चंडीगढ़-
हिंदी साहित्य जगत के पुरोधा कवि साहित्यकार समीक्षक एवं नाटककार डॉक्टर धर्म स्वरूप गुप्त के 87वें जन्मदिवस पर उनको श्रद्धांजलि और पुष्पांजलि देने के लिए एक ऑनलाइन कार्यक्रम “सुर सांझ” संगीत एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन सृजन – An Institute of Creativity द्वारा उनके पुत्र सोमेश द्वारा किया गया। इस मौके पर वरिष्ठ साहित्यकार बालकृष्ण गुप्ता “सागर” बतौर मुख्य अतिथि थे। चंडीगढ़ साहित्य के हस्ताक्षर प्रेम विज जी और संतोष गर्ग विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित थे। कवियत्री सुचित्रा जी ने मंच संचालन किया।
सबसे पहले अतिथियों का स्वागत किया गया। इसके बाद सोमेश द्वारा मधुर कंठ से सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। डॉक्टर गुप्त के छोटे भाई बाल कृष्ण गुप्ता द्वारा ‘बड़े भैया’ कविता प्रस्तुत की गई। इसमें उन्होंने बताया कि बड़े भैया जन्म से ही बड़े नहीं थे परंतु कर्म से भी बड़े थे और धर्म से भी बड़े थे। छोटे भाई बहनों को पढ़ाना, उनके उज्जवल भविष्य की कल्पना करना, अपने सभी मिलने वालों को गद्य और पद्य में लिखने के लिए प्रेरित करना यह सब उनके महान कार्य थे। उनके बाद श्री अनिल शर्मा चिंतित में अपनी कविता ‘निवाला’ प्रस्तुत की। इसमें उन्होंने बताया कि किस प्रकार मां अपने मुंह का निवाला हमारे मुंह में डाल दी थी और बड़ी तंगी की हालत में उन्होंने हमें पढ़ाया। संयुक्त परिवार पर यह बहुत ही सुंदर रचना थी। उनके बाद संगीता चौधरी ने कोलकाता से संगीत के माध्यम से रविंद्र संगीत को प्रस्तुत किया जो उजाले के बारे में था। इस गीत के अनुसार यह उजाला हमारा है जो विश्व भर में भरा हुआ है। इसके बाद प्रेम विज जी ने डॉक्टर धर्म स्वरूप जी के साथ बिताए अपने अनुभव बताए। डीएवी कॉलेज के हेड रहते हुए, फिर प्रिंसिपल बने, दैनिक ट्रिब्यून में भी रहे और सृजन संस्था की स्थापना भी की, जिसे आज उनके बेटे सोमेश चला रहे हैं। अपनी कविता प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा कि ‘इंसान चाहे तो जिंदगी भूल है नहीं तो पेड़ बबूल है’।
उनके बाद विमला गुगलानी जी ने अपनी कविता प्रस्तुत की जिसका शीर्षक था ‘मेरे पापा’। इसमें पापा का बहुत सुंदर वर्णन किया है कि किस प्रकार एक जवान पापा को बूढ़े होते हुए देखा जबसे उन्होंने होश संभाला है। इसके बाद पूर्णिमा रानी जी ने हारमोनियम पर अपनी प्रार्थना प्रस्तुत की ईश्वर अल्लाह वाहेगुरु सभी एक है मालिक सबका एक है अलग अलग है नाम।
हरेंद्र सिन्हा जी जो इस समय सिडनी ऑस्ट्रेलिया में है उन्होंने देशभक्ति पर अपनी कविता प्रस्तुत की। उन्होंने कहा भले ही पूरी दुनिया घूम ले अपना वतन ही प्यारा है अपने देश की माटी सोंधी प्रेमभाव का नारा है।
रुचिका बेटी ने फिल्म का गाना प्रस्तुत किया। उसका इशारा डॉक्टर गुप्त की ओर था। उसे कहा- ‘रहे ना रहे हम महकते रहेंगे, बन के कली बन के शबाब’। इसके बाद डॉ निर्मल सूद जी ने अपनी ईमान पर कविता प्रस्तुत की। उन्होंने कहा न दिखता हूं मैं झुकता हूं ना टूटता हूं मैं तटस्थ मैं ईमान हूं। इसके बाद विजेंद्र जी ने कारगिल युद्ध का वर्णन करते हुए कहा-‘तुंग शिखर पर बैठे दुश्मन ने ललकारा था वीर जवानों ने काफिर को भगा भगा कर मारा था।
डॉक्टर धर्म स्वरूप जी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हुए संतोष गर्ग जी ने कहा ‘कर गए जो अच्छे काम, वह थे हमारे बाबूजी, दीन दुखियों की करते सेवा, वह थे हमारे बाबूजी’।
उनके उपरांत सृजन के अध्यक्ष सोमेश ने अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा-‘सजदों का मरकज बना दूं खुदा की खुदाई में हलचल मचा दूं’। संगीता शर्मा ने मधुर आवाज में एक गजल पेश की ‘दिल में जब घर करा करे कोई कैसे उसको जुदा करे कोई’। सुचित्रा जी ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा मैं चंचल हवा हूं पर्वत की चोटियों से टकरा जाती हूं। परमजीत जी ने अपनी प्रस्तुति देते हुए कहा ‘मैं पल दो पल का शायर हूं’। संगीता पुखराज ने धर्म स्वरूप जी को याद करते हुए कहां ‘हमारे बीच से एक जमाना गुजर गया उस जमाने को गुजरे भी एक जमाना गुजर गया।’
कार्यक्रम के अंत में संतोष गर्ग जी ने कहा कि यह बहुत ही अच्छा कार्यक्रम रहा। हमें अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए। जो माता पिता की सेवा नहीं करते उनका जीवन सफल नहीं होता। जिस प्रकार सोमेश जी ने अपने पिता के परलोक सिधारने के बाद भी उनके जन्मदिन को मनाने का कार्यक्रम रखा हुआ है उन्हें मैं साधुवाद देती हूं। उन्होंने हंसते हुए कहा क्योंकि बाल कृष्ण गुप्ता ‘सागर’ जी सोमेश के चाचा जी हैं और गुप्त जी के छोटे भाई हैं अतः हम सभी सहित्यकार आज से उनको भी चाचा जी ही पुकारेंगे।
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020