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- Ayushmann did not have a house to live in, so Vicky did many small roles; Fathers shared stories of Struggle
Dainik Bhaskar
Dec 24, 2019, 09:20 AM IST
बॉलीवुड डेस्क. 66 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का आयोजन सोमवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में किया गया। पुरस्कारों का वितरण उप राष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने किया। जिन एक्टर्स-डायरेक्टर्स ने यहां फिल्म पुरस्कार प्राप्त किए उनमें सभी के संघर्ष की एक कहानी थी। समारोह में सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, सचिव रवि मित्तल, जूरी अध्यक्ष राहुल रवैल, अक्षय कुमार, दादा साहब फाल्के के नाती चंद्रशेखर की मौजूदगी रही। विजेताओं को स्वर्ण और रजत कमल प्रदान किए गए। श्रेष्ठ अभिनेता का नेशनल अवॉर्ड पाने वाले दोनों अभिनेताओं के पिताओं ने भास्कर को बयां की अपने बेटों के इस शिखर तक पहुंचने की संघर्ष भरी कहानी।
आयुष्मान की अचीवमेंट उसका अपना हासिल है। पोस्ट ग्रैजुएशन के बाद जब वह रोडीज जीत चुका था और मुंबई जा रहा था, तो मैंने उसे पैसे बिना दिए ही रवाना किया। मैंने तो यह तक कहा था कि भले सड़कों पर गुजारा करना पड़े, करना… मगर वापसी मत करना। मेरा मानना है कि पिता को बेटे को अकेले सड़क पर छोड़ना होगा, तब उसमें मुश्किलों से जीतने का माद्दा आएगा। मुंबई भी आयुष्मान तब आया था, जब उसकी शादी हो चुकी थी। चार साल तकरीबन तक मनमर्जी का काम नहीं मिल सका था। ऐसे मैं उससे यही कहता रहा कि कोई काम छोटा-बड़ा नहीं होता। वह जब चंडीगढ़ से मुंबई के लिए चला था तब मेरी ज्योतिष की कैलकुलेशन थी कि अगले 40 दिनों में मुंबई में आयुष्मान को काम मिल जाना है। वह हुआ भी। मुंबई आते ही एक दोस्त के यहां वो रहे। आते ही रिलायंस की तरफ से कॉल आ गया था। रेडियो जॉकी का काम उनके हाथों में था। इस तरह देखूं तो मुंबई में पहले दिन से उन्होंने अपने खर्च के लिए घर से पैसे मांगे नहीं। उसके पास रहने को घर तक नहीं था। दोस्त के यहां हॉस्टल में रहा। हमने उससे कभी यह भी नहीं कहा कि वह हैंडसम है। वैसा कहने पर बच्चे खुद को अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार से तुलना कर लग जाते हैं और मेहनत करने से ध्यान भटका लेते हैं। ऐसा हम लोगों ने नहीं होने दिया। हम उसके सफर में कदम से कदम मिलाकर चलते रहे हैं और उसने हमारी बातों का अक्षरश: पालन किया भी है। पिछले साल ही जब मेरी बहू ताहिरा के ईलाज को लेकर जब मामला आया तो उस वक्त हम सारे व्यक्ति उसके साथ इकट्ठे हो गए। हमारी हौसलाअफजाई के साथ ताहिरा की हिम्मत काम आई। मैंने उस वक्त कोई ज्योतिष कैलकुलेशन तो नहीं की, पर मेरे मन का भाव था कि सब ठीक हो जाएगा। मुझे उसकी अंधाधुन और ड्रीम गर्ल दोनों फिल्में बहुत पसंद है।
आचार्य पी. खुराना (आयुष्मान के पिता)
हमारे पूरे परिवार के लिए शूटिंग का सेट ही मंदिर है। काम करते रहना ही हर त्योहार का जश्न है। आखिर इसके लिए ही मैंने और मेरे दोनों बेटों विकी और सनी ने बरसों का तप अपने-अपने दौर में किया है। आज विकी को अवॉर्ड और रिवॉर्ड दोनों मिल रहे हैं तो इसके लिए उसने संघर्ष का लंबा रास्ता तय किया। मसान से पहले सालों नसीरुद्दीन शाह और मानव कौल के साथ थिएटर किया। सैकड़ों ऑडिशन दिए। ‘लव शव ते चिकन खुराना’ में कैमियो रोल किया। वह भी तब, जब सब मना कर रहे थे। उसने मुझसे भी पूछा था कि करूं या न करूं? मैंने तब कहा था कि आंखें मूंद भगवान को याद कर और जवाब हासिल कर। उसने वह किया और कहा कि कैमियो करना है। आगे फिर उसने ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ में कैमरे के पीछे अनुराग कश्यप को असिस्ट किया। ‘मसान’ मिलने के बाद भी तुरंत उसका स्ट्रगल पूरा नहीं हुआ। उसके बाद उसे लगातार मसान के किरदार दीपक के तौर पर उसे टाइपकास्ट किया जा रहा था। उसने वह सब छोड़ा। साल भर सही स्क्रिप्ट का इंतजार किया। फाइनली ‘संजू’, ‘लव पर स्क्वॉयर फीट’ और ‘मनमर्जियां’ आईं। फिर जरा सा वेट किया और ‘उरी’ उसके बाद प्राप्त की। कहने का मतलब यह कि वह इस मुकाम पर ऐसे ही नहीं पहुंच गया है। उसकी दिन रात की कड़ी मेहनत और खुद पर भरोसे ने उसे इस मुकाम पर पहुंचा दिया। इस समय भी वह पिछले एक महीने से रूस में शहीद ऊधम सिंह की शूटिंग कर रहा था। सोमवार को पुरस्कार पाने डायरेक्ट रूस से दिल्ली आया। उसका छोटा भाई सनी भी संयोग से अपनी फिल्म ‘भंगड़ा पा ले’ के प्रामोशन के सिलसिले में दिल्ली में था, मगर विकी से भेंट न हो सकी। क्योंकि विकी इतना कमिटेड है कि अवॉर्ड लेने और लंच के बाद तुरंत मुंबई को निकल गया। मैं खुद पांच जनवरी तक थाईलैंड में शूट कर रहा हूं। ऐसे में, हमारी मुलाकात पांच जनवरी के बाद ही मुंबई में होनी है।
शाम कौशल (विकी कौशल के पिता)
(अमित कर्ण से साझा किए जज्बात)
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