चंडीगढ़ 3 September, 2021
सुप्रिया श्रीनेत, राष्ट्रीय प्रवक्ता, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
* National Monetisation Pipeline के ज़रिए लाखों करोड़ों की राष्ट्रीय सम्पत्ति को निजी हाथों में कौड़ियों के दाम में दिया जा रहा है
* उपक्रम बेचने में कोई भी स्पष्ट मापदंड नहीं, ना कोई स्पष्ट मूल्यांकन
* मनमाने निजीकरण से भारतियों के साथ खिलवाड़ और पूँजीपतियों को मालामाल करना एकमात्र लक्ष्य
* मनमाने फ़ैसले पर किसी के साथ कोई विचार विमर्श नहीं
* निजीकरण से दाम बढ़ेंगे और रोज़गार घटेगा, नौकरियाँ नष्ट होंगी
एक छोटी सी कहानी सुनाकर मैं वार्ता की शुरुआत करना चाहती हूँ। एक पिता ने अपने पुत्र के लिए एक बहुत बड़ा घर विरासत में छोड़ा। वो पुत्र नालायक था और उस घर की ठीक तरह से देखभाल नहीं कर पाया, उसकी मरम्मत नहीं कर पाया, उसका रख रखाव नहीं कर पाया। इसके बाद उस पुत्र ने पिता के उस गाढ़ी कमायी से बनाए घर को अपने मित्र को किराये पर चढ़ा दिया और उसमें रहने वाले अपने परिवार को विस्थापित कर दिया। आप और हम इस पुत्र को जो पिता की बनायी सम्पत्ति को सम्भाल भी नहीं पाया- उसको नाकारा ही कहेंगे। कुछ ऐसा ही काम देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने किया है।
70 साल में आपके पैसे से बनायी सरकारी सम्पत्ति को एक झटके में उन्होंने अपने चंद मित्रों को देने का फ़ैसला किया है-और हमेशा की तरह यह मनमाना फ़ैसला बिना किसी से बात किए, बिना किसी की राय लिए और बिना देश का भले सोचे किया गया है।
पहले देख लेते हैं क्या क्या बेचा जा रहा है?
सड़कें- 1.6 लाख करोड़ के लिए 26,700 किलोमीटर के राष्ट्रीय राजमार्ग
रेलवे- डेढ़ लाख करोड़ रुपए के लिए – 400 स्टेशन, 150 ट्रेनें, रेलवे ट्रेक और वुडशेड्स
पावर ट्रांसमिशन – 42,300 सर्किट किलोमीटर ट्रांसमिशन नेटवर्क
पावरजनरेशन -6,000 मेगावॉट, हाइड्रो सोलर विंड एसेट from NHPC, NTPC and NLC
नेशनल गैस पाइपलाइन- 8,000 किलोमीटर गेल की पाइप लाइन
पेट्रोलियम पाइपलाइन- 4,000 किलोमीटर-इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन एंड एचसीएल की पाइप लाइन
टेलीकॉम-2.86 लाख किलोमीटर भारत नेट फाइबर का ऑप्टिक नेटवर्क & बीएसएनएल एंड एमटीएनएल केटावर
वेयरहाउसिंग/गोदाम- 29,000 करोड़ रुपए की वेयर हाउसिंग- 210 लाख मैट्रिक टन खाद्य स्टोरेज
माइनिंग- 160 कोल माइन्स & 761 मिनरल ब्लॉक
एयरपोर्ट- 21,000 करोड़ के लिए 25 हवाईअड्डे
पोर्ट- 13,000 करोड़ के लिए 9 पोर्ट के 31 प्रोजेक्ट
स्टेडियम- 11,000 करोड़- दो नेशनल स्टेडियम।
इन सारे उपक्रमों को बनाने में मज़बूत इरादा, दृढ़ विश्वास और राष्ट्र की पूँजी लगी है। यह कांग्रेस की उपलब्धि है-ब्रिटिश हुकूमत के 200 साल बाद नेहरू जी और कांग्रेस की सरकारों ने दोषारोपण करने के बजाय राष्ट्रनिर्माण में अपना योगदान दिया जिसका नतीजा है कि 70 साल में बनाए हुए उपक्रम आज मोदी जी बड़ी निर्ममता से बेच पा रहे हैं।
पर इस अभ्यास को बिना किसी पूर्व मानदंड के डिजाइन किया गया है। आख़िर सरकार का मापदंड और लक्ष्य क्या है?
