Dainik Bhaskar
Nov 08, 2019, 06:58 PM IST
रेटिंग | 3.5/5 |
स्टारकास्ट | सूरज पंचोली, मेघा आकाश, उपेन्द्र लिमाए, अनिल के रेजी, पालोमी घोष, राज अर्जुन |
निर्देशक | इरफान कमल |
निर्माता | मुराद खेतानी, अश्विन वरदे |
म्यूजिक | मिथुन, रोचक कोहली, तनिष्का बागची, संदीप शिरोड़कर |
जोनर | एक्शन ड्रामा |
अवधि | 122 मिनट |
बॉलीवुड डेस्क. हर फौजी के कंधों पर मां और धरती मां के बीच किसी एक को चुनने की बड़ी जिम्मेदारी होती है। उसके पेशे और पैशन अपने परिवार से ज्यादा अपने देशवासियों की सेवा और सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहते रहे हैं। डायरेक्टर इरफान कमल ने नायक सैटेलाइट शंकर की प्यारी सी कहानी से जन्म और कर्मभूमि से और ज्यादा प्यार व सम्मान करने के एहसास जगाती है। पूरी फिल्म के दौरान इसके किरदार और संदेश अपने तरीके से लोगों के दिलो-दिमाग पर अपना असर छोड़ने लगती है।
फिल्म की कहानी और वास्तविकता
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करगिल में तैनात नायक को उसके साथी फौजी सैटेलाइट शंकर के नाम से पुकारते हैं। वह जिंदादिल है। दिल में देशभक्ति और देशसेवा के अलावा और कुछ नहीं है। वह साउथ इंडियन है। आठ दिन की छुट्टी पर करगिल से ट्रेन से साउथ को निकलता है। रास्ते में को पैसेंजर से लेकर, मशहूर वीडियो ब्लॉगर आर्मी के कलीग के परिवार से लेकर अनजान लोगों की मदद में उलझ कर रह जाता है। वह यह सब इरादतन नहीं ड्यूटी के भाव से करता चला जाता है। बदले में उसे किसी तरह की लोकप्रियता भी नहीं चाहिए। पर उसके द्वारा किए गए कर्मों का सिला आखिर में देशवासी किस तरह देते हैं और उसे कैसे ठीक आठवें दिन आर्मी बेस जाने में मदद करते हैं, फिल्म उस बारे में है।
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फिल्म की राइटिंग जानदार है। बैकग्राउंड स्कोर, सिनेमैटोग्राफी और एडिटिंग से कहानी धारदार बनी है। फिल्म का अंदाज स्लाइस ऑफ लाइफ रखा गया है। नायक सैटेलाइट शंकर के रोल में सूरज पंचोली उसमें डूबे हुए लगे हैं। वीडियो ब्लॉगर के रोल में पालोमी घोष और नायिका मेघा आकाश, जो तमिल फिल्मों का जाना-माना नाम हैं, ने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है।
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फिल्म की खूबसूरती है कि यह इरादतन प्रवचनात्मक नहीं होती है। किरदारों के साथ होने वाली घटनाएं ऑर्गेनिकली सधे हुए संदेश देती हैं। हां, कश्मीर में पत्थरबाजों और आर्मी का छोटा सीक्वेंस जरूर सत्ता के एजेंडे का तुष्टीकरण करती है। थोड़ा बहुत भावनात्मक हेर-फेर भी है, मगर देखें तो कहानी और किरदार इमोशन से सराबोर करते हैं। ग्राउंड जीरो पर तैनात फौजियों की बुनियादी दिक्कत का दस्तावेज है, जिन्हें आमतौर पर देशभक्ति का हवाला देकर हमेशा नजरअंदाज किया जाता है। कई मौकों पर देखते हुए आंखों में आंसू तो आते हैं।
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