चंडीगढ़ सुनीता शास्त्री। जे.के.एम.वेल्फेयर फाउंडेशन ने रोटरी चंडीगढ़ सिटी ब्युटिफुल के सहयोग से टीचर्स डे के मौके पर जाने माने नैच्रोपैथ डाक्टर एम पी डोगरा को बेस्ट टीचर के सम्मान से नवाजा। इस मौके पर डा. डोगरा को उक्त सम्मान फाउंडेशन के चेयरमैन सतपाल शर्मा जी के आधार पर फाउंडेशन के डायरेक्टर डॉ. भुपेंद्र शर्मा जी ने दिया। गांधी स्मारक भवन सेक्टर 16 में आयोजित इस कार्याक्रम की अध्यक्षता गांधी स्मारक भवन के निदेशक डॉ. देवराज त्यागी जी ने की। इस मौके पर रोटरी चंडीगढ़ सिटी ब्युटिफुल के अध्यक्ष वैभव गर्ग और सचिव प्रितिश गोयल जी भी मौजूद रहे।बेस्ट टीचर का सम्मान पाते ही डा. डोगरा ने अपने संबोधन में कहा कि वे नैच्रोपैथी से पिछले 1998 में अप्रत्यक्ष रूप से जबकि वर्ष 2001 से प्रत्यक्ष रूप से जुडे हैं। पिछले 20 सालों से गांधी स्मारक भवन सेक्टर 16 में छात्र-छात्राओं को नैच्रोपैथी की शिक्षा दे रहे हैं। आजतक हजारों विद्यार्थी आपसे नैच्रोपैथी सीख कर या तो अच्छे चिकित्सा संस्थानों में या फिर अपने अपने निजी नैच्रोपैथी सेंटर खोल कर आम जन की सेवा कर रहे हैं।डॉ. डोगरा ने बताया कि यह दु:ख की बात है कि मौजूदा हालात में केंद्र और राज्य सरकारें बजाय कि नैच्रोपैथी पर आधारित मेडिकल एजुकेशन सेंटर खोलने के मेडिकल कालेज और अस्पताल खोलने पर बल दे रही हैं। उन्होंने बताया कि नैच्रोपैथी ही चिकित्सा में सभी पैथियों की बुनियाद होती है। यह एक ऐसी विधा है जिसमें रोगी विशेष का इलाज दवाओं से नहीं बल्कि उसकी दिनचर्या, भोजन और रहने के तौर तरीकों में परिवर्तन कर किया जाता है, और आपको जानकर ताज्जुब होगा कि आज ज्यादातर रोग लाइफ स्टाइल डिजीजि माने जाते हैं यानि कि गलत जीने के तरीके के कारण पैदा होने वाले रोग। इतना ही नहीं नैच्रोपैथी में जहां रोगी को रोग मुक्त किया जाता है तो वहीं सेहतमंद व्यक्ति को जीने के सही तौर तरीकों से अवगत कराया जाता है ताकि वह कभी बीमार पडे ही नहीं। इस विधा में पंचमहा भूतों के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है। बताया जाता है कि आपने किस मौसम में क्या खाना है क्या नहीं। कैसे खाना है कैसे नहीं। उन्होंने बताया कि आपने देखा होगा कि मजदूर सदैव प्रकृति से जु रहते हैं इस लिए उन्हें भी कोई रोग नहीं घेरता जबकि दूसरी ओर हम और आप मौसम की हल्की तबदीली भी नहीं झेल पाते। इसका मुख्य कारण हमारे अंदर पनप रहे विभिन्न टॉक्सिन होते हैं। जिस प्रकार हमारे शरीर में प्रवेश के लिए केवल मुंह का एक रास्ता होता है मगर दूसरी ओर शरीर में से टॉक्सिन निकालने के चार मार्ग रहते हैं किडनी, आंत और फेफडे। गर हमारे अंदर टॉक्सिन पानी का है तो (पसीने से)और किडनी (मूत्र से)के जरिए बाहर निकाला जाता है और गर गैस से संबंधित है तो उसके लिए फेफड़े मौजूद हैं ठीक वैसे ही सख्त टॉक्सिन को आंत मल के दुवारा शरीर से बाहर निकालती है। मगर हम हैं कि इस भगवान के दिये हुए दिव्य ज्ञान को समझ ही नहीं पाते हैं।गांधी स्मारक भवन के निदेशक डॉ देवराज त्यागी ने अपने संबोधन में कहा कि आज का शिक्षक दिवस ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने बताया कि भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के रूप में यह शिक्षक दिवस मनाया जाता है जब उनसे किसी ने यह पूछा कि वे उनका जन्म दिवस मनाना चाहते हैं तो उन्होंने दो टूक कहा कि उनका जन्म दिवस न मनाकर शिक्षकों का दिवस मनायें क्योंकि एक शिक्षक ही होते हैं ।
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020