- बीते 3 साल में अफगानिस्तान में कई कैफे खुले, यहां महिलाएं आजादी से जीना पसंद करती हैं
- कैफे में महिलाओं के बीच अब भी यही चर्चा- अगर तालिबान का शासन आया तो क्या होगा
- जर्नलिस्ट फराहनाज फरोतन के मुताबिक- मुझे महज किसी की बेटी या बहन बनकर जीना पसंद नहीं, मैं इंसान की तरह पहचान चाहती हूं
काबुल. अफगानिस्तान में बदलाव की बयार बह रही है। इसमें देश में खुल रहे कैफे अहम किरदार निभा रहे हैं। महिलाएं यहां न केवल मनमाफिक कपड़े पहनकर जा सकती हैं, बल्कि पुरुषों से बेतकल्लुफी से बात कर सकती हैं।
17 साल की छात्रा हदीस लेसानी देलीजाम बताती हैं कि एक बार मेकअप और पश्चिमी लिबास के चलते एक राहगीर ने डांट दिया था। हदीस के एक लड़के से बात करने पर एक महिला ने कहा था कि इन सबसे दूर रहो और ऐसा दोबारा मत करना। हालांकि कैफे कल्चर देश में काफी कुछ बदल रहा है।
‘रिलैक्स देते हैं कैफे’
हदीस काबुल में रहती हैं। उनके मुताबिक- हाल ही में मैं एक कैफे गई थी। वहां मैं आजाद महसूस करती हूं। वहां मैं बिना बाल ढंके जा सकती हूं, मनमर्जी के कपड़े पहन सकती हूं और लड़कों से बात कर सकती हूं।
बीते तीन साल में काबुल में कई कैफे खुले हैं। कट्टरता का दिन-रात सामना करने वाली महिलाओं के लिए यह सुकून भरी जगह है। तालिबान के शासन ने महिलाओं की पढ़ाई, उनके घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी थी। अगर उन्हें बाहर निकलना हो तो बुर्का पहनना जरूरी होगा। लेकिन अब माहौल बदला है।
‘महिलाओं के मन में अब भी डर’
कैफे में महिलाओं की चर्चा का विषय अमेरिका और तालिबान के बीच चल रही शांति वार्ता होता है। महिलाओं को डर है कि कहीं कट्टरपंथियों के दबाव के चलते उनके अधिकार कम न कर दिए जाएं। 28 साल की आर्टिस्ट मरियम गुलाम अली कहती हैं- हम एक-दूसरे से यही पूछते हैं कि अगर फिर तालिबान का शासन आ गया तो क्या होगा?
जर्नलिस्ट फराहनाज फरोतन (26) सोशल मीडिया पर #myredline कैंपेन चला रही हैं ताकि महिलाएं मजबूती के साथ खड़ी हो सकें। फराहनाज के फेसबुक पेज पर कैफे के अंदर खुलकर जीने के अंदाज वाले फोटो बिखरे पड़े हैं। वह कहती हैं कि कैफे जाना और दोस्तों से बात करना मुझे पसंद है। बेमतलब की चीजों के लिए मैं कुर्बानी नहीं दे सकती। मैं किसी की बहन या बेटी होकर नहीं रहना चाहती। मैं एक इंसान की तरह पहचान बनाना चाहती हूं। आज भी अफगानिस्तान में महिलाओं का खुली सड़क पर चलना मुश्किल है। लोग हम पर फब्तियां कसते हैं और लोकतंत्र की पीढ़ी करार देते हैं।
महिलाओं को लेकर हालात ठीक नहीं
महिलाओं के रहने के लिहाज से अफगानिस्तान की स्थिति अच्छी नहीं है। शादी के पहले महिला पिता-भाइयों के नियंत्रण में रहती है और शादी के बाद पति के। ज्यादातर शादियां परिवार की मर्जी से ही होती है। प्रेम विवाह में मुश्किल होती है। लड़की अगर अपनी मर्जी से शादी कर ले तो ऑनर किलिंग सामान्य बात है। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए 2009 में कानून लाया गया था लेकिन इसे भी सख्ती से लागू नहीं किया जाता। कई बार लड़कियों को अधेड़ या बुजुर्ग पुरुष को बेच दिया जाता है।
2014 में तालिबान ने कैफे और रेस्त्रांओं में फिदायीन धमाके किए थे। एक मशहूर रेस्त्रां तवेरना डु लीबन कैफे में भी धमाका हुआ था, जिसमें 21 लोग मारे गए थे। इसकी वजह कैफे में शराब परोसा जाना था।