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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

युग पुरूष निराला के जीवन को बखूबी साकार कर दिया -नीलकंठ निराला में

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चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री। हिंदी साहित्य की इमारत का सुदृढ़ स्तंभ सूर्यकांत त्रिपाठी निराला- से छायावाद पहचाना जाता है, राम की शक्ति पूजा से सरोज स्मृति तक जिन की कविताएं हैं एक नए संसार में, परंतु अपने जीवन काल में उस महापुरुष ने जो कुछ झेला- सहा, उसका वर्णन करना भी दु:खप्रद है। पत्नी को खोया, बेटी गई, भैया-भाभी, मां-बाप, संगी-साथी एक-एक कर बिछड़ते गए। कवि मुख से निकला-मैं अकेला हूॅ, आ रही मेरे जीवन की संध्या बेला। एकाकीपन भी ना तो सहसकी कवि को, हिंदी को शिखर तक ले जाने के भागीरथ प्रयत्न में जीवन अर्पण कर दिया, विरोधियों-आलोचकों के सहस्त्रों बाण सहे, मूलत:यार-दोस्तों से पागल की पदवी पाई, अंग्रेजी की दिनो-दिन बढ़ती घुसपैठ से परेशान हुए, आजादी के बाद देश की आशातीत दुव्र्यवस्था से व्याकुल हुए। आदर्श और नैतिक-सामाजिक मूल्यों के पतन से पीडि़त हुए, पर हार न मानी। लिखते रहें, देते रहे हिंदी साहित्य को अपनी रचनाएं, अपना श्रम, अपना योगदान, परंतु बदले में ना कुछ पाने की चाह की, ना कुछ लिया। यद्यपि चाहते तो श्रृंगार, भौतिकता, सुविधाएं सूखे पत्तों सी राहों में बिछ जाती, पर सबको रौंदकर आजीवन चलते रहें, तप्त, निर्जन, प्रतिकूल, साधना मार्ग पर। कौन सा द:ुख था जो सही नहीं, पर बहे नहीं। यथार्थत: देवता भले ही तैंतीस कोटी हैं, पर शिव तो एक ही हं,ै नीलकंठ वे ही हो सकते थे। इतिहास की, साहित्य की, सभ्यता की धारा तोड़ने वाले, खुद सूली पर चढक़र मानवता को सही राह बताने वाले नीलकंठ निराला।इस नाटक में निराला के अंतिम जीवन के एक दिन का वर्णन है । इसमें उनके एकाकीपन, उनके फक्कड़पन हिंदी के प्रति उनके प्रेम और उनके सनकी स्वभाव को भी दर्शाया गया है। ये नाटक दर्शकों के सामने निराला के परिचय का एक नया अध्याय खोलता है। नाटक के प्रत्येक पात्र का अपना पृथक अस्तित्व है। हजारी दादा जो पहलवान हैं और कविता से उनका छत्तीस का ऑकड़ा है। मिस्टर सिन्हा अंग्रेजी भाषा के हिमायती हैं और हिंदी को हीन दृष्टि से देखते हैं । साहित्य सेवी निराला का सम्मान करता है और उन्हें अच्छी तरह समझता है और निराला को बाकी कवियों जैसा सम्मान ना मिल पाने के कारण आहत है । श्यामलाल एक व्यापारी है जिसका साहित्य से कोई लेना-देना नहीं और जिसके प्राण निराला ने बचाये थे। उत्तरा कला-प्रेमी है और निराला को श्रद्धा की दृष्टि से देखती है। इस नाटक के गीतों को संगीतबद्ध करने में बड़ा आनंद आया और हेमंत माहौर जैसे अच्छे अभिनेता ने निराला की भूमिका को मंच पर साकार किया और गीतों के साथ पूरा न्याय किया । इस नाटक के प्रदर्शन बिहार के अलावा पृथ्वी थिएटर, मुंबई तथा भारत भवन, भोपाल में भी हुए हैं । यह नाटक हर तरह के दर्शकों को मोहित करता है।पात्र परिचय-निराला : हेमंत माहौर हारमोनियम : रोहित चंद्रा मनोहरा : शारदा सिंहढोलक/ तबला : राजेंद्र रंजन ,हजारी दादा : अभिषेक शर्मासारंगी : अनिल मिश्रासाहित्यसेवी : दुर्गेश सोनीबांसुरी : सुजित गुप्ता श्यामलाल : मो0जफ्फर आलम कंशी : अरविंद कुमार सिन्हा: धीरज कुमार (आदर्श रंजन)रूप सज्जा : जीतेन्द्र कुमार / विनय कुमार उतरा : मेघना पंचाल,वस्त्र विन्यास : शारदा सिंह / राजीव राय बुढिया : शारदा सिंह ,रंग वस्तु : राजेश कुमार (पप्पू ठाकुर)डाकिया : मुकेश कुमार राहुलप्रकाश परिकल्पना: जय कुमार भारती सहयोग : राजीव राय, सरोज: नेहा निहारिका ने भाग लिया ।