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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

सोशल मीडिया के नियमन की दिशा में पहला कदम ए. सूर्य प्रकाश

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हिंसा और अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री को बाहर रखने के लिए नियमन की आवश्यकता के साथ ही हमारे मूलभूत संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने की आवश्यकता का संतुलन नए नियमों के मूल में है, जिसे न्यू मीडिया से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है।

नीति ने एक तरफ ऑनलाइन समाचार प्लेटफॉर्म और प्रिंट मीडिया के बीच तथा दूसरी तरफ ऑनलाइन और टेलीविजन समाचार मीडिया के बीच समान शर्तें तैयार करने की कोशिश की है। इसके साथ ही ऑनलाइन समाचार पोर्टल को नैतिक आचार संहिता के दायरे में लाया गया है, जो प्रिंट मीडिया के लिए पहले से है जैसे प्रेस काउंसिल अधिनियम, केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (विनियमन) नियम 1994 ने पत्रकारिता के आचरण के मानदंड रखे हैं। इनमें से कुछ प्लेटफॉर्मों की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी प्रदर्शित होने के कारण ऐसा करना काफी समय से लंबित था।

इसी तरह, सिनेमा उद्योग के पास निगरानी की जिम्मेदारियों के लिए एक फिल्म प्रमाणन एजेंसी तो है, पर ओटीटी प्लेटफॉर्मों के लिए कोई नहीं है। कलात्मक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने स्व-नियमन का प्रस्ताव दिया है और कहा है कि ओटीटी संस्थाओं को एक साथ होना चाहिए, एक कोड विकसित करना चाहिए और सामग्री का वर्गीकरण करना चाहिए जिससे गैर-वयस्कों को वयस्क सामग्री देखने से रोकने के लिए एक तंत्र विकसित किया जा सके। ऐसा करने के लिए उन्हें अवश्य कदम उठाना चाहिए। तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र की बात कही गई है, जिसमें पहली दो प्रकाशकों और स्व-विनियमन संस्थाएं हैं। तीसरी श्रेणी केंद्र सरकार की निगरानी समिति है। प्रस्तावित नीति में प्रकाशकों को शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करने और समयबद्ध जवाब और शिकायतों का समाधान सुनिश्चित करने की बात कही गई है। ऐसे में, सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक स्व-विनियमन निकाय हो सकता है।

ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में उन नियमों को लेकर एक तरह की चिंता हैं जो खातों के सत्यापन, ऐक्सेस नियंत्रण आदि की बात करते हैं, लेकिन इन मुद्दों को भारत के कानूनों के दायरे में हल करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, जबकि मुख्यधारा का मीडिया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में हिंसा को बढ़ावा देने, समुदायों के बीच शत्रुता, मानहानि आदि से निपटने के प्रावधानों के प्रति सचेत है, लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर सामग्री इस सबसे पूरी तरह से बेखबर लगती है।

मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिला पेशेवरों के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई अश्लील टिप्पणियां और इस तरह के व्यवहार से निपटने में अक्षमता एक तरह से आश्चर्यचकित करती है कि क्या आईपीसी साइबर स्पेस में लागू नहीं होता है।

भारतीय डिजिटल और ओटीटी प्लेयर्स ऑस्ट्रेलिया में डिजिटल कंपनियों द्वारा की गई ठोस कार्रवाई से सीख ले सकते हैं, जिन्होंने साथ मिलकर फेक न्यूज और दुष्प्रचार से निपटने के लिए एक नियमावली तैयार की है। इसे ऑस्ट्रेलियन कोड ऑफ प्रैक्टिस ऑन डिसइन्फॉर्मेशन एंड मिसइन्फॉर्मेशन कहा जाता है और इसे हाल ही में डिजिटिल उद्योग समूह द्वारा जारी किया गया था।

ऑस्ट्रेलियाई संचार और मीडिया प्राधिकरण (एसीएमए) ने इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि दो-तिहाई से ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई इस बात को लेकर चिंतित थे कि ‘इंटरनेट पर क्या सही है और क्या फर्जी’। जवाब में एसीएमए का कहना है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म स्व-नियामक कोड के लिए राजी हैं, जो दुष्प्रचार और झूठी खबर के फैलने से पैदा होने वाले गंभीर नुकसान के खिलाफ सुरक्षा उपाय करता है। डिजिटल प्लेटफॉर्मों द्वारा कार्रवाई करने के वादे में अकाउंट्स को बंद करना और सामग्री को हटाना शामिल है।

यूके में सरकार ऑनलाइन कंपनियों को हानिकारक सामग्री के लिए जिम्मेदार बनाने के लिए और ऐसी सामग्री के हटाने में विफल रहने वाली कंपनियों को दंडित करने के लिए एक कानून लाने जा रही है। इस प्रस्तावित ‘ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक’ का उद्देश्य इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा करना और उन प्लेटफॉर्मों के साथ दृढ़ता से निपटना है जो हिंसा, आतंकवादी सामग्री, बाल उत्पीड़न, साइबर बुलिंग आदि को बढ़ावा देते हैं। डिजिटल सेक्रेटरी श्री ओलिवर डाउडेन ने कहा है, ‘निश्चित रूप से मैं प्रो-टेक हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी के लिए टेक फ्री हो।’ एक तरह से देखें तो यह इस मुद्दे पर लोकतांत्रिक देशों में वर्तमान मनोदशा को दिखाता है।

यूके में स्व-नियमन प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है और निजी टेलीविजन व रेडियो को स्वतंत्र टेलीविजन आयोग और रेडियो प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है जैसा कि एक कानून द्वारा प्रदान किया गया है।

सरकार के दिशानिर्देशों की घोषणा करने वाले दो मंत्रियों- श्री रविशंकर प्रसाद और श्री प्रकाश जावड़ेकर हैं और यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दोनों ‘दूसरी आजादी के संघर्ष’ के नायक हैं जब वे 1970 के दशक के मध्य में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लड़े और लगभग डेढ़ साल तक कैद में रहे जिससे लोगों को अपना संविधान और लोकतंत्र वापस मिल सके।

स्पष्ट है कि बुनियादी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है और मीडिया नियमन के संबंध में नीतियों में भी दिखती रहेगी।

आखिर में, वह फ्रेमवर्क जिसके दायरे में रहकर कंपनियों को भारत में काम करना चाहिए। जैसा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्हें देश के नियमों के तहत काम करना चाहिए और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

हाल के समय में, ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करने की कोशिश की है और यहां तक दावा किया है कि वह भारतीयों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है। ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों पर हमारे अध्याय में अंतर्निहित है और इसके साथ ‘उचित प्रतिबंध’ भी है। ये मौजूद है क्योंकि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जटिलताओं के साथ दुनिया में सबसे विविध समाज है। यही वजह है कि भारत के संस्थापकों ने बहुत ही सहज भाव और दूरदर्शिता के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आगाह भी किया ताकि संवैधानिक अधिकार आंतरिक शांति और सद्भाव को बढ़ावा दे। ये स्वतंत्रताएं और प्रतिबंध क्या हैं, इसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने अनगिनत मामलों में परिभाषित किया है और भारत की शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून इस भूमि का कानून हैं। हम नहीं चाहते कि कुछ प्राइवेट अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कोर्ट से ऊपर की भूमिका में आएं और हमारे संविधान के ऊपर होकर बात करें।