Dainik Bhaskar
Oct 10, 2019, 08:27 PM IST
रेटिंग | 3/5 |
स्टारकास्ट | प्रियंका चोपड़ा, जायरा वसीम, फरहान अख्तर, रोहित सराफ |
निर्देशक | शोनाली बोस |
निर्माता |
प्रियंका चोपड़ा, रॉनी स्क्रूवाला, सिद्धार्थ रॉय कपूर |
म्यूजिक | प्रीतम, माइकी मैक क्लीयरी |
जॉनर | बायोग्राफिकल |
अवधि | 149 मिनट |
बॉलीवुड डेस्क. एक मशहूर शायरी है। ‘मौत तो नाम से बदनाम है, वरना तकलीफ तो जिंदगी भी देती है।’ पांच साल पहले ‘मार्गरीटा विद अ स्ट्रॉ’ जैसी इंटेंस फिल्म बना चुकीं डायरेक्टर शोनाली बोस की इस फिल्म में जिंदगी और मौत के बीच की कशमकश है।
हकीकत से रूबरू कराती है फिल्म कहानी
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नायक और नायिका की तकलीफ जिंदगी की है, जो अपनी आंखों के सामने लाइलाज बीमारी से जूझती बच्ची का असहनीय दर्द देखने को मजबूर हैं। उनकी बच्ची की परेशानी जिंदगी से मौत का तय करता सफर है। शोनाली के सारे किरदार जिंदगी की इस कड़वी हकीकत का घूंट अलग-अलग तरीकों से पीते हैं।
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नायक नीरेन और नायिका अदिति चौधरी के रोल में फरहान अख्तर और प्रियंका चोपड़ा की यादगार परफॉरमेंसेज के चलते ऑडियंस इस ट्रैजिक स्टोरी में एक हद तक एंगेज रहती है। बीमार बेटी को ठीक करने के लिए किसी पेरेंट के वर्षों के संघर्ष को जस का तस परदे पर पेश किया है।
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एक मां जिसकी जिंदगी में सिवाय बेटी की बेहतरी के कोई और कोई मकसद नहीं है, उसके जेहन में चलते भावों को प्रियंका चोपड़ा ने जिस खूबी से पेश किया है, वह उनकी अभिनय पर पकड़ को जाहिर करता है। उस बेटी के बाप के दिल पर क्या गुजरती होगी, जो ऊपर से मजबूत रहने की कोशिश करता है पर भीतर से डरा हुआ है। इस किरदार को फरहान ने आत्मसात सा कर लिया है।
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उनकी बेटी आयशा चौधरी वह लड़की है, जो पैदा होने के बाद से ही सीवियर कंबाइंड इम्युनोडेफिसिएंसी जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही है। उसके चलते आगे चलकर उसे पल्मोनरी फाइब्रोसिस नाम की फेफड़े की बीमारी हो जाती है जो लाइलाज है। आयशा बनी जायरा वसीम ने मौत की तारीख जानने वाले शख्स की सहजता को पेश करने की भरसक कोशिश की है।
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कहीं-कहीं जरूर उनकी एक्टिंग लाउड हुई है।खासकर जब जब आयशा ह्यूमरस होने की कोशिश करती है। पेरेंट्स की सेक्स लाइफ बार-बार डिसकस करने वाला डायलॉग बोलती है पर महज तीन फिल्म पुरानी जायरा का वह पहलू नजरअंदाज किया जा सकता है। बाकी साथी कलाकारों ने भी केंद्रीय कलाकारों का भरपूर साथ दिया है।
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शोनाली और नीलेश मनियार के स्क्रीनप्ले और डायलॉग्स में जरा सी ढिलाई और कुछ मौकों पर कलाकारों की लाउड एक्टिंग के चलते फिल्म ऊंचे स्केल पर नहीं पहुंच पाई है। दरअसल ऐसे जॉनर की फिल्मों में सधे हुए तर्कों की जरूरत होती है वैसे जो दिल को छूने के साथ-साथ जीवन-मरण के बारे में गहरा दर्शन दे सकें। जैसा राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन वाली ‘आनंद’ में था। रही सही कसर फिल्म की मंथर रफ्तार निकाल देती है। फिल्म लंदन और दिल्ली-6 के बीच ट्रैवल करती है। दोनों शहरों के मिजाज को सही तरीके से कैप्चर किया गया है। फिल्म के मूड को गुलजार और प्रीतम ने अपने गीत संगीत से असरदार रूप में पेश किया है।
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