पीठ दर्द और सर्वाइकल के मामले कम उम्र में भी बढ़े :डॉ रवि गर्ग
चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री। लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोग अपने घरों तक ही सिमट कर रह गए। लाकडाउन खुला भी तो घर से काम करने की अवधारणा बन गई। ऐसे में ट्राईसिटी में लोग कंप्यूटर, लैपटाप और स्मार्टफोन स्क्रीन के सामने लंबा समय बिता रहे हैं। ऐसी स्थिति में पीठ और ग्रीवा से संबंधित मामलों में जबरदस्त वृद्धि हुई है। यह कहना है जेपी अस्पताल के विख्यात बैक और स्पाइऩ सर्जन डा. रवि गर्ग का।डॉ. रवि गर्ग के अनुसार पीठ दर्द, विशेष रूप से पीठ के निचले हिस्से में दर्द का सबसे खास रूप है। पुराना पीठ दर्द दुनिया भर में विकलांगता का एक प्रमुख कारण है। पहले ये स्वास्थ्य समस्याएं चालीस से अधिक वर्षों के लोगों में देखी जाती थीं। अब इस समस्या को 30 साल के युवाओं में भी देखाजा रहा है।उन्होंने कहा कि करीब 70-80 फीसदी आबादी अपने जीवन के किसी न किसी बिंदु पर पीठ दर्द का अनुभव करती है। ज्यादातर समय दर्द का कारण मैकेनिकल होता है। इसका अर्थ है कि मांसपेशियों पर खिंचाव के कारण यह दर्द होता है। कुछ अन्य कारणों में स्लिप डिस्क, काठ का स्पोंडिलोसिस, लॉर्डोसिस, स्पोंडिलोलिस्थीसिस, स्पाइनल स्टेनोसिस जैसी समस्या भी हो सकती है।उन्होंने कहा कि पीठ दर्द कई बार एक या दोनों पैरों के दर्द के साथ जुड़ा होता है। यदि पीठ दर्द मैकेनिकल होता है तो यह अपने आप बैठ जाता है। यह कुछ समय के अंतराल में भी हो सकता है, जो चिंताजनक नहीं है। इसके साथ ही कुछ लक्षण हैं जैसे कि एक या दोनों पैरों में दर्द का अनुभव करना, कमजोरी, झुनझुनी या सुन्नता होने पर उसको गंभीरता से लेना चाहिए। ज्यादातर समय पीठ दर्द का आसानी से उपचार किया जा सकता है लेकिन यदि परीक्षण के बाद भी असाध्य दर्द बना है तो ऐसे कुछ मामलों में सर्जरी एक अच्छा विकल्प है।डा. गर्ग ने कहा कि स्पाइनल बेल्ट पहनने और दर्द की दवा लेने से ही यह पीठ दर्द की समस्या का समाधान नहीं हो सकता है। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक स्पाइनल बेल्ट पहनने से रीढ़ की मांसपेशियां कमजोर हो सकती हैं। इस वजह से इससे बचना चाहिए। अगर कुछ लोगों को लगता है कि दर्द की दवा ही इसका उपचार है तो यह गलत है। दवा लेने से गैस्ट्राइटिस, अल्सर आदि जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैं।तो क्या नुस्खा है? इस सवाल के जवाब में डॉ रवि गर्ग ने कहा कि व्यक्ति को कंप्यूटर स्क्रीन के सामने एक ही मुद्रा में लंबे बैठने से बचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कुछ देर में ब्रेक लेना या काम के बीच में एक मिनट तक टहलना एक अच्छा अभ्यास है। बच्चों को बिस्तर में पढऩे की बुरी आदत को छोड़ देना चाहिए। पढ़ते समय या काम करते समय हमेशा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी गर्दन बहुत अधिक न झुके।इसके साथ ही डा. रवि गर्ग ने कहा कि नियमित अभ्यास और शरीर के वजन को मेंटेन करने से इससे बचाव हो सकता है। उन्होंने कहा कि वजन ज्यादा होने से लोअर बैक पर दबाव ज्यादा बनता है।
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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020