चण्डीगढ़ : सेक्टर-10, चण्डीगढ़ की रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन ने हाईकोर्ट में फ्लोर वाइज परसेंटेज सेल के खिलाफ याचिका दायर की हुई है। उसके मुताबिक शहर में अपार्टमेंट एक्ट लागू नहीं है। प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स एसोसिएशन, चण्डीगढ़ ने इस मुद्दे पर चंडीगढ़ प्रेस क्लब में आज एक प्रेस वार्ता आयोजित की जिसमें एसोसिएशन अध्यक्ष कमल गुप्ता ने मीडिया को संबोधित करते हुए कहा कि अपार्टमेंट एक्ट लागू करना समय की जरूरत है। उन्होंने खुलासा करते हुए बताया कि परसेंटेज सेल आज की तारीख में बेहद जरूरी है क्योंकि किसी भी परिवार के सदस्य को बंटवारे में जो प्रतिशत सेल प्रॉपर्टी मिली है, वे उसे प्रतिशत सेल में ही बेच सकता है। वह जितने शेयर का मालिक है वो उतना ही शेयर बेच सकता है उससे ज़्यादा नहीं। कमल गुप्ता ने कहा कि रिसेल में परसेंटेज सेल परचेस की है तो वो भी परसेंटेज सेल परचेस ही बेचेगा। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि 10 मरले का 3 मंजिला घर, जिनमें 3 फैमिली रहती हैं और उसमें भी ऊपर की मंजिल में किराएदार रह रहा है या मालिक रह रहा है तो जन-सुविधाओं में उससे क्या फर्क पड़ता है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब बॉयज हॉस्टल को माउंटव्यू होटल में तब्दील किया जा सकता है व टैगोर थिएटर का हुलिया आमूल-चूल बदला जा सकता है तो प्रशासन को आम जनता की जरूरतों को ध्यान में रख कर पॉलिसी तैयार करने में क्या दिक्कत है?
संस्था महासचिव जतिंदर सिंह ने कहा कि चण्डीगढ़ को बने हुए 60 साल से ज़्यादा हो गए हैं इस दौरान माता-पिता के नहीं रहने से अगली पीढ़ी को प्रॉपर्टी ट्रांसफर हो गई, जो कि समय के साथ-साथ 4-5 भाई बहनों में बंट गई। उनमें से अगर कोई अपना शेयर बेचना चाहे तो जरूरी नहीं कि परिवार का ही कोई अन्य सदस्य उसको खरीदे, क्योंकि किसी के पास पैसे नहीं होते और कभी किसी ने खुद का शेयर भी बेचना होता है। उन्होंने कहा कि जीवन में जरूरतें बदलती रहती हैं। अगर कोई भाई या बहन जरूरतमंद होने पर शेयर बेचना भी चाहेगा तो खरीदने वाला मनमानी करेगा। इसके अलावा पुराने बने हुए घरों, जिनकी रेनोवेशन होने वाली है, उनमें रहने वाले परिवारों में से किसी के पास अगर पैसे नहीं हैं या सेहत के साथ न देने की वजह से वो मकान तोड़फोड़ नहीं कर सकते। ऐसे में अगर कोई बिल्डर उनके हिसाब से नया घर बना कर दे दे और कुछ परसेंटेज प्रॉपर्टी का अपने लिए रख ले तो इसमें बुरा क्या है। इसके साथ ही अगर घर के बुजुर्ग अपनी प्रॉपर्टी में रहना चाहते हैं और उसके साथ-साथ अपने बच्चों को आगे की उच्च शिक्षा या कारोबार में वितीय सहायता करना चाहते हैं तो ऐसी हालात में अगर वो अपने घर में से कुछ हिस्सा मार्किट में बेच देते हैं तो इसमें भी क्या आपत्ति होनी चाहिए।
