वॉशिंगटन. वैज्ञानिकों ने पानी को फिल्टर करने की एक नई तकनीक ईजाद की है। इस नई तकनीक के मुताबिक, अब पानी को फिल्टर करने के लिए बैक्टीरियल मेम्ब्रेन्स (जीवाणु झिल्लियों) और ग्राफीन ऑक्साइड का इस्तेमाल किया जाएगा। यह शोध जरनल इन्वायरन्मेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।
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अमेरिका की वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, विश्व में 10 में से एक व्यक्ति को पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं मिल पाता है। जबकि, 2025 तक विश्व की आधी से ज्यादा को पानी मिलना मुश्किल हो जाएगा।
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अध्ययन के मुताबिक, अगर इस तकनीक को बड़े पैमाने पर बढ़ाया जाए तो यह कई विकासशील देशों को लाभ पहुंचा सकती है, जहां साफ पानी की समस्या है।
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बताया गया कि यह नई अल्ट्राफिल्ट्रेशन मेम्ब्रेन तकनीक पानी के प्रवाह को रोकने वाले जीवाणुओं और अन्य हानिकारक सूक्ष्मजीवों के जमा होने या पनपने को रोककर पानी को स्वच्छ बनाती है।
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गीली सतह पर सूक्ष्मजीवियों के जमा होने को बायोफोउलिंग कहा जाता है। ज्यादातर मेम्ब्रेन में यही समस्या होती है, जिसे पूरी तरह खत्म कर पाना थोड़ा मुश्किल होता है।
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प्रोफेसर श्रीकांत सिंगमानेनी और उनके सहयोगियों ने मेम्ब्रेन को ई-कोलाई बैक्टीरिया से उजागर किया। उन्होंने एक एक्सपेरिंट करते हुए मेम्ब्रेन की सतह पर लाइट डाली। सिर्फ तीन मिनट में ही ई-कोलाई बैक्टीरिया नष्टगया।
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सिंगमानेनी ने कहा, यदि आप सूक्ष्मजीवों के साथ पानी को फिल्टर करना चाहते हैं, तो मेम्ब्रेन्स में ग्राफीन ऑक्साइड कम करें, ताकि वह सूर्य के प्रकाश को अच्छे से अवशोषित कर सके। मेम्ब्रेन्स गर्म होंगे और जीवाणुओं को नष्ट कर देंगे।