एक बार फिर से एक बड़े अभ्यास की शुरुआत बिना उससे सम्बंधित लोगों से परामर्श के बिना हुआ है? क्या रेलवे यूनियनों और कर्मचारियों से परामर्श किया गया है? क्या पत्तन कर्मचारियों से परामर्श किया गया है ? क्या गोदामों में कार्यरत लोगों से परामर्श किया गया है? क्या किसानों से सलाह ली गई है? नीति आयोग नामक इस अद्भुत संगठन में यह सब गुप्त रूप से रचा गया है।
ऐसा प्रतीत होता है यह सब अगले 4 साल में 1.5 लाख करोड़ सालाना जुटाने की कोशिश मात्र है। पर क्या 70 वर्षों में निर्मित संपत्तियों को बेचने का एकमात्र लक्ष्य अपना वित्तीय घाटा भरना हो सकता है? एक नया जुमला चलाया गया है- यह सम्पत्ति बेची नहीं जा रही है बल्कि किराए पर दी जा रही है। पर क्या किराया लागत राशि के अनुरूप है? इसको किसी भी नाम से पुकारा जाए यह India On Sale ही है। इस कवायद के बाद कोई सार्वजनिक क्षेत्र नहीं बचेगा।
तो इस नेशनल मोनेटाइजेशन पाइपलाइन का परिणाम क्या होगा? सीधे साफ़ शब्दों में यह आपके भविष्य को गिरवी रखने की शुरुआत है। अपने चंद पूँजीपति मित्रों के मुनाफ़े के कारण – बेरोज़गारी और महंगाई दोनों बढ़ेगी। इसका आरक्षण और तमाम सुविधाएँ जो जनता को दी जाती हैं उस पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा।
कांग्रेस एक ज़िम्मेदार विपक्ष है-हम प्राइवेटाइजेशन के खिलाफ नहीं हैं। पर क्या यह एक सोचा समझा आर्थिक आधार पर लिया हुआ फ़ैसला है? निजीकरण उन कम्पनियों का किया जाता है जो स्ट्रैटेजिक क्षेत्र में ना हों, या घाटे में चल रही हों।
-अगर कोई इंडस्ट्री स्ट्रैटेजिक या रणनैतिक है तो उसमें सरकार का रहना अनिवार्य है
-अगर कहीं पर निजी क्षेत्र मिल कर एकाधिकार (monopoly) बना सकता है वहाँ पर सरकार का होना ज़रूरीहै जिससे आम उपभोक्ता का शोषण ना हो
रेल्वे हमारे देश की जीवन रेखा है, करोड़ों की जनता के लिए आवागमन का सबसे सस्ता साधन है। इससे कितने ही लोगों को रोज़गार मिलता है, इसके निजीकरण से पहले इनकार करने के बाद अब मोदी जी इसे निजी क़ब्ज़े में क्यों दे रहे हैं? किसी भी क्षेत्र में एकाधिकार होने से उपभोक्ता की ताक़त कम हो जाती है, हम सब जानते हैं – पोर्ट और हवाई अड्डे किसके हाथों में जाने वाले है? निजी क्षेत्र दाम तो बढ़ाता ही है, वह लोगों को बिना पलक झपकाए नौकरी से भी निकालता है और आने वाले दिनों में रोज़गार के साधनों को लगातार ख़त्म कर दिया जाएगा। इसका कुप्रभाव देश के छोटे मझोले व्यापारों पर पड़ेगा।
पते की बात यह है कि 4 साल में 6 लाख करोड़ कराने की उम्मीद करने वाली मोदी सरकार का मानना है-इस पैसे को National Infrastructure Pipeline में लगाया जाएगा। आपको तो याद होगा नैशनल इन्फ़्रस्ट्रक्चर पाइपलाइन वही बीन है जो प्रधानमंत्री मोदी लाल क़िले की प्राचीर से पिछले 3 साल से बजा रहे हैं। सबसे पहले प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 2019 को 100 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की, फिर 15 अगस्त, 2020 को 100 लाख करोड़ की घोषणा की और फिर इस साल उन्होंने 15 अगस्त, 2021 को एक बार और 100 लाख करोड़ रुपये की घोषणा की।यह निम्बू निचोड़ कर कड़वा हो गया है। जनता को मूर्ख समझना बंद कीजिए।
हमारे सरकार से सवाल हैं
-राष्ट्रीय सम्पत्ति को कौड़ियों के दाम पर क्यों बेचा जा रहा है?
-किराए पर दिए जाने वाले उपक्रम strategic assets हैं, इसका क्या मापदंड अपनाया गया है?
-इस पूरी क़वायद में सरकार का लक्ष्य क्या है?
-क्या मात्र अपना वित्तीय घाटा भरने के लिए करोड़ों युवाओं का भविष्य दांव पर लगाया जा रहा है?
-क्या इससे पहले किसी भी यूनीयन, कर्मचारी संगठन से कोई चर्चा की गयी?
-क्या यह पूरा अभ्यास अपने चंद मित्रों को मुनाफ़ा पहुँचाने और उनके एक छत्र राज दिलाने का नहीं है?
-क्या सरकार ने अमूमन लगाया है इससे सुविधाएँ कितनी महँगी होंगी और कितने रोज़गार पूर्ण रूप से नष्ट हो जाएँगे?
मोदी सरकार दम्भ छोड़े, देशहित का अनर्थ करने वाला यह फ़ैसला तुरंत वापस ले।