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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

प्रोजेक्ट चीता: विश्व में भारत की एक और अग्रणी पहल

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प्रोजेक्ट चीता: विश्व में भारत की एक और अग्रणी पहल
*राजेश गोपाल
*मोहनीश कपूर

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने एक बार फिर एक मिसाल कायम की है!
इस बार, मिसाल वन्य जीवों के संरक्षण से जुड़ी है। विलुप्तप्राय चीता भारत में वापस लौट आया है। प्रधानमंत्री ने 17 सितंबर 2022 को अपने जन्मदिन के अवसर पर जंगली चीतों के पहले समूह को जंगल में छोड़ा।
वर्तमान में जारी एंथ्रोपोसीन युग को प्रकृति से जुड़े परिदृश्य को बदलने की हमारी क्षमताओं के आधार पर चिन्हित किया गया है। मानव प्रेरित गतिविधियां सौम्य नहीं रहीं हैं, बल्कि वे ऐसा तनाव पैदा करने वाली रहीं हैं जिसने हमारे जंगलों को बदल दिया है। यह एक सार्वभौमिक परिघटना है। यह हमारे भू-उपयोग और संबंधित मूल्यों की एक कड़ी है, जिसके परिणामस्वरूप जीव-जंतु और वनस्पतियां विलुप्त हो रही हैं। भारत भी इसका अपवाद नहीं है।
लगभग सत्तर साल पहले, हमने अपने चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस वेनेटिकस) को खो दिया था। ऐतिहासिक रूप से, यह परिघटना पूरे उपमहाद्वीप में दर्ज की गई थी। इस संदर्भ में एक निश्चित सांस्कृतिक और पर्यावरणीय विरासत भी है। गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य (मध्य प्रदेश) जैसे कई गुफा चित्र चीता की अच्छी सापेक्षिक उपस्थिति को दर्शाते हैं।
चीता कुत्ते की तरह की एक बिल्ली है, जो अपने शिकार का पीछा करते हुए दौड़ने के लिए अनुकूलित होता है। “शिकारी तेंदुए” के नाम से जाना जाने वाला, यह जानवर वश में करने योग्य भी था। बाद में राजघरानों और शिकारियों ने इस जानवर को शिकार के लिए निशाना बनाना शुरू कर दिया। शिकार की लालसा के साथ-साथ इससे जुड़ी प्रथाओं ने हमारे देश से चीता को मिटा दिया। आखिरी चीता 1947 में कोरिया (छत्तीसगढ़) में देखा गया था, जिसका शिकार भी राजपरिवार द्वारा किया गया था।
चीतों को विलुप्त होने से बचाने को लेकर विचार-विमर्श शुरू हुए। लेकिन इस दिशा में कदम असल में अब उठए जा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर यह प्रयास बेजोड़ है। इसे अक्सर “किसी लुप्तप्राय जानवर का दुनिया का पहला अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण” के रूप में उद्धृत किया गया है।
चीतों से जुड़ी इस पहल में बहुत सारा विज्ञान लगा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण और भारतीय वन्यजीव संस्थान ने प्रमुख भूमिका निभाई। देश के भीतर उपयुक्त रिहाई स्थलों का मूल्यांकन किया गया और कूनो राष्ट्रीय उद्यान के लिए एक कार्ययोजना तैयार की गई। शिकार के घनत्व, चीता के लिए इसकी वहन क्षमता, प्रबंधन से जुड़े विभिन्न विषयों एवं संबंधित पहलुओं सहित आवास संबंधी व्यवहार्यता से जुड़े प्रोटोकॉल को उपयुक्त नुस्खे के साथ स्पष्ट किया गया।
नामीबिया (08) और दक्षिण अफ्रीका (12) से चीतों को लाकर चुपचाप उन्हें जंगल में छोड़ने की योजना बनाई गई। चीतों को फिर से जंगल में छोड़ने का कार्य चरणबद्ध तरीके से “बीओएमए” (बड़े नैसर्गिक बाड़ों) में हुआ। चीतों को रेडियो कॉलर से लैस किया गया और जीपीएस आधारित रेडियो-टेलीमेट्री का उपयोग करके नियमित रूप से इनकी निगरानी की गई।
जंगल में छोड़े गए प्रत्येक चीता की निगरानी एक वाहन के साथ नौ व्यक्तियों की एक समर्पित टीम द्वारा की गई। जंगल में ये चीते नियमित रूप से शिकार कर रहे थे। इनके द्वारा जिन जानवरों का शिकार किया गया वे जंगली प्रजातियां (चित्तीदार हिरण, सांभर हिरण, चौसिंघा, काला हिरण, चिंकारा, नीलगाय, खरगोश और मोर) थीं। छोड़े गए तीन चीतों द्वारा शिकार करने का अंतराल लगभग 5.6 दिन का था। पशुधन पर हमले का केवल एक ही मामला सामने आया है।
चीतों की व्यावहारिकी के बारे में जानकारी हासिल करने की दृष्टि से एक वर्ष की अवधि काफी कम है।
दक्षिण अफ्रीका के संदर्भ में, चीतों के जीवन इतिहास से जुड़े लक्षण कई विशेषज्ञ समीक्षित प्रकाशनों में अच्छी तरह दर्ज हैं। चीते लगभग दो वर्ष की आयु में यौन रूप से परिपक्वता हो जाते हैं। अन्य फीलीड की तरह ही, चीतों में गर्भावस्था लगभग नब्बे दिनों की होती है और दो से चार शावकों तक का जन्म होता है। नवजात शावक अंधा होता है और जन्म के बाद कुछ महीनों तक अपनी मां पर निर्भर रहता है। यह प्रजाति प्रकृति में अकेली रहती है लेकिन प्रेमालाप के दौरान थोड़े समय के लिए साथ रहती है। हालांकि, कई बार नर चीते गठबंधन बनाते हैं।
प्रसव के बाद की देखभाल मां द्वारा ही की जाती है। आहार में आमतौर पर झुंड में रहने वाले चीतल, चिंकारा, काला हिरण, सांभर और नीलगाय जैसे छोटे से लेकर मध्यम आकार के स्तनधारी तक शामिल होते हैं। दक्षिण अफ़्रीका में, इनके शिकार में चिंकारा, मृग और इम्पाला शामिल होते हैं। कभी-कभी चीता पक्षियों, सरीसृपों और कृन्तकों का भी शिकार करता है।
चीता शीर्ष स्तर का शिकारी नहीं होता है। इसका शिकार शेर, तेंदुआ और लकड़बग्घा जैसी अन्य प्रजातियां करती हैं।
जंगल में, इसका जीवन काल दस से बारह वर्ष तक का होता है। प्रकृति में, चीतों को प्राकृतिक वास की हानि, अवैध शिकार और मनुष्यों के साथ टकराव जैसे कई खतरों का सामना करना पड़ता है।
स्वछंद विचरण करने वाले चीतों द्वारा बोले गए धावे दिलचस्प होते हैं।
दो नर चीतों का गठबंधन 29 से 172 वर्ग किलोमीटर की घरेलू सीमा के दायरे में 101 दिनों की अवधि के दौरान लगभग 184 से 266 किलोमीटर तक घूमा। एक अकेला नर चीता 29 से 487 किलोमीटर के बीच घूमता है, जो 4.1 से 6.8 किलोमीटर के बीच की औसत दैनिक दूरी तय करता है और उसकी घरेलू सीमा 61 से 2087 वर्ग किलोमीटर की होती है। एक अकेली मादा चीता 140 दिनों की अवधि के दौरान 7 से 940 किलोमीटर तक घूमती है। 0.9 से 6.7 किलोमीटर की औसत दैनिक दूरी के साथ, उसकी घरेलू सीमा 1 से 5081 वर्ग किलोमीटर तक होती है।
नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका में चीतों के घूमने के ढर्रे (पैटर्न) को अच्छी तरह से दर्ज किया गया है। इसके विचरण (रेंजिंग) के पैटर्न में काफी भिन्नता होती है। निवासी नर चीतों की घरेलू सीमा का आकार 12 से 350 वर्ग किलोमीटर तक होता है। हालांकि, अस्थायी निवासी चीते (फ्लोटर्स) 125 से 1400 वर्ग किलोमीटर के बीच के बड़े इलाके में विचरते हैं। मादाओं की सीमा में भी 25 से 600 वर्ग किलोमीटर तक भिन्नता दिखाई देती है। अनुभवजन्य साक्ष्यों से संकेत मिलता है कि नर खेत में 1300 से 2200 के बीच विचरते हैं। नर के दायरे का मूल आकार आमतौर पर 20 से 70 वर्ग किलोमीटर के आसपास होता है, जबकि मादाओं का यह दायरा 30 से 60 वर्ग किलोमीटर का होता है। नर और मादा चीते के घरेलू सीमा के दायरे में ओवरलैप होना असामान्य नहीं हैं।
चीता एक स्थूलकाय जानवर है और इसकी शिकार संबंधी रणनीति में मुख्य रूप से शुरू में पीछे लगना और फिर लक्षित तरीके से पीछा करके शिकार को गिराकर दबोच लेना शामिल होता है। कुनो की झाड़ियों एवं जंगलों वाले विषम निवास स्थान को देखते हुए, यह स्थान चीता के लिए तेंदुए के साथ टकराव से बचते हुए अपने शिकार का पीछा करने के साथ-साथ उसे खदेड़ कर पकड़ने की दृष्टि से भी अनुकूल है। इस क्षेत्र में तेंदुए के समस्थानिक होने को देखते हुए, इस निवास स्थान में झुंड में रहने वाले जानवरों की पर्याप्त उपलब्धता आवश्यक है।
कूनो उत्तरी गोलार्ध में स्थित एक स्थल है। दक्षिणी गोलार्ध में होने के कारण नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका दोनों की अपनी-अपनी जलवायु संबंधी व्यवस्थाएं हैं। जानवरों की शरीर की आंतरिक घड़ी (सर्कैडियन) की लय उसी के अनुसार समायोजित होती है। स्थानांतरण के बाद से, विभिन्न कारणों से मृत्यु दर (सात वयस्क और तीन शावक) की सूचना मिली है। इनमें से कुछ (तीन) की मौत सेप्टिक रोग के कारण हुई। यह रोग ऐसे जानवरों के रोमदार पृष्ठीय भाग में पानी के संचय के लिए जिम्मेदार होता है (कूनो के मानसून के बरक्स दक्षिण अफ्रीका/नामीबिया का शीतकालीन समय भिन्न होता है)। फिलहाल, तेरह वयस्क चीते जीवित हैं। पिछले साल के एक शावक के अलावा, हाल ही में दो शावकों की भी सूचना मिली है, जिससे कुल संख्या इक्कीस हो गई है।
चीता, एक तेज दौड़ने वाले जानवर के रूप में, खुले घास के मैदानों और वहां के जंगली निवासियों का एक प्रातिनिधिक संकेतक है। टिकाऊ चीता गठबंधन दीर्घकालिक अवधि में चरागाह इकोसिस्टम की बेहतरी का संकेत देता है। चीता को वापस लाने से ऐसे इकोसिस्टम के पुनरुद्धार की बहुत उम्मीद है। कुनो के संरक्षित क्षेत्र से परे भूखंड में बहुहितधारकों के जुड़ाव को शामिल करते हुए एक अपकेन्द्रीय परिदृश्यीय दृष्टिकोण की परिकल्पना की गई है है। इस तरह के परिदृश्यीय दृष्टिकोण में चीता पर ध्यान केन्द्रित करते हुए पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहमत कार्यों के माध्यम से बहु-हितधारकों के साथ जुड़ाव शामिल होगा।
मध्य प्रदेश के गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य की पहचान चीतों के दूसरे घर के रूप में की गई है। यह एक उत्कृष्ट प्राकृतिक वास है जो पूर्वी अफ्रीका की किसी भी सवाना भूमि के साथ प्रतिस्पर्धा कर सकता है।
चीता को वापस लाने का यह प्रयास इकोलॉजी की दृष्टि से महत्वपूर्ण और सामयिक है। बाघों के मामले में पांच दशकों से अधिक के अनुभव के साथ, भारत एक परिदृश्यीय दृष्टिकोण के जरिए जैव विविधता और मानव कल्याण के एक प्रातिनिधिक बहुआयामी संकेतक के रूप में विभिन्न प्रजाति के जीवों के प्रबंधन के लिए पूरी तरह से तैयार है।