हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा सरकार कृषि बिलों के जरिए किसानों को पूंजीपतियों का गुलाम बना रही है। देश यह कभी स्वीकार नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के यह बिल किसान, मजदूर और आढ़ती विरोधी हैं। भाजपा सरकार ने लोकतंत्र का गला घोंटकर यह बिल पास करवाए हैं। प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल में हिम्मत नहीं है कि वह प्रधानमंत्री के सामने जाकर इन किसान विरोधी बिलों के खिलाफ अपनी आवाज उठा सकें। वहीं सत्ता के लालच में प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला भी किसानों के समर्थन में अपनी आवाज नहीं उठा रहे हैं।
हरियाणा कांग्रेस अध्यक्ष कुमारी सैलजा सोमवार को भाजपा सरकार के किसान विरोधी बिलों के खिलाफ जींद में आयोजित धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व कर रही थीं। इसके उपरांत उन्होंने जिला उपायुक्त को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन भी सौंपा।
कुमारी सैलजा ने कहा कि यह बिल सरकार के किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म करने के सुनियोजित षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हैं। यह काले कानून देश के इतिहास में काले अध्याय हैं। सरकार द्वारा लाए गए बिल पूरी तरह से किसानों के हक छीनने वाले हैं। अब कृषि माल की बिक्री कृषि उपज मंडी समिति (APMC) में होने की शर्त हटा ली गई है। जिससे मंडी में होने वाली प्रतिस्पर्धा और फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दोनों समाप्त हो जाएंगे। इस कानून से जहां मंडियां खत्म हो जाएंगी। वहीं किसानों की फसल ओने पौने दामों पर बिकेंगी, जिससे किसानों को भारी नुकसान होगा। जब किसानों के उत्पाद की खरीद मंडी में नहीं होगी तो सरकार इस बात को रेगुलेट नहीं कर पाएगी कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) मिल रहा है या नहीं। इसके साथ ही किसान व कंपनी के बीच विवाद होने की स्थिति में कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया जा सकता है।
कुमारी सैलजा ने आरोप लगाया कि पीएम मोदी संवाद में विश्वास ही नहीं रखते और जिस तरह से राज्यसभा में ये बिल पास करवाये गए हैं वो लोकतंत्र की हत्या है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि देश में 85 फीसदी छोटी खेती करने वाले किसान हैं, जिनकी साल भर की पैदावार इतनी नहीं होती कि वह हर बार पास की मंडी तक भी जा सकें और अपनी फसल बेच सकें। ऐसे में किसान अपनी फसल को किसी दूसरे राज्य की मंड़ी में जाकर बेचें, यह कहना किसी मजाक से कम नहीं है। यदि कोई किसान अपनी फसल बेचने के लिए दूसरे राज्य में पहुंच भी जाए, तो इसकी क्या गारंटी है कि उसको फसल के इतने दाम मिल जाएंगे कि माल, ढुलाई सहित पूरी लागत निकल आएगी? वहीं अब मंडी के अंदर फसल आने पर मार्केट फीस लगेगी और मंडी के बाहर बिकने पर मार्केट फीस नहीं लगेगी। ऐसे में मंडियां तो धीरे-धीरे खत्म हो जाएंगी। कोई मंडी में माल क्यों खरीदेगा। इसके साथ ही अनाज, दालों, प्याज, आलू इत्यादि को जरूरी वस्तु अधिनियम से बाहर करने से इनका अत्यधिक स्टॉक किया जाएगा, इन चीजों की कालाबाजारी होगी और ग्राहकों को महंगे दामों पर इन्हें बेचा जाएगा।
वहीं कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के माध्यम से किसानों का वजूद समाप्त करने की साजिश रची गई है। इस कानून के माध्यम से अनुबंध आधारित खेती को वैधानिकता प्रदान की गई है, ताकि बड़े पूंजीपति और कंपनियां अनुबंध के माध्यम से ठेका आधारित खेती कर सकें। किसान खेतीबाड़ी के लिए इनसे बंध जाएगा, जिससे किसानों का वजूद समाप्त हो जाएगा। पूंजीपति और कंपनियां जिस चीज की खेती कराएंगे, किसानों को उनकी जरूरत के हिसाब से ही फसलों का उत्पादन करना पड़ेगा। ऐसा होगा तो किसानों को बीज-खाद से लेकर फसल बेचने तक के लिए इन पर निर्भर रहना पड़ेगा। फसलों के दाम, किसान से कब फसल खरीदी जाएगी, कब भुगतान किया जाएगा, सब कुछ उस पूंजीपति या कंपनी के हाथ में होगा और तरह किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बनकर रह जाएंगे।
कुमारी सैलजा ने कहा कि APMC प्रणाली के खत्म होने का मतलब है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य का खत्म होना। यह बिल किसानों के साथ संघीय ढांचे के भी खिलाफ हैं। बिल में न्यूनतम समर्थन मूल्य की कोई भी गारंटी क्यों नहीं दी गई है? न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी ना देना सरकार के षड्यंत्र को उजागर करता है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा लाए गए बिल किसानों की आत्मा पर चोट हैं। सरकार ने इनके लिए न तो किसान संगठनों की आवाज सुनी गई, न किसानों की और न ही विपक्षी दलों की। उन्होंने कहा कि जिस समय कोरोना संक्रमण के मामले देश में तेजी से बढ़ रहे हैं, उस समय सरकार को आखिर क्या जल्दबाजी थी कि वह ऐसे नाजुक समय पर यह बिल पेश करे। जल्दबाजी में पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में पास कराए गए यह बिल सरकार के किसानों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म करने के सुनियोजित षड्यंत्र का पर्दाफाश करते हैं। सरकार अपने कुछ चेहते पूंजीपति मित्रों को फायदा पहुंचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है यह साबित हो चुका है।
कुमारी सैलजा ने मांग करते हुए कहा कि किसान, मजदूर और आढ़ती विरोधी यह कृषि बिल तुरंत निरस्त किए जाएं। किसानों के फसल के एक-एक दाने की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद की गारंटी दी जाए। कुरुक्षेत्र में लाठीचार्ज के दौरान दर्ज मुकदमों को वापस लिया जाए और घायलों को मुआवजा दिया जाए। इसके साथ ही उन्होंने प्रदेश में सफेद मक्खी या जलभराव से खराब हुई फसल की गिरदावरी करवाकर किसानों को उचित मुआवजा देने की मांग की। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ जिन किसानों को नहीं मिल पा रहा है, उनको भी लाभ देने की मांग की।
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