चेयरमैन तरलोचन सिंह बिट्टू ने कहा कि एक तरफ तो भारत सरकार अफोर्डेबल हाउसिंग की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ इस बढ़ती हुई महँगाई के ज़माने में ऐसा कानून लाकर आम आदमी का जीना मुश्किल कर रही है। उनके मुताबिक समय की मांग के मद्देनज़र सरकार को चाहिए कि आम आदमी की परेशानियों और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए फैसले लिए जाएं। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ समर्थ लोग जिनके पास कई घर हैं, बहुत सारी गाड़ियां हैं और अपना ध्यान रखने में खुद सक्षम हैं, वे ही इस फैंसले को अपने हिसाब से करवाना चाहते हैं।
वाईस चेयरमैन सुनील कुमार ने भी ज़ोर देकर कहा कि अपार्टमेंट एक्ट लागू करना समय की जरूरत है। साथ ही यह भी कहा कि यह कहना भी गलत नहीं होगा कि शहर में अपार्टमेंट एक्ट पहले से ही एक तरह से लागू है क्योंकि हाउसिंग बोर्ड के मकान व सोसयटियों के फ्लैट भी अपार्टमेंट ही तो हैं। इसी प्रकार अगर कमर्शियल प्रॉपर्टी की बात करें तो शहर की सेक्टर-19, 24, 27, 37, 38, 40 व 41 की रेहड़ी मार्केट्स भी अपार्टमेंट के रूप में ही बेची गई है। सेक्टर-17 में एससीओ नंबर 51 का सिर्फ ग्राउंड फ्लोर ही बेच गया है, वह भी एक अपार्टमेंट है। इंडस्ट्रियल प्रॉपर्टी की बात करें तो एलांते माल, गोदरेज माल, और ऐसे कई मॉल हैं जहां सरकार ने अपार्टमेंट के तौर पर बेचने की इजाज़त दे रखी है। कमल गुप्ता ने कहा कि अगर सरकार ने परसेंटेज सेल को बंद किया तो सरकार को राजस्व के नुकसान की भी संभावना है क्योंकि प्रॉपर्टी सेल-परचेज के जरिए जो रेवेन्यू जेनेरेट होता है उसमें स्टैम्प ड्यूटी और टीडीएस के रूप में एक अच्छी रकम सरकारी ख़जाने में जाती है।
एसोसिएशन के वित्त सचिव मनप्रीत सिंह ने कहा कि अगर पार्किंग प्रॉब्लम की बात करते हैं सरकार को स्टिल्ट पार्किंग और मल्टी लेवल पार्किंग पर काम करने की जरूरत है, न कि देश की तरक्की को रोकने की। ऐसे बहुत से घर हैं जो 1-2 कनाल के हैं और हर घर के बाहर 7-8 गाड़ियां खड़ी होती हैं क्योंकि घर के हर एक सदस्य के पास 1-1 कार होती है।
मनप्रीत ने आगे कहा, चंडीगढ़ प्रशासन को दिल्ली और हरियाणा के उदाहरण से सीखना चाहिए कि जनसंख्या और गाड़ियों की समस्या का हल स्टिल्ट पार्किंग ही है। दिल्ली, पंचकूला और गुड़गांव में जब इस समस्या का अनुभव किया गया तो वहां सरकार ने इसका समाधान नया अपार्टमेंट एक्ट बनाकर किया, जिसमें स्टिल्ट पार्किंग और तीन मंजिल का प्रावधान है।
संस्था के चीफ मीडिया एडवाइजर विक्रम चोपड़ा के मुताबिक अगर इस स्टेज पर परसेंटेज सेल को बंद किया जाता है तो शहर की ज़्यादातर प्रॉपर्टी लिटिगेशन के दायरे में आ जाएगी जिसमें कि मालिकों का आपसी विवाद बढ़ जाएगा। उनमें से कुछ केस ऐसे भी होंगे जिसमें सरकार की भी इन्वॉल्वमेंट बढ़ जाएगी और सरकारी कर्मचारियों को अदालतों के चक्कर काटने पड़ेंगे। इससे सरकारी सिस्टम पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।