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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

चंद्रयान-2 के बाद इसरो 10 साल में 6 बड़े मिशन भेजेगा, इससे स्पेस सेक्टर में निवेश और नौकरियां बढ़ेंगी

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  • भास्कर APP ने दो अंतरिक्ष वैज्ञानिकों से चंद्रयान-2, इसरो के अगले मिशन और भारत के स्पेस सेक्टर पर बात की
  • अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. चैतन्य गिरी के मुताबिक, अब स्पेस प्रोग्राम में प्राइवेट सेक्टर की रूचि और बढ़ेगी
  • अंतरिक्ष वैज्ञानिक डॉ. पीएस गोयल ने कहा- चंद्रयान-2 की तकनीक और उसके कैलकुलेशन अगले मिशन में मददगार होंगे
  • 25 लाख करोड़ रु. की ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में अभी भारत की 2% हिस्सेदारी, तीन साल में 6289 करोड़ की कमाई

Dainik Bhaskar

Sep 10, 2019, 07:38 AM IST

नई दिल्ली. चांद की सतह छूने से सिर्फ 2.1 किमी पहले चंद्रयान-2 के लैंडर विक्रम का इसरो से संपर्क टूट गया था। इसके बावजूद मिशन 99.5% सफल है। लैंडर से संपर्क साधने की कोशिशें जारी हैं। वहीं, चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर सही कक्षा में चांद के चक्कर लगा रहा है। यह अगले 1 साल तक अपने 8 पेलोड के जरिए चांद के वातावरण और सतह के बारे में जानकारी इसरो को भेजता रहेगा। अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी विक्रम की लैंडिंग की पुष्टि न होने के बावजूद इस मिशन को भारत की एक बड़ी उपलब्धि मानते हैं। इसरो अगले 10 साल में छह बड़े मिशन भेजेगा। वैज्ञानिकों का मानना है कि इससे भारत के स्पेस सेक्टर में निवेश और ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी।

इसरो के मिशन में 80% हार्डवेयर निजी क्षेत्र में बनता है
यूरोपियन स्पेस एजेंसी के रोसेटा मिशन के सदस्य रहे डॉ. चैतन्य गिरी बताते हैं कि इसरो की उपलब्धियों ने भारत के बड़े उद्योगपतियों का ध्यान स्पेस सेक्टर की ओर खींचा है। कई साल तक गिनी-चुनी इंडस्ट्रियां जैसे- एलएंडटी, गोदरेज एरोस्पेस ही इसरो के साथ काम करती थीं। अब नई इंडस्ट्रियों की भी रुचि इसमें बढ़ रही है। चंद्रयान-2 की सफलता के बाद यह और बढ़ेगी। इसरो उपग्रह केंद्र के निदेशक रहे डॉ. पीएस गोयल कहते हैं कि इसरो के मिशन के लिए 80% हार्डवेयर इंडस्ट्रियों में ही बनता है। स्पेस प्रोग्राम बढ़ेंगे, तो इंडस्ट्रियों की भागीदारी भी बढ़ेगी।

स्पेस सेक्टर में निवेश और रोजगार बढ़ेगा 

डॉ. चैतन्य बताते हैं कि भारत में सैटेलाइट का मास प्रोडक्शन आने वाले सालों में बहुत ज्यादा बढ़ने वाला है। सरकार प्राइवेट सेक्टर को भी इसमें इनवाइट कर रही है। प्राइवेट सेक्टर को जब भरोसा होगा कि सरकार, साइंटिस्ट और इंजीनियर्स उनके साथ हैं, सरकार की अंतरिक्ष के प्रति नीतियां उनके अनुकूल हैं, तभी वे निवेश बढ़ाएंगे। यह भारत में हो भी रहा है। ऐसा हुआ तो आगे प्राइवेट इंडस्ट्रियां इसरो के मिशन में भागीदारी के साथ अपने-अपने स्पेस प्रोग्राम भी लॉन्च कर पाएंगी। इससे भारत में स्पेस सेक्टर में निवेश बढ़ेगा। कई नई नौकरियां मिलेंगी। सरकार और इंडस्ट्रियों को एक बड़ा हिस्सा इसमें प्रॉफिट के रूप में भी मिलेगा। पीएस गोयल भी यह मानते हैं कि भारत में आने वाले समय में इंडस्ट्रियां सैटेलाइट भी बनाएंगी और लॉन्च व्हीकल भी तैयार करेंगी। अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में प्राइवेट सेक्टर को स्पेस प्रोग्राम के लिए छूट मिली हुई है। इसमें चीन भी शामिल है। इन देशों में प्राइवेट कंपनियां अपना रॉकेट और सैटेलाइट तैयार कर सकती हैं और लॉन्च भी करती हैं।

चंद्रयान-3: अगले मिशन में भेजा जा सकता है रोबोट

  • चैतन्य गिरी कहते हैं कि जब भी कोई स्पेस एजेंसी किसी ग्रह पर मिशन भेजती है तो वह तीन स्टेज में होता है। पहला ऑर्बिटर मिशन होता है। दूसरे या तीसरे में कोशिश होती है कि यान को सतह पर उतारा जाए और फिर अगले में सैम्पल रिटर्न मिशन होता है। इसमें वहां की मिट्टी को आप रोबोट की मदद से पृथ्वी पर लाते हैं। अगर आने वाले दिनों में विक्रम लैंडर की सफल लैंडिंग की पुष्टि हो जाती है तो चंद्रयान-3 में हम चांद की सतह का मटेरियल अपनी लैबोरेटरीज में लाकर उसका परीक्षण करने की कोशिश कर सकते हैं।
  • पीएस गोयल बताते हैं कि चंद्रयान-2 से मिला अनुभव अगले स्पेस प्रोग्राम में मददगार होगा। हर स्पेस मिशन्स के लिए यूं तो अलग-अलग मॉड्यूल होते हैं, लेकिन कई चीजें एक दूसरे से जुड़ी होती हैं। वे कहते हैं कि जो कैलकुलेशन और तकनीक एक स्पेस मिशन में इस्तेमाल होती है, वह दूसरे में भी काम आती हैं। ऐसे में कोई मिशन सफल हो या विफल, उससे दूसरे मिशन में बड़ी मदद मिलती है।

गगनयान में अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस लाना चुनौती, तो शुक्रयान में एसिडिक वातावरण एक बड़ा चैलेंज होगा

  • अंतरिक्ष वैज्ञानिक पीएस गोयल बताते हैं कि गगनयान-1 के तहत भारत अंतरिक्ष में पहली बार इंसानों को भेजेगा। यह अगले मिशन में सबसे बड़ा होगा। अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाना और सुरक्षित वापस लाना एक बड़ी चुनौती है। हालांकि, इसे सफल बनाने में इसरो सक्षम है। इसके लिए रखा गया टाइमफ्रेम एक चुनौती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस मिशन के लिए 15 अगस्त 2022 की तारीख तय की है। यानी अब हमारे पास 3 साल हैं। 
  • चैतन्य गिरी कहते हैं इसरो के अगले सभी मिशन बड़े चैलेंजिंग है। जैसे गगनयान और स्पेस स्टेशन प्रोग्राम में अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा और कार्यक्षमता को बरकरार रखना एक बड़ी चुनौती है। मंगलयान-2 और शुक्रयान तो ऑर्बिटर मिशन होंगे, लेकिन उनकी अगली स्टेज यानी मंगलयान-3 और शुक्रयान-2 में हम वहां लैंड करने की कोशिश करेंगे। चांद की तरह ही मंगल पर सॉफ्ट लैंडिंग एक चुनौती रहेगी। शुक्र की सतह पर उतरने में चैलेंज यह होगा कि वहां हवा में बहुत ज्यादा एसिड के प्रमाण हैं और वह इतना ज्यादा कॉन्सनट्रेटेड है कि किसी भी धातु को पूरी तरह से चीर सकता है। आपको नई तरह का मटेरियल तैयार करना होगा, जो शुक्र ग्रह पर कुछ घंटे ठहर सके।

कम बजट और कम मैनपावर में इसरो सबसे बेहतर काम कर रहा
पीएस गोयल कहते हैं कि अमेरिका और चीन जैसे देशो में स्पेस एजंसियों के लिए बजट और मैनपावर बहुत ज्यादा होता है। चीन में ही हमसे पांच गुना ज्यादा बजट और मैनपावर है। कम बजट और मैनपावर में हम बहुत अच्छा काम कर रहे हैं। चैतन्य गिरी कहते हैं कि सैटेलाइट लॉन्चिंग जैसी कई चीजों में हम बेस्ट हैं, लेकिन कई चीजों में हम अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों से बहुत पीछे हैं। कारण यह कि अमेरिका-रूस-चीन स्पेस में सालों पहले मानव मिशन भेज चुके हैं।

25 लाख करोड़ रुपए की ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री में अभी भारत की 2% हिस्सेदारी
अभी ग्लोबल स्पेस इंडस्ट्री 25 लाख करोड़ रुपए की है। इसमें अमेरिका की 40% हिस्सेदारी मानी जाती है। वहीं, 50 हजार करोड़ रुपए के साथ भारत की इसमें 2% हिस्सेदारी है। माना जा रहा है कि 2030 तक दुनियाभर से 17 हजार छोटे सैटेलाइट भेजे जाएंगे। इसरो भी छोटे सैटेलाइट का लॉन्च व्हीकल तैयार कर रहा है, जो इस क्षेत्र में देश की हिस्सेदारी बढ़ा देगा। पिछले 3 साल में इसरो की व्यावसायिक कंपनी एंट्रीक्स कॉर्पोरेशन ने 239 सैटेलाइट छोड़े। इससे उसे 6289 करोड़ रुपए की कमाई हुई। दुनिया की बाकी सैटेलाइट लॉन्चिंग एजेंसियों के मुकाबले इसरो की लॉन्चिंग 10 गुना सस्ती है।

भारत में वैज्ञानिकों की संख्या बढ़े तो और बेहतर नतीजे मिलेंगे
चैतन्य गिरी कहते हैं कि अगर पिछले 20 सालों को देखें तो वैज्ञानिकों के अभाव के कारण हमने जिन्हें चंद्रयान-1 पर लगाया, उन्हें ही 5 साल बाद मंगलयान पर और फिर उसके भी 5 साल बाद चंद्रयान-2 पर लगाया। हमें वैज्ञानिकों की संख्या बढ़ानी है ताकि अलग-अलग मिशन पर अलग-अलग वैज्ञानिकों की टीम काम करे। हमें चाहिए कि 100-200 वैज्ञानिकों का एक समूह हो जो सिर्फ चांद पर काम करे।

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