कैंसर है, तो मुझे नहीं लगा था कि वे इसके बाद क्रिकेट में वापसी कर पाएंगे। लेकिन उनसे पहली मुलाकात ने ही मेरी आशंका को खत्म कर दिया। पहली मुलाकात में वे बेहद सामान्य होकर अपने कैंसर के बारे में चीजें पूछ रहे थे। उनके चेहरे पर न कोई शिकन थी, न कोई घबराहट और न ही किसी तरह की चिंता। हमारी पहली मीटिंग 2 से 3 घंटे चली थी। इस मीटिंग में वे इस डिटरमिनेशन (दृढ़ संकल्प) के साथ बैठे थे कि उन्हें जल्द से जल्द क्रिकेट के मैदान में वापसी करना है। यही देखकर मुझे लग गया था कि वे बहुत जल्द क्रिकेट में वापसी करेंगे। जैसे अर्जुन का निशाना मछली की आंख था, ठीक वैसे ही उनका टारगेट कैंसर को हराकर क्रिकेट में वापसी करना था।
‘दोस्ताना स्वभाव ने कैंसर से लड़ने में मदद की’
डॉ. रोहतगी के मुताबिक- कैंसर के इलाज के दौरान एक चीज जिसने उनकी सबसे ज्यादा मदद की, वह उनका दोस्ताना स्वभाव था। वे जहां भी होते थे, अपना एक ग्रुप बना लेते थे और बस किस्से, कहानियों का दौर शुरू हो जाता था। पूरे टाइम हंसी-मजाक और मस्ती ही उनका स्वभाव था। बहुत से दोस्त थे, बहुत से लोग उन्हें चाहते थे, प्यार करते थे। यही बातें उन्हें कैंसर से लड़ने में मददगार साबित हुईं। उनमें एक और खास बात थी, वह है एक्सेप्टेंस। वास्तव में चीजें हैं उसे स्वीकार करते थे और फिर उसका सामना करने के लिए तैयार हो जाते थे।
‘युवी को तकलीफ में देखा, लेकिन मायूस नहीं’
रोहतगी कहते हैं कि इलाज के दौरान युवी को तकलीफ में तो कई बार देखा। लेकिन उन्हें मायूस या रोते हुए कभी नहीं देखा। इसका बड़ा कारण शायद कैंसर को हराने को लेकर उनकी सकारात्मक सोच थी। उन्हें पता था कि वे इस रोग से उबरेंगे और फिर क्रिकेट खेलेंगे, इसलिए मायूसी कभी उन्हें छू नहीं पाई।
‘‘इलाज के दौरान युवराज का समय दोस्तों के साथ बातचीत करने, टेबल टेनिस खेलने और टीवी पर कॉमेडी शो देखने में बीतता था। लेकिन यहां भी वे सबसे ज्यादा समय क्रिकेट को देते थे। वे क्रिकेट को मिस करते थे। आधे से ज्यादा टाइम वे टीवी पर क्रिकेट ही देखते रहते थे।’’
‘कैमरा लगवाकर दोस्त की खिंचाई करते थे’
एक किस्से को याद करते हुए डॉ. रोहतगी बताते हैं- मेरे एक मित्र थे पारुल चड्ढा। बहुत अच्छे टेबल टेनिस प्लेयर थे। युवी भी अच्छा टेबल टेनिस खेलते थे। पारुल खुद को टेबल टेनिस का चैंपियन समझते थे। एक दिन दोनों का मैच हुआ और युवराज ने उन्हें एक के बाद कई बार हराया। पारुल ने बोला कि अभी तुम बीमार हो इसलिए मैं हार गया, जिस दिन ठीक हो जाओ, तब मैच खेलेंगे। फिर क्या था युवराज ने एक दिन फिर पारुल को कॉल किया और बोला कि मैं आज ठीक महसूस कर रहां हूं, तो मैच हो जाए। उस दिन भी युवी ने पारुल को कई मैच हराए। तब पारुल ने कहा कि लोगों को युवराज से बहुत प्यार है, इसलिए वे उन्हें हराना नहीं चाहते। युवराज खुराफाती दिमाग के थे। एक दिन बोले- यहां कैमरा लगाओ और पारुल को बुलाओ, उसकी खिंचाई करेंगे। पारुल को बुलाया और जमकर खिंचाई की। कैमरे में रिकॉर्ड भी किया।
‘कैंसर हुआ तो लगा कि आसमान से जमीन पर आ गया’
युवराज ने कहा था- 2011 का वर्ल्ड कप जीतना, मैन ऑफ द सीरीज बनना और चार मैन ऑफ द मैच अवॉर्ड मिलना सपने की तरह था। इसके बाद मुझे कैंसर हो गया। यह आसमान से जमीन पर आने जैसा था। यह सब कुछ तेजी से हुआ और यह तब हुआ जब मैं अपने करियर के पीक पर था। उस वक्त मेरा परिवार, मेरे फैन्स मेरे साथ थे। मेरे परिवार ने मेरी हिम्मत बढ़ाई। कैंसर से जंग जीतने में मदद करने के लिए मैं डॉक्टर रोहतगी और अमेरिका के डॉक्टर लॉरेंस का शुक्रिया अदा करता हूं। कैंसर की लड़ाई जीतने बाद मुझे दूसरी चीजों पर फोकस करने का मौका मिला। मैंने कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए यू वी कैन नाम से एक फाउंडेशन शुरू किया।