ननु जोगिंदर सिंह,चंडीगढ़.देश में हर साल 33 लाख के करीब बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं और इनमें से करीब 1.7 लाख की मौत हो जाती है। ऐसे ही आंकड़ों काे कम करने के लिए सीएसआईआर- इंस्टीट्यूट फॉर माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी (इमटेक) के साइंटिस्ट ने तैयार की है टेस्टिंग किट। इसमें सिर्फ दो खून की बूंदों से ही पता लग जाएगा कि डिलिवरी समय पर होगी या प्री-मैच्योर। डॉ. आशीष गांगुली और उनकी टीम ने इसको तैयार किया है। इसके कमर्शियलाइजेशन को भी मंजूरी दे दी गई है।
डॉ. गांगुली ने बताया कि वे एक ऐसे प्रोटीन पर काम कर रहे हैं जो इंजरी को ठीक करता है। सबसे ज्यादा इंजरी का मौका रहता है बच्चे को जन्म देने में। यहीं से ख्याल आया और उन्होंने इस दिशा में काम करना शुरू किया। 2013 में उनको इसके लिए गेट्स फाउंडेशन से ग्रांट भी मिली। इसके बाद सीएसआईआर ने इस प्रोजेक्ट को अागे बढ़ाने के लिए ग्रांट दी। डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी ने इस किट को बाजार में लाने के लिए मंजूरी दी है। 50 फीसदी हिस्सा ‘ऑनयुजम हेल्थ केयर प्राइवेट लिमिटेड’ को खर्च करना है।
इन्फेक्शन का भी खतरा नहीं… अभी भी प्री-मैच्योर बर्थ को चेक करने के लिए एक सिस्टम है। लेकिन इसके लिए यूटरस में से एमनियोटिक वाॅटर का सैंपल लिया जाता है। इस टेस्ट के लिए हॉस्पिटल जाना होता है। स्पेक्लम डालने की वजह से इससे यूटरस में इन्फेक्शन का डर भी रहता है। लेकिन अब फिंगर टिप से लिया खून ही सही रिजल्ट दे देगा। इसके 284 महिलाओं पर किए गए क्लीनिकल ट्रायल सफल रहे हैं। इसके कुछ टेस्ट पीजीआई एमईआर में भी हुए हैं। लगभग 80 से 84 फीसदी तक रिजल्ट सही पाए गए हैं। जो 16 परसेंट रिजल्ट सही नहीं आए, उनमें भी डिलिवरी टाइम में अधिकतम 11 दिन का अंतर ही पाया गया है।
ऐसे पता चलेगा :डॉ. गांगुली ने बताया कि मां के खून में जेलसोलिन की मात्रा को मापते हैं। यदि प्रोटीन की मात्रा शरीर में बढ़ती है तो बच्चा समय पर पैदा होगा। यदि कम रहती है तो प्री-मैच्योर डिलीवरी होगी। उनकी किट ‘कोंपल’ 5वें महीने में सबसे बेहतर रिजल्ट देती है। मां के खून की सिर्फ दो बूंदें इस पर डालनी होंगी। यह टेस्ट घर भी किया जा सकता है।
चौथे महीने से किया जा सकता है टेस्ट :यह टेस्ट प्रेग्नेंसी के चौथे महीने से किया जा सकता है। लेकिन स्टीक रिजल्ट पांचवें महीने में किए गए टेस्ट के पाए गए हैं। इसका फायदा यह होगा कि प्री-मैच्योर डिलिवरी का पता चलने पर ट्रीटमेंट टाइस से शुरू हो जाएगा।
600 रु. में मिलेगी किट :डॉ आशीष की टीम में डॉ. रेनू गर्ग, डॉ. आमीन, डॉ. नागेश और डॉ. समीर भी शामिल थे। लैब में इसकी कीमत लगभग 150 रु. पड़ी थी, लेकिन बाजार में यह करीब छह 600 में उपलब्ध होने की संभावना है। किट को तैयार करने वाली कंपनी ऑनयुजम से डॉ. सर्वेश ने कहा कि उनका प्रयास होगा कि 6 महीने से एक साल के भीतर ये किट बाजार में उपलब्ध हो जाए।
जरूरी इसलिए….
- 33,00,000 के करीब बच्चे भारत में प्री-मैच्योर पैदा होते हैं(इनमें से करीब 1.7 लाख की हो जाती है मौत)
- 284 महिलाओं पर किया गया क्लीनिकल ट्रायल रहा सफल
- 84% तक रिजल्ट सही पाए गए
- 16% रिजल्ट सही नहीं आए, उनमें भी डिलिवरी टाइम में 11 दिन का अंतर ही पाया गया।
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