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Posted by Surinder Verma on Tuesday, June 23, 2020

ई-वेस्ट कलेक्शन के लिए सेक्टर-10 कम्युनिटी सेंटर में बनाया जाएगा सेंटर

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शहर से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को ठिकाने लगाने के लिए पंचकूला नगर निगम ने एजेंसी को सलेक्ट करने का फैसला किया है। इसके लिए एमसी की अंबाला बेसड एक एजेंसी से बात चल रही है। यह एजेंसी शहर में ई वेस्ट एकत्र करने से लेकर इसे ठिकाने लगाने का काम संभालेगी। इसके लिए कम्युनिटी सेंटर, सेक्टर 10 में कलेक्शन सेंटर बनाया जाएगा। यहां लोग अपना ई-वेस्ट एजेंसी को दे सकेंगे।बीते कुछ सालों में इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव ला दिया है। मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रयूमेंट्स, गजेट्स का इस्तेमाल बढ़ने के साथ खराब या पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है। ई वेस्ट को बेहतर ढंग से डिस्पोज नहीं किए जाने से न सिर्फ इन्वायर्नमेंट, बल्कि हैल्थ पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। इससे अनजाने में ही लोग शिकार बनते जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स देश में लागू है। इसके बावजूद रूल्स को सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। पंचकूला नगर निगम में एग्जिक्यूटिव अफसर जरनैल सिंह का कहना है कि एमसी शीघ्र ही ई वेस्ट कलेक्शन के लिए कम्युनिटी सेंटर, सेक्टर 10 में सेंटर बनाएगा। यहां ई वेस्ट फैंकने के लिए बड़ा डिब्बा रखा जाएगा जिसमें लोग अपना ई वेस्ट फैंक सकेंगे। गवर्नमेंट ऑफिस में काफी ई वेस्ट निकलता है। इसके लिए डिप्टी कमिश्नर को लैटर लिखा जा रहा है कि वह सभी संबंधित डिपार्टमेंट को अपना ई वेस्ट एमसी की तरफ से बनाए गए कलेक्शन सेंटर में जमा कराए।

क्या है ई-वेस्ट…

ई-वेस्ट यानी ऐसे इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट, जिनका प्रयोग हो चुका हो और अब वह खराब होने के कारण इस्तेमाल में नहो। इनमें प्रमुख रूप से मोबाइल फोन, टेबलेट, कंप्यूटर, लैपटॉप, सी.डी., पैन ड्राइव, प्रिंटर्स, फोटोकॉपी मशीन, इन्वर्टर, यूपीएस, एलसीडी/टेलीविजन, रेडियो/ट्रांजिस्टर, डिजिटल कैमरा, वॉशिंग मशीन, रेफ्रिजरेटर, एयर कंडिशन समेत अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्रॉडक्ट शामिल हैं। इनके पार्ट बायोडिग्रेडबल नहीं होते हैं। लिहाजा, इन्हें मानक तरीके से रिसाइक्लिंग नहीं किया जाता है तो इनके पार्ट्स काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 200 से 500 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा निकलता है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, नई दिल्ली की आेर से किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2005 में भारत में ई-कचरे की कुल मात्रा 1.47 लाख मीट्रिक टन थी जो कि वर्ष 2017 में बढ़कर लगभग 12 लाख मीट्रिक टन हो गई है। भारत में जनित ई-कचरे की मात्रा पिछले 6 वर्षों में लगभग 5 गुणा हो गई है तथा इसमें निरंतर वृद्धि हो रही है। इसकी सबसे बड़ी दिक्कत है कि यह अधिकतर प्लास्टिक से बने होते है जिसका निदान करना आसान नहीं है।

सिटी रिपोर्टर | पंचकूला

शहर से निकलने वाले इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को ठिकाने लगाने के लिए पंचकूला नगर निगम ने एजेंसी को सलेक्ट करने का फैसला किया है। इसके लिए एमसी की अंबाला बेसड एक एजेंसी से बात चल रही है। यह एजेंसी शहर में ई वेस्ट एकत्र करने से लेकर इसे ठिकाने लगाने का काम संभालेगी। इसके लिए कम्युनिटी सेंटर, सेक्टर 10 में कलेक्शन सेंटर बनाया जाएगा। यहां लोग अपना ई-वेस्ट एजेंसी को दे सकेंगे।बीते कुछ सालों में इलेक्ट्रॉनिक क्रांति ने लोगों के रहन-सहन में काफी बदलाव ला दिया है। मॉडर्न इलेक्ट्रॉनिक इंस्ट्रयूमेंट्स, गजेट्स का इस्तेमाल बढ़ने के साथ खराब या पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की तादाद भी तेजी से बढ़ रही है। ई वेस्ट को बेहतर ढंग से डिस्पोज नहीं किए जाने से न सिर्फ इन्वायर्नमेंट, बल्कि हैल्थ पर भी विपरीत असर पड़ रहा है। इससे अनजाने में ही लोग शिकार बनते जा रहे हैं। इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स देश में लागू है। इसके बावजूद रूल्स को सही तरीके से पालन नहीं किया जा रहा है। पंचकूला नगर निगम में एग्जिक्यूटिव अफसर जरनैल सिंह का कहना है कि एमसी शीघ्र ही ई वेस्ट कलेक्शन के लिए कम्युनिटी सेंटर, सेक्टर 10 में सेंटर बनाएगा। यहां ई वेस्ट फैंकने के लिए बड़ा डिब्बा रखा जाएगा जिसमें लोग अपना ई वेस्ट फैंक सकेंगे। गवर्नमेंट ऑफिस में काफी ई वेस्ट निकलता है। इसके लिए डिप्टी कमिश्नर को लैटर लिखा जा रहा है कि वह सभी संबंधित डिपार्टमेंट को अपना ई वेस्ट एमसी की तरफ से बनाए गए कलेक्शन सेंटर में जमा कराए।

स्वास्थ्य के लिए खतरनाक

ई-वेस्ट का बेहतर तरीके से मैनेज न किए जाने से यह इन्वायर्नमेंट और हैल्थ के लिए खतरनाक साबित हो रहे हैं। आमतौर पर सामान्य कचरे और इलेक्ट्रॉनिक कचरे में अंतर नहीं किया जाता है। इस वजह से इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट को अब भी लोग कबाड़ी को दे देते हैं या फिर इन्हें कूड़े के ढेर में फेंक देते हैं। इन इलेक्ट्रॉनिक सामानों से कबाड़ी वाले तोड़कर या जलाकर कॉपर व अन्य धातु निकाल लेते हैं। इस दौरान क्लोरोनेटेड, ब्रोमिनेटेड जैसे विषैले अवयव निकलते हैं। इनके अलावा लेड, मैग्नीशियम, कॉपर, कैडमियम, मर्करी जैसे खरतनाक तत्व भी खुली हवा में पहुंच जाते हैं। इससे फेफड़े, किडनी और सांस संबंधी बीमारियां बढ़ रही है।