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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

बेबी-अपनी सोच से मर्दो की शोशित दुनियां में बदलाब लाने का प्रयास

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चंडीगढ़,सुनीता शास्त्री। महान नाटककार विजय तेंदुलकर द्वारा 7० के दशक मेंलिखित नाटक ‘बेबी’नाटक  जीवन की कठिनाईयों से जूझती एक ऐसी लडक़ी की कहानी है जिसे समाज से कदम कदम पर तिरस्कार मिला है। हालातों ने बचपन छीनकर कम उम्र में ही जिम्मेदारियों का बोझ कंधो पर डाल दिया।फिल्मों में एक्स्ट्रा के तौर पर काम करने वाली बेबी अपने प्रिय लेखक भूषण चंदा के उपन्यासों में खोई रहती है और दुनिया को उनके किरदारों के दृष्टिकोण से देखती है। इस चकाचौंध से भरी दुनिया में बेबी का अपना जीवन नीरस है।उसकी जिन्दगी शिवप्पा, राघव और कर्वे जैसे नाटक के अन्य किरदारों के इर्द गिर्द घंूमती है। इसको साहील कुरैशी ने डायरेक्ट किया है।  उन्होंने पत्रकारो से रूबरू होकर बताया कि  यह  नाटक मूल रूप में  मराठी है जिसका हिन्दी रूपान्तर वसंत देव ने किया है। उन्होंने बताया कि आज से 17 वर्ष पूर्व यह नाटक कर चुके हैं उस समय के अनुसार यह करैक्टर  काफी बोल्ड जिस्मफरोशी के धंधे में फंसी लड़क़ी है अब यह मदो्र्र के शोषण भरी सोच से बाहर निकलती हुई स्वयं को बचाने का प्रयास करती है। यह नाटक दो घंटे का है। पंचम सोसाइटी फॉर आर्ट कल्चर एजुकेशन एंड अप लिफ्टिंग ग्रुप के कलाकार बेबी-आकांशा, शिवप्पा-दीपक कम्बोज, कर्वे -बलोचन मलिक  और  राघव- साहील कुरैशी मुख्य भूमिका  में हैं।