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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

महान आत्मा मदर टेरेसा जीके जन्म दिवस पर दी पुष्पांजलि :खोसला

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महान आत्मा मदर टेरेसा जीके जन्म दिवस पर दी पुष्पांजलि :खोसला

राष्ट्रीय सैनिक संस्था एनसीआर के संयोजक राजीव जोली खोसला ने महान आत्मा स्वर्गीय मदर टेरेसा जी के जन्मदिन पर दी पुष्पांजलि और कहा कि किस प्रकार आता है लोगों की चेता की उनकी मशीनरी में आज हम सबको विदेश में पैदा हुई मदर मदर टेरेसा पर गर्व है!मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को ‘यूगोस्लाविया’ में हुआ था । इनके पिताजी का नाम निकोला बोयाजू और माताजी का नाम द्राना बोयाजू था | इसने पिताजी एक व्यवसायी थे । मदर टेरेसा का पूरा नाम ‘अगनेस गोंझा बोयाजिजू’ था । अलबेनियन भाषा में गोंझा का अर्थ फूल की कली होता है । अगनेस के पिताजी का निधन उनके बचपन में हो गया था | इनका पालन-पोषण इनकी माताजी द्वारा किया गया था | मदर टेरेसा पांच भाई-बहनों में वह सबसे छोटी थी और उनके जन्म के समय उनकी बड़ी बहन की आयु सात वर्ष और भाई की आयु दो वर्ष थी | गोंझा एक सुन्दर जीवंत, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं । पढ़ना, गीत गाना वह विशेष पसंद करती थी । वह और उनकी बहन गिरजाघर में प्रार्थना की मुख्य गायिका थी । गोंझा को एक नया नाम ‘सिस्टर टेरेसा’ दिया गया जो इस बात का संकेत था, कि वह एक नया जीवन शुरू करने जा रही हैं ।
मदर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पंहुचीं । वह बहुत ही अनुशासित शिक्षिका थी, परन्तु विद्यार्थी उनसे अत्यधिक प्यार करते थे । उन्होंने वर्ष 1944 में सेंट मैरी स्कूल की प्रधानाचार्या का पद प्राप्त किया । मदर टेरेसा नर्सिग ट्रेनिंग करनें के पश्चात वर्ष 1948 में वापस कोलकाता आ गईं और वहां से पहली बार तालतला गई, जहां वह ग़रीब बुजुर्गो की देखभाल करने वाली संस्था के साथ रही । उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहमपट्टी की और उनको दवाइया दीं ।
मदर टेरेसा नें वर्ष 1949 में असहाय, ग़रीब व अस्वस्थ लोगों की सहायता हेतु ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की, जिसे रोमन कैथोलिक चर्च नें 7 अक्टूबर 1950 को मान्यता दी । इसी के साथ ही उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का निर्णय लिया |मदर टेरेसा 18 वर्ष की आयु में दीक्षा लेकर सिस्टर टेरेसा बनी थी । वर्ष 1948 में उन्होंने बच्चों को पढ़ाने हेतु एक विद्यालय स्थापित किया, इसके पश्चात ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ की स्थापना की । सच्ची लगन और मेहनत से किया गया काम कभी निष्फल नहीं होता, यह कहावत मदर टेरेसा के साथ सच साबित हुई । मदर टेरेसा की मिशनरीज संस्था नें वर्ष 1996 तक लगभग 125 देशों में 755 निराश्रित गृह खोले जिससे लगभग पांच लाख लोगों को भोजन प्राप्त होता था ।
मदर टेरेसा नें भारत में विकलांग और असहाय बच्चों तथा सड़क के किनारे पड़े असहाय रोगियों की दयनीय स्थिति को अपनी आँखों से देखकर वह भारत से जानें का साहस नहीं कर सकी । उन्होंने भारत में रुककर जनसेवा करनें का प्रण कर लिया, जिसका उन्होंने जीवनभर पालन किया ।
मदर टेरेसा ने भ्रूण हत्या के विरोध में सारे विश्व में अपना रोष दर्शाते हुए अनाथ एवं अवैध संतानों को अपनाकर मातृत्व-सुख प्रदान किया । उन्होंने फुटपाथों पर पड़े हुए रोत-सिसकते रोगी अथवा मरणासन्न असहाय व्यक्तियों को उठाया और अपने सेवा केन्द्रों में उनका उपचार कर स्वस्थ बनाया | दुखी मानवता की सेवा ही उनके जीवन का व्रत है ।मदर टेरेसा को मानवता की सेवा हेतु विश्व के अनेक अंतर्राष्ट्रीय सम्मान एवं पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं | जिनमें पद्मश्री 1962, नोबेल पुरस्कार 1979, भारत का सर्वोच्च पुरस्कार ‘भारत रत्न‘ 1980 में, मेडल आफ़ फ्रीडम 1985 प्रमुख हैं । सम्पूर्ण विश्व में फैले उनके मिशनरी के कार्यों के कारण मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था । उन्हें यह पुरस्कार असहायों और ग़रीबों की सहायता करने के लिए दिया गया था । उन्होंने नोबेल पुरस्कार की 192,000 डॉलर की धन-राशि को भारतीय ग़रीबों के लिए एक फंड के रूप में प्रयोग करने का निर्णय लिया था |
मदर टेरेसा के अंतिम समय में उन पर अनेक प्रकार के आरोप लगाये गये । उन पर असहाय और ग़रीब लोगो की सेवा करने के बदले उनका धर्म बदलवाकर ईसाई बनाने का आरोप लगा । भारत में भी पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में उनकी निंदा हुई । मानवता की रखवाली की आड़ में उन्हें ईसाई धर्म का प्रचारक माना जाता था ।मदर टेरेसा वर्ष 1983 में 73 वर्ष की आयु में रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने गईं थी, जहा उन्हें पहला हृदयाघात आया । इसके पश्चात वर्ष 1989 में उन्हें दूसरा हृदयाघात आया, जिसके कारण उनका स्वास्थ्य निरंतर गिरता चला गया और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मृत्यु हो गई ।

मदर टेरेसा की मृत्यु के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं कार्य कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा का कार्य कर रही थी । समाज सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने हेतु पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में मदर टेरेसा को “धन्य” घोषित किया